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(मनीष सैन)
जयपुर, 21 जनवरी। पूर्व थल सेना प्रमुख जे जे सिंह ने शनिवार को यहां चीन के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए वार्ता और रचनात्मक साझेदारी को एकमात्र रास्ता बताया, लेकिन साथ ही कहा कि यदि चीन ने और दुस्साहस किया, तो भारतीय रक्षा बल उसे 'सबक सिखाने' में पूरी तरह सक्षम हैं।
सिंह ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ' द ऐलीफेंट एंड द ड्रेगन : ए कनेक्टिड हिस्ट्री' सत्र में इतिहासकार तानसेन सेन और पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन के साथ चर्चा में यह बात कही।
'अपने वादों को तोड़ने' के चीन के पिछले इतिहास के बारे में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके सिंह ने कहा कि देश को उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह '‘कहता कुछ है ओैर करता कुछ है’’।
उन्होंने कहा, “1993 और 1996 में समझौते हो चुके हैं। ये समझौते सीमा पर शांति और समरसता की बात करते हैं और भरोसा निर्मित करने के उपायों की भी बात करते हैं।
सिंह ने कहा, "ये समझौते यह भी कहते हैं कि आप अपने सीमा क्षेत्र में 20,000 से अधिक सैनिक नहीं बढ़ा सकते, लेकिन उन्होंने गलवान में जो किया, वे दो-तीन डिविजन ले आए। वे स्मार्ट हैं, हमें उनसे ज्यादा स्मार्ट होना होगा।" उन्होंने साथ ही कहा “अगर वे अब कोई और दुस्साहस करने की कोशिश करते हैं, तो हमारे सशस्त्र बल उन्हें सबक सिखाने में सक्षम हैं। गलवान में उन्हें सबक सिखाया, उन्हें डोकलाम में आगे बढ़ने से रोक दिया गया। उन्हें इसी तरह तवांग से भी वापस जाने के लिए कहा गया।” भारत पर चीन की तकनीकी श्रेष्ठता के बारे में पूछे जाने पर, सिंह ने दावा किया कि भारतीय सेना तिब्बती क्षेत्र में लड़ने के लिए उनसे बेहतर सुसज्जित है।
उन्होंने कहा, "चीनी युद्ध के मैदान तिब्बत में लड़ने के आदी नहीं हैं। हमारे हवाई जहाज पूरा भार लेकर चीन या तिब्बत पर बमबारी कर सकते हैं। उनके सैनिक ऐसे दुर्गम माहौल के आदी नहीं हैं, वे ऑक्सीजन की बोतलें लेकर चलते हैं।
पूर्व थल सेना प्रमुख जेजे सिंह ने कहा, 'मुख्य भूमि चीन 1000-2000 किमी दूर है, हमारी मुख्य भूमि 400 किमी दूर है। इसलिए मैं कहूंगा कि हम हर तरह से चीन के बराबर हैं। हम अपने देश की रक्षा करेंगे।' इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल द्वारा संचालित सत्र में भारत और चीन के सामूहिक इतिहास को मुख्य रूप से तीन कालखंडों में विभाजित करके देखा गया: चीन में बौद्ध धर्म का उदय, 1949 से 1962 तक दोनों देशों के बीच संबंध, और वर्तमान में दोनों पड़ोसी कहां खड़े हैं और आगे का रास्ता क्या है ।
सिंह ने कहा कि वार्ता और विचार-विमर्श ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।
उन्होंने कहा, ' यदि भारत और चीन रचनात्मक संबंध बनाते हैं, तो मेरा मानना है कि आगे बढ़ने का यही एकमात्र तरीका है।' उन्होंने कहा, 'संवाद, चर्चा और रचनात्मक संबंध, शक्ति के विश्व समीकरणों की रूपरेखा को फिर से परिभाषित कर सकते हैं, क्योंकि यह भारत और चीन की सदी है।" (भाषा)