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खूंटाघाट टापू पर कोई भी निर्माण करना एक मूर्खतापूर्ण परियोजना
12-Mar-2023 8:46 AM
खूंटाघाट टापू पर कोई भी निर्माण करना एक मूर्खतापूर्ण परियोजना

-बिपाशा 

ओपन बिल्ड स्टोर्क, पेंटेड स्टोर्क, कोर्मोरेंट्स जैसे प्रवासी पक्षियों का खूटाघाट, खारंग जलाशय पर स्थित टापू प्रजनन के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाना है। बिलासपुर के पर्यