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जुनैद-नासिर हत्याकांड से चर्चा में आए मोनू मानेसर के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट
06-Mar-2023 1:05 PM
जुनैद-नासिर हत्याकांड से चर्चा में आए मोनू मानेसर के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट

-विनीत खरे

हरियाणा, 6 मार्च ।  हरियाणा के भिवानी में जली मिली बोलेरो गाड़ी और दो युवकों, जुनैद और नासिर को जला कर मार दिए जाने की जांच में पिछले दिनों गोरक्षक मोनू मानेसर का नाम सुर्खियां में रहा है.

इस घटना ने एक बार फिर गो रक्षकों की कथित मारपीट और हिंसा पर सभी का ध्यान खींचा है.

जहां पुलिस मोनू की तलाश में है, वहीं मोनू के समर्थन में महापंचायत हुई है जहां न सिर्फ़ सीबीआई जांच की मांग की गई, बल्कि रिपोर्टों के मुताबिक़ कथित तौर पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल हुआ और राजस्थान पुलिस को धमकी दी गई.

कौन हैं मोनू मानेसर

दिल्ली से सटे हरियाणा के मानेसर गांव की एक गली में सामने का मकान मोनू मानेसर का घर है.

हम जब वहां पहुंचे तो मोनू की मां, पत्नी, बेटा, ताऊ, चचेरा भाई, दोस्त आदि सभी घर में थे. एक कोने में दो गायें बंधी थीं.

बरामदे में छत के नीचे सब बैठे थे जबकि साथ के एक कमरे की दीवार पर मोनू के पिता, दादा-दादी की तस्वीरें लगी थीं.

ये किसी आम दिन जैसा ही था, लेकिन ऐसा लगा कि माहौल ठहरा-सा है.

बीते दिनों में अख़बारों, टीवी, सोशल मीडिया पर मोनू की बंदूक़ लिए तस्वीरें दिखती रही हैं. जहां एक तरफ़ मोनू मानेसर को ऐसे व्यक्ति के तौर पर पेश किया जा रहा है जो सरकारी समर्थन की बदौलत कथित तौर पर हिंसक गतिविधियों में शामिल है, वहीं दूसरी तरफ़ मोनू के समर्थक उन्हें ऐसे गो रक्षक के तौर पर देखते हैं जो गायों को बचाकर धर्म की रक्षा कर रहा है.

परिवार के मुताबिक़, उन्होंने मोनू को कई दिनों से नहीं देखा और मोनू के पास सभी हथियार लाइसेंसी हैं.

मोनू के चचेरे भाई विनोद कुमार के मुताबिक़, "वो बहुत शांत स्वभाव का है. किसी से लड़ना-झगड़ना नहीं... वोटों की राजनीति चल रही है. राजनीति के अंदर इनको घसीटा जा रहा है."

गो-तस्करी को रोकने के लिए हरियाणा में गो रक्षक और पुलिस सहयोग से काम करते रहे हैं.

विनोद कुमार कहते हैं, "अगर मोनू को रोकना था, इनको कह देना था कि तुम बीच में मत आओ. इनको आगे लेकर काम करवाया. अब कह रहे हैं कि तुम ग़लत कर रहे हो. अब इनके ऊपर सवाल उठाए जा रहे हैं. ये तो ग़लत बात है ना.... जुनेद और जो मरे हैं. हमें भी दुख है. मोनू को तो निशाना बनाया जा रहा है."

मोनू मानेसर का घर

मोनू कैसे बने गो-रक्षक

मानेसर में मोनू एक जाना-पहचाना नाम है. इसमें मोनू के सोशल मीडिया पन्नों का महत्वपूर्ण रोल है. मोनू अपने सोशल मीडिया पेज पर कई बार कथित गो-तस्करों की, गायों को छुड़ाने आदि के वीडियोज़ डालते रहे हैं.

नेताओं और पुलिस अधिकारियों के साथ मोनू की मीडिया में तस्वीरें भी उनके स्थानीय प्रशासन से निकट संबंधों पर रोशनी डालती हैं.

परिवार के मुताबिक़, 28 साल के मोनू ने मानेसर के ही एक सरकारी पॉलीटेक्निक से डिप्लोमा किया और कॉलेज के ज़माने से ही मोनू का झुकाव गो सेवा की ओर हो गया.

उनके पिता ड्राइवर थे और बस और डंपर चलाते थे.

बजरंग दल से जुड़े मोनू के दोस्त सूरज यादव बताते हैं, "पॉलीटेक्निक के पास गो-तस्करों की एक गाड़ी पकड़ी गई थी तो कॉलेज के सभी बच्चों ने अच्छा साथ दिया था. तभी से उनका रुझान बन गया कि गाय की सेवा करनी है."

स्थानीय लोगों और गो रक्षा दल के गुरुग्राम डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट नीलम रामपुर ने बताया कि इलाके में ज़्यादातर लोगों के घरों में गाय है और गो सेवा की भावना से 19-20 साल की उम्र में ही युवा गो रक्षा से जुड़े कामों से जुड़ जाते हैं.

जब हम नीलम रामपुर से मिले तो उनके साथ कॉलेज में पढ़ने वाले युवा भी बैठे थे.

नीलम रामपुर

नीलम रामपुर के मुताबिक़, गो रक्षा दल की स्थापना क़रीब 30 साल पहले हुई और हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश में इसके क़रीब 10,000 से 15,000 सदस्य हैं.

मोनू के दोस्त सूरज यादव बताते हैं, "हम यदुवंशी श्रीकृष्ण के वंशज हैं. गाय हमारे लिए मां के समान है."

पिछले कुछ सालों से मोनू मानेसर सहित गो रक्षकों पर मारपीट, हिंसा आदि के आरोप लगातार लगते रहे हैं.

गाय के नाम पर बढ़ती हत्याएं

साल 2015 में दादरी के रहने वाले अख़लाक की जान गई, साल 2016 में उना में दलित युवकों की पिटाई, साल 2017 में अलवर ज़िले में पहलू खां को गाड़ी में गाय ले जाने पर जान गंवानी पड़ी.

 

मोनू मानेसर के दोस्त और चचेरे भाई

साल 2019 की ह्यूमन राइट्स वॉच ने भारत सरकार से कहा था कि वो गो रक्षा के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की घटनाओं को रोके.

रिपोर्ट के मुताबिक़, मई 2015 और दिसंबर 2018 के बीच 12 राज्यों में कम से कम 44 लोगों की हत्या की गई और इनमें से 36 मुसलमान थे.

ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कई मुख्यमंत्री और नेता हिंसा के ख़िलाफ़ बोल चुके हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, हरियाणा और राजस्थान में मोनू के ख़िलाफ़ कम से कम चार केस दर्ज हैं.

हमने ताज़ा स्थिति पर मोनू मानेसर से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हुआ. हालांकि कुछ दिन पहले उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा था, "ये (गो तस्कर) गो तस्करी छोड़ दें, ये घटना ही नहीं होगी. हमारा काम पीटने का नहीं है. हां, धर्म और गोमाता से हमारी धार्मिक भावना जुड़ी है. हमारे धर्म पर आघात होता है तो हमें दुख होता है."

गो रक्षकों पर हिंसा के आरोपों पर नीलम रामपुर कहते हैं, "हमारी गो माता को (कोई) उठाकर ले जाएगा तो उसकी आरती थोड़े ही ना उतारी जाएगी. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि उसके हाथ-पैर तोड़ दिए जाते हैं."

उनके मुताबिक़, गो तस्करों को पकड़ने के बाद पुलिस को सौंप दिया जाता है.

मृतक जुनैद और नासिर

गो तस्करों को कैसे पकड़ते हैं?

