राष्ट्रीय

ईको-फ्रेंडली बन रहीं भारत की भारी-भरकम शादियां
11-Mar-2023 1:24 PM
ईको-फ्रेंडली बन रहीं भारत की भारी-भरकम शादियां

भारत में शादियों का भव्य आयोजन होता है, लेकिन जैसे-जैसे लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, उसका असर शादियों पर भी दिख रहा है. कई जोड़े अब शांत और कम धूम-धड़ाके वाले ईको-फ्रेंडली आयोजन का विकल्प चुन रहे हैं.

  डॉयचे वैले पर मिदहत फातिमा की रिपोर्ट-

नूपुर अग्रवाल और अश्विन मलवाड़े मुंबई में एक सफाई अभियान के दौरान एक-दूसरे से मिले थे. 2019 में जब उन्होंने शादी करने का फैसला किया, तो दोनों इस बात पर दृढ़ थे कि वे अपनी शादी की वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग को और नहीं बढ़ाएंगे.

डीडब्ल्यू से बातचीत में नूपुर कहती हैं, "हम जानते थे कि हम जीरो-वेस्ट शादी करने जा रहे हैं, क्योंकि हमारी शादी में ऐसे किसी कचरे की गुंजाइश नहीं थी, जिसे हम लोगों ने समुद्र के किनारे उठाया था."

नूपुर और अश्विन ऐसी फर्म की तलाश में थे, जो उनकी शादी का आयोजन ईको-फ्रेंडली तरीके से कराने में मदद कर सके. जब ऐसी कोई फर्म नहीं मिली, तो उन्होंने यह काम खुद करने का फैसला किया.

अश्विन की बारात में शामिल लोगों को निर्देश था कि वे इलेक्ट्रिक वाहनों से ही कार्यक्रम स्थल पहुंचें. नूपुर ने अपनी मां की वेडिंग ड्रेस पहनी थी, जो खासतौर पर इसी मौके के लिए बनाई गई थी. इस ड्रेस को #SayNoToPlastic और #ClimateCrisisIsReal जैसे हैशटैग्स से सजाया गया था.

'जीरो-वेस्ट (कचरा-विहीन) मुश्किल है, लेकिन लो-वेस्ट (कम कचरा) आसान है'
यह आयोजन इतना सफल रहा कि इनकी शादी के बाद तमाम जोड़े इनके पास इस सलाह के लिए आने लगे कि जीरो-वेस्ट शादी कैसे आयोजित की जाए. इसके बाद तो नूपुर और अश्विन ने अपनी इस इच्छा को पेशे में बदल दिया और ग्रीनम्याना नाम से एक इवेंट प्लानिंग एंड कंसल्टेंसी कंपनी खोल ली.

पिछले तीन साल में वे ऐसी सात शादियां करा चुके हैं और कई जोड़ों को इस बारे में सलाह दे चुके हैं. वे दावा करते हैं कि ग्रीनम्याना ने दो टन से ज्यादा कार्बन को न्यूट्रलाइज यानी बेअसर किया है और करीब पांच टन कचरे का निस्तारण किया है.

लेकिन जिस देश में शादी उद्योग चौथा सबसे बड़ा आर्थिक क्षेत्र समझा जाता हो और जहां हर साल एक करोड़ से ज्यादा शादियां होती हों, वहां इतनी कवायद न के बराबर है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में अश्विन मलवाड़े कहते हैं, "आमतौर पर तीन दिन चलने वाली एक शादी में करीब 700-800 किलो गीला कचरा और 1,500 किलो सूखा कचरा निकलता है. ऐसी शादियों में करीब 250 टन कार्बन उत्सर्जन होता है."

पूजा देवानी और अर्जुन ठक्कर NRI हैं. ये दोनों पुणे में शादी कर रहे थे और चाहते थे कि वे अपने आयोजन से धरती को कम से कम नुकसान पहुंचाएं. लेकिन उन्होंने ब्रिटेन से 140 मेहमान शादी में बुलाए थे.

पूजा देवानी कहती हैं, "सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि जब लोग दूसरे देशों से हवाई जहाज से भारत आ रहे हैं, तो यह शादी ईको-फ्रेंडली कैसे हो सकती है?" आखिरकार उन्होंने फैसला किया कि वे ग्रीनम्याना की मदद से पेड़ लगाकर अपने कार्बन फुटप्रिंट घटाएंगे.

