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रविवि कुलपति चयन में ‘खेला’ !
15-Feb-2023 12:49 PM
रविवि कुलपति चयन में ‘खेला’ !

  पसंदीदा के लिए मापदण्ड बदले गए, पीएमओ से शिकायत की तैयारी  
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 15 फरवरी।
यह एक ऐसा मामला है जिसमें पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति चयन के लिए नियम बदल दिए गए हैं। चर्चा है कि चयन समिति के सदस्यों की एक दिन पहले अनौपचारिक  बैठक भी हुई थी। इसमें दावेदारों की छंटनी के लिए नियम बनाए गए, और फिर उसी अनुरूप समिति ने अगले दिन बैठक में पैनल तैयार कुलाधिपति को सौंप दिया। हल्ला है कि कई दावेदारों को बाहर करने, और पसंदीदा की नियुक्ति के लिए मापदण्ड बदले गए हैं। इसकी शिकायत पीएमओ में भी करने की तैयारी चल रही है।

कुलपति चयन समिति के एक सदस्य से ‘छत्तीसगढ़’ ने इस पूरे मामले में बात की, तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया। बाकी दो सदस्यों से संपर्क नहीं हो पाया।
बताया गया कि छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति चयन के लिए प्रक्रिया 16 दिसम्बर से शुरू हुई थी। निवर्तमान कुलपति डॉ. केसरीलाल वर्मा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। कुलपति चयन के लिए राज्यपाल, और कुलाधिपति सुश्री अनुसुईया उइके ने सर्च कमेटी बनाई थी। कमेटी में बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी के पूर्व कुलपति डॉ. सुरेन्द्र दुबे, छत्तीसगढ़ आयुष विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एटी दाबके, और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान धारवाड़ के डायरेक्टर प्रोफेसर वेंकप्पा आर देसाई थे।

सूत्र बताते हैं कि कुलपति के लिए करीब सौ आवेदन आए थे। इनमें आईआईटी, आईआईएम के प्रोफेसर, डायरेक्टर के अलावा अलग-अलग विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, कुलपति के साथ-साथ रविवि के भी कई शिक्षाविदों ने आवेदन किया था।
चर्चा है कि चयन समिति की बैठक 13 तारीख को हुई थी, और उसी दिन तीन नामों का पैनल तैयार कर राज्यपाल को सौंप दिया गया। एक खबर ये भी है कि एक उच्च स्तरीय दबाव के चलते समिति के सदस्यों की अनौपचारिक बैठक हुई थी। जिसमें समिति को दावेदारों की छंटनी के लिए कई निर्देश दिए गए। इसमें साफ तौर पर निर्देश दिया था कि किसी संस्थान के डायरेक्टर, अथवा कुलपति का नाम पैनल में न रखा जाए। सिर्फ वो ही नाम छांटे जाए, जो वर्तमान में प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे हैं।

हल्ला तो यह भी है कि किसी कुलपति की प्रोफेसर पत्नी को पैनल में रखने की सिफारिश की गई थी। हालांकि किसी भी स्तर पर पुष्टि नहीं हो पाई है। स्थानीय, और बाहरी को भी ध्यान में रखकर पैनल तैयार करने के लिए कहा गया था। जबकि नियमों में साफ है कि जो 10 वर्ष तक प्रोफेसर के पद पर काम कर चुका हो, वो कुलपति पद के लिए पात्र है। मगर इसके बाद डायरेक्टर व अन्य पद पर काम करने वाले का नाम  विचार न करने के लिए दबाव भी रहा।

चयन के लिए नए मापदण्ड की खबर आईआईटी और अन्य संस्थानों के डायरेक्टर व अन्य प्रमुख दावेदारों तक पहुंची, तो इसको लेकर नाराजगी फैल गई। इसकी शिकायत अब पीएमओ में करने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ, राज्यपाल अनुसुईया उइके का तबादला हो गया है। बावजूद इसके कुलपति की नियुक्ति वो खुद कर सकती हैं। हालांकि इसको लेकर कोई कानूनी अड़चन नहीं है, लेकिन कई लोग परम्परा से जोडक़र देख रहे हैं। आज-कल में नियुक्ति आदेश जारी होने के बाद बवाल हो सकता है।

 

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