हरियाणा गो सेवा आयोग के प्रमुख सरवण कुमार गर्ग ने बताया कि हर ज़िले में बने काउ टास्क फ़ोर्स में 11 व्यक्ति हैं जिनमें से छह सरकारी अधिकारी और पांच सामाजिक लोग होते हैं. और अगर गो रक्षकों के ख़िलाफ़ हिंसा की शिकायत आती है तो "क़ानून अपना काम करता है."

नीलम रामपुर के मुताबिक़, गो रक्षक "मुस्लिम विरोधी बिल्कुल नहीं हैं."

वो कहते हैं, "मुस्लिम लोगों के साथ भी हमारा भाईचारा है. पटौदी में भी काफ़ी मुस्लिम रहते हैं. उनके घर आना-जाना भी है. शादी में न्योते भी आते हैं. हम सिर्फ़ गो हत्यारों और तस्करों के विरोधी हैं."

नीलम के मुताबिक़, मेवात, रेवाड़ी, गुरुग्राम में उनका लगभग 200 लोगों का इन्फ़ॉर्मर नेटवर्क है जो गो तस्करों के बारे में जानकारी मुहैया करवाता है.

वो बताते हैं, "हम कांटे बनवाते हैं जो नुकीले होते हैं. जब गाड़ी आती है तो उसके आगे फेंक देते हैं. टायर फट जाते हैं. वो कुछ देर भगाते हैं. जो अच्छे ड्राइवर होते हैं, वो टायर फटने के बाद भी (गाड़ी को) 10-20 किलोमीटर ले जाते हैं."

गो रक्षकों पर पैसे की वसूली या फिर पैसा लेकर गाड़ियां छोड़ देने के आरोपों को वो झूठ बताते हैं.

कहते हैं, "पुलिस का पूरा सहयोग रहता है. काउ सेल फ़ोर्स साथ रहती है. आप वीडियो देख लेना. साथ मिलकर ही गाड़ियां पकड़ते हैं. क्यों रखते हैं उनको साथ में हम? इसलिए रखते हैं क्योंकि हमारे ऊपर आरोप लगा देते हैं कि ये तो पैसे लेते हैं.... आरोप भी वही लोग लगाते हैं जो हमें तोड़ना चाहते हैं ताकि आपस में फूट पड़ जाए.... मोनू पर भी आरोप लगा था कि वो तो पैसे लेकर गाड़ियां छोड़ता है, बीफ़ का निर्यात यही ख़ुद कराता है. ये सारे आरोप निराधार हैं."

सूरज सिंह

मोनू के साथ कौन लोग खड़े हैं?

मानेसर में स्थानीय लोग नाराज़ हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद आज भी गाय की तस्करी और हत्या जारी है. वो मेवात की ओर इशारा करते हैं. मेवात यानी हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों को जोड़कर बना क्षेत्र जो कि मुस्लिम बहुल है.

याद रहे कि हरियाणा गौवंश संरक्षण एंड गौसंवर्धन क़ानून 2015 के अंतर्गत राज्य में गोहत्या जुर्म है.

मोनू के घर के नज़दीक ही एक गौशाला में क़रीब 1,500 गायें रहती हैं. यहां का ख़र्च ज़्यादातर डोनेशन पर चलता है. लोग पैसे, गुड़, अनाज दान में दे जाते हैं.

गौशाला कमेटी के प्रधान सूरज सिंह बताते हैं कि पहले इलाके में गो तस्करी से लोग बेहद परेशान थे, लेकिन गो रक्षकों की वजह से गो तस्करी कम हुई है.

सूरज सिंह कहते हैं, "तस्कर डरने लग गए कि अगर इस इलाके में जाओगे तो पकड़े जाओगे और गाड़ी भी ज़ब्त होगी. पकड़े गए तो केस भी लगेगा और पिटाई भी होगी."

इस इलाके में कई लोग गोरक्षक विक्रांत यादव को याद करते हैं.