पूजा कहती हैं, "हमने महसूस किया कि जीरो-वेस्ट शादी तो मुश्किल है, लेकिन हम बहुत आसानी से ऐसी शादी कर सकते हैं, जिसमें कचरा बहुत कम निकले."

कार्बन उत्सर्जन का समायोजन
शनय झावेरी की शादी पिछले साल दिसंबर में हुई. कार्बन उत्सर्जन के समायोजन के बारे में उन्होंने भी ग्रीनम्याना की मदद ली और मियावाकी पद्धति से पौधे लगाने का फैसला किया. वह कहते हैं, "हमने ई-निमंत्रण पत्र के जरिए लोगों को निमंत्रण भेजे और जिन्हें निमंत्रण पत्र दिए गए थे, वे बीज पत्रों पर छपे थे, जिन्हें हमने अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ समारोह के हिस्से के तौर पर बोया था."

दुबई में रहने वाले प्रोजेक्ट मैनेजर अरिंदम घोषाल भी जनवरी में अपनी बहन की शादी अधिक टिकाऊ तरीके से करने की योजना बना रहे थे. उन्होंने एक क्लाइमेट फाइनेंस कंपनी क्लाइम्स (Climes) से संपर्क किया. यह कंपनी लोगों और कंपनियों को ऑनलाइन क्रेडिट के जरिए कार्बन ऑफसेट खरीदने की अनुमति देती है. इसके जरिए अरिंदम ने 2250 किलो कार्बन को न्यूट्रलाइज किया.

वह कहते हैं, "मैं 2021 तक कार्बन न्यूट्रलाइजेशन के बार में नहीं जानता था. COP-27 के बाद ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के बारे में जानने की मेरी उत्सुकता बढ़ी है."

क्लाइम्स कंपनी के संस्थापक अनिरुद्ध गुप्ता ने 2021 में कंपनी की शुरुआत की और आज करीब 20 कंज्यूमर ब्रांड्स उनके पार्टनर हैं. वह कहते हैं, "हमारा मकसद यह है कि आप जो कर सकते हैं, उसमें कटौती कर दें और जो नहीं कर सकते हैं, उसे न्यूट्रलाइज कर दें. हमें जलवायु कार्रवाई को आसान बनाने की जरूरत है. इसे आसानी से सुलभ, आर्थिक रूप से व्यावहारिक और मजेदार बनाने की जरूरत है."

वह कहते हैं कि जलवायु कार्रवाइयों को ज्यादा मजेदार बनाने के लिए क्लाइम्स ने शादी समारोह में आए मेहमानों को क्रेडिट और QR कोड दिया, जिसे स्कैन करके वे वित्तीय मदद देने के लिए क्लाइमेट सल्यूशन परियोजनाएं चुन सकते थे.

वह कहते हैं, "पैसा क्लाइम्स क्रेडिट्स के रूप में आता है. प्रत्येक क्लाइम की कीमत दो रुपये होती है और यह वायुमंडल में एक किलो कार्बन को ऑफसेट करता है." कंपनी का दावा है कि उसने चार शादी समारोहों से निकले 26 टन से ज्यादा कार्बन को ऑफसेट किया है.

जरूरतमंदों का पेट भर सकता है बचा हुआ खाना
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्टेटिस्टा के मुताबिक दुनियाभर में भारतीय शादियों में सबसे ज्यादा मेहमान आते हैं. एक शादी में औसतन 500 मेहमान होते हैं. साल 2017 में भारत के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से दिल्ली क्षेत्र में कराए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि शादियों में 200-300 व्यंजन परोसना कोई असामान्य बात नहीं थी.

गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि अक्सर भोजन की काफी बर्बादी होती है, जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है, बल्कि इसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सकता है.

अब्दुल वाहिद नई दिल्ली में रॉबिनहुड आर्मी नाम के NGO के साथ काम करते हैं. यह NGO समाज के गरीब तबके के लोगों को खाना पहुंचाता है. अब्दुल वाहिद कहते हैं, "शादियों में औसतन जितना खाना बचता है, उससे करीब सौ लोगों का पेट भरा जा सकता है."  (dw.com)
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news