राष्ट्रीय

लकड़ी की कमी के बीच कश्मीर में क्रिकेट बैट उद्योग बंद होने के कगार पर
20-Jan-2023 2:03 PM
लकड़ी की कमी के बीच कश्मीर में क्रिकेट बैट उद्योग बंद होने के कगार पर

श्रीनगर, 20 जनवरी कश्मीर में क्रिकेट के बल्ले बनाने के 102 साल पुराने उद्योग ने प्रसिद्ध ‘इंग्लिश विलो’ (बल्ले बनाने में इस्तेमाल होने वाली विशेष प्रकार की लकड़ी) से प्रतिस्पर्धा करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में अपने स्तर को बेहतर किया है। निर्माताओं को हालांकि डर है कि लकड़ी (विलो) की कमी से 300 करोड़ रुपये के कारोबार को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है जो एक लाख से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है।

कश्मीर क्रिकेट बल्ला निर्माता संघ के प्रवक्ता फवजुल कबीर ने पीटीआई से कहा, ‘‘हम पिछले 102 वर्षों से क्रिकेट के बल्ले का निर्माण कर रहे हैं। हमारे बल्ले की गुणवत्ता अच्छी है और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने इन्हें स्वीकृति दी है। गुणवत्ता के लिहाज से कोई कमी नहीं है। हम इंग्लिश विलो (इसे इस्तेमाल करने वाले निर्माताओं) से बेहतर नहीं हैं तो उनकी बराबरी पर तो हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में हुए आईसीसी पुरुष टी20 विश्व कप में सबसे लंबा छक्का कश्मीर विलो के बल्ले से मारा गया था।’’

संयुक्त अरब अमीरात के जुनैद सिद्दीकी ने अनंतनाग स्थित जीआर8 स्पोर्ट्स द्वारा निर्मित बल्ले का उपयोग करके श्रीलंका के खिलाफ 2022 आईसीसी पुरुष टी20 विश्व कप का सबसे लंबा छक्का लगाया था।

हालांकि 400 के आस-पास बल्ला निर्माता इकाइयों का भविष्य अनिश्चित है क्योंकि उन्हें डर है कि लकड़ी की कमी से उनके कारखाने पांच साल के भीतर बंद हो सकते हैं।

कनाडा और पाकिस्तान में वनों को बढ़ावा देने के अभियान की ओर इशारा करते हुए कबीर ने कहा, ‘‘विलो का उत्पादन तेजी से घट रहा है और हमें डर है कि यह अगले पांच वर्षों में खत्म हो सकता है। हम सरकार से लगातार आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विलो वृक्षारोपण अभियान चलाने का अनुरोध कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर ही नहीं पंजाब के जालंधर और उत्तर प्रदेश के मेरठ के एक लाख से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए इस करोबार पर निर्भर हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे परिदृश्य में जहां एक उद्योग पतन के कगार पर है वहां सरकार को युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है।’’

कबीर ने कहा कि शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने उन्हें पिछले साल उगाने के लिए विलो के 1,500 पौधे दिए थे लेकिन प्रत्येक इकाई को प्रति वर्ष लगभग 15,000 विलो की आपूर्ति की आवश्यकता होती है।

कबीर ने कहा, ‘‘जैसे-जैसे क्रिकेट तेजी से बढ़ रहा है, बल्ले की मांग भी बढ़ेगी। दो दशक पहले एक दर्जन देश क्रिकेट खेलते थे। आज यह संख्या लगभग 160 हो गई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘दस साल पहले कश्मीर में ढाई से तीन लाख बल्ले बनते थे। इन दिनों हर साल 30 लाख बल्ले बनते हैं।’’

कबीर ने कहा कि बल्ला उद्योग का सालाना कारोबार 300 करोड़ रुपये से अधिक था।

कबीर ने सुझाव दिया कि सरकार को आर्द्रभूमि और नदी के किनारे पौधे लगाने की अनुमति देने पर विचार करना चाहिए जहां पहले विलो के पेड़ हुआ करते थे।

जीआर8 के खेल उत्पादन प्रबंधक मोहम्मद नियाज ने कहा कि सरकार ने विलो पौधे लगाने के लिए कदम उठाए हैं लेकिन यह उद्योग की जरूरतों के अनुसार पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया भर में और अधिक क्रिकेट लीग शुरू हो रही हैं और बल्ले की मांग में इजाफा ही होगा।

उद्योग और वाणिज्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि कश्मीर में विलो की कोई कमी नहीं थी, इकाइयों के सामने मुख्य समस्या आधुनिक सीजनिंग तकनीक की कमी और कश्मीर के बाहर कारखानों में लकड़ी की तस्करी थी।

नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर अधिकारी ने बताया, ‘‘कश्मीर में लकड़ी की सीजनिंग अब भी पारंपरिक तरीके से होती है और इसमें छह महीने से लेकर एक साल तक का समय लग सकता है। इससे कारखाने के मालिक की पूंजी फंस जाती है और उसकी वित्तीय स्थिति पर असर पड़ता है। कुछ मामलों में कारखाने बंद भी हो जाते हैं।’’

अधिकारी ने कहा कि सीजनिंग कारखाना लगाने के प्रस्ताव को कुछ साल पहले मंज़ूरी दी गई थी लेकिन कोविड-19 के प्रकोप के कारण इसे टाल दिया गया। (भाषा)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news