क़रीब 10 साल पहले चार बहनों के अकेले भाई विक्रांत की मृत्यु हो गई थी. परिवार के मुताबिक़, कथित गो तस्करों ने उनकी हत्या की. उन्हें आज भी इंसाफ़ की तलाश है.

उनके पिता वेदपाल ने बताया कि उस दिन विक्रांत का जन्मदिन था और "किसी ने रॉड से (विक्रांत के) सिर पर चोट मारी थी."

विक्रांत यादव के नाम पर स्मारक

विक्रांत के माता-पिता जिस घर में रहते हैं वो घर कभी विक्रांत के लिए बना था.

चाचा सुंदर सिंह की मानें तो इलाके में आज भी गो तस्करी जारी है.

इस मामले में पूर्व अभियुक्तों के वकील संजीव जैन ने बताया कि तीन लोगों को निचली अदालत ने बरी कर दिया जबकि चौथे व्यक्ति पर मुक़दमा चल रहा है.

विक्रांत के परिवार के मुताबिक़, उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

नासिर और जुनैद की हत्या पर प्रदर्शन

मानेसर से लगे मेवात में नासिर और जुनैद की हत्या से नाराज़ लोगों ने कई प्रदर्शन किए हैं.

हम राजस्थान के भरतपुर पहुंचे जहां एक मस्जिद के नज़दीक टेंट के नीचे कुछ दर्जन प्रदर्शनकारी नारेबाज़ी कर रहे थे जबकि पीछे एक बैनर पर हिंसा में मारे गए लोगों की तस्वीरें लगी थीं.

प्रदर्शनकारी आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों के खिलाफ़ नारे लगा रहे थे.

वहां मौजूद नासिर और जुनैद के रिश्तेदार मोहम्मद जाबिर ने कहा, "अगर वो गो तस्कर थे तो अभी तक क्यों नहीं पकड़ा पुलिस ने? अभी तक दोनों में से किसी ने हवालात नहीं देखा. अगर कोई आदमी मुजरिम है तो क्या उसको बजरंग दल ही सज़ा सुनाएगा?"

प्रदर्शनकारी इनामुल हसन कहते हैं, "हम अख़लाक, वेद, कार्तिक, जुनैद, नासिर, रक़बर जैसे मामलों को रोकना चाहते हैं. इस पर हम फ़ुलस्टॉप लगाना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि संसद और देश की विधानसभाओं में ऐसे सख़्त से सख़्त क़ानून पारित हों कि दरिंदों को तुरंत सज़ा मिले और इस तरह के अपराध करने की कोई हिमाक़त न कर सके."

थोड़ा आगे नूह का घसेड़ा गांव सड़क के किनारे चौबीसों घंटे बिकने वाली बिरयानी के लिए जाना जाता है, और लोग दिन का 600 से 1,000 रुपया कमाकर घर चलाते हैं.

यहां एक व्यक्ति ने बताया कि इलाके में लोग मोनू मानेसर से डरते हैं.

एक अन्य व्यक्ति मोहम्मद अकरम ने बाहर वालों को माहौल ख़राब करने के लिए ज़िम्मेदार बताया और कहा, "मेवात में आप कहीं भी चले जाओ, हमें आज तक पता नहीं चला कि हम हिंदू हैं, मुस्लिम हैं. हम एक साथ खाना भी खाते हैं."

मेवात को 'बदनाम करने की साज़िश'

मेवात के लोगों का आरोप है कि देश के इस बेहद पिछड़े इलाके में जहां अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य के केंद्र नहीं हैं, वहां गो तस्करी के आरोप लगाकर मीडिया का एक हिस्सा उन्हें बदनाम कर रहा है, और सामाजिक तानेबाने को तोड़ रहा है.

जब हमने मेवात की स्थिति पर नूह के एसपी वरुण सिंगला से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि क़ानून-व्यवस्था की स्थिति और दोनों समुदायों के सेंटिमेंट को देखते हुए वो कुछ नहीं कहेंगे.

लेकिन पुलिस सूत्रों का कहना है कि उन्होंने गो तस्करी के बारे में लोगों को जागरूक करने और दोषियों पर सख़्त कार्रवाई करने के लिए कई क़दम उठाए हैं.

स्थानीय लोग सवाल पूछ रहे हैं कि उन्हें किस बात की सज़ा मिल रही है.

नूह में इतिहास के रिटायर्ड लेक्चरर अब्दुल वहाब कहते हैं, "गो हत्या पाप है और मेवात के लोगों का इससे कोई संबंध नहीं है. हम मेयो राजपूत हैं. हम गो-पालन सबसे ज़्यादा करते हैं. मेवात के हर घर में गाय है. कई लोगों के पास 400 गायें हैं. ये बग़ैर बात का लांछन है, दोषारोपण है."

"जब देश आज़ाद हुआ तो हमारे देश के नेताओं ने इस पर पाबंदी लगा दी थी. गो हत्या करना या गोमांस खाना क़ानूनन अपराध है. इसके साथ-साथ हम इस्लाम धर्म को मानते हैं. इस्लाम धर्म में भी सख़्त मनाही है इसकी. बड़े-बड़े इस्लामी विद्वान हैं जिन्होंने इस पर सख़्त पाबंदी लगा रखी है और कहा है कि ये खाना हराम है.

मेवात के कई गांवों में लोगों से बात करने पर वे बताते हैं कि राजधानी दिल्ली से इतनी नज़दीकी के बावजूद इन गांवों में बहुत कुछ किया जाना बाकी है. मेवात में अधिकांश लोग खेती और ड्राइवरी के पेशे से जुड़े हैं.

नूह के सालंबा गांव में हम सामाजिक कार्यकर्ता समय सिंह से मिले.

वो बताते हैं, "मेरे गांव सालंबा में 3,300 वोट हैं. इसमें एक या दो आदमी इस काम में लिप्त हो सकते हैं, बाकी पूरा गांव ये नहीं करता."

कोर्ट में गो तस्करी के मामले

लेकिन ऐसे दावों के बावजूद नूह की ज़िला और सत्र न्यायालय में गाय की तस्करी से जुड़े मामलों की भरमार है. वकील ताहिर हुसैन देवला कम से कम ढाई सौ ऐसे मामले देख रहे हैं. उनके अलावा दूसरे वकीलों के पास भी ऐसे मामलों की भरमार है.

ताहिर हुसैन देवला के मुताबिक़, "जो काउ ट्रांसपोर्टेशन के मामले हैं, उनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं, लेकिन काउ स्लॉटर (गो हत्या) के मामलों में मुस्लिम ही शामिल हैं."

ताहिर हुसैन के मुताबिक़, मेवात का एक वर्ग कई सौ सालों से ये काम करता था. उसका एक छोटा-सा हिस्सा आज भी कई कारणों से ये काम करने को मजबूर है.

वो बताते हैं कि मुस्लिम बहुल मेवात की आबादी क़रीब 40-45 लाख है, लेकिन यहां स्वास्थ्य और शिक्षा के अच्छे केंद्र नहीं हैं.

वो कहते हैं, "मान लीजिए एक गांव की आबादी दस हज़ार है तो उसमें से बमुश्किल पांच से 10 लोग इस काम में लगे हैं. वो बहुत ग़रीब लोग हैं. उनके पास कोई खेती नहीं है, कोई बिज़नेस नहीं है. उनके पास पढ़ाई नहीं है. तो उनके पास यही एक ज़रिया है. इसी से उनका गुज़ारा होता है."

हमें कई लोग मिले जिन्होंने साझा इतिहास, साझा रिश्तों, साझा संस्कृति को याद किया, और आपसी मतभेदों को बातचीत से हल करने की हिमायत की. इन भावनाओं के सही कार्यान्वयन पर सभी की निगाहें होंगी. (bbc.com/hindi)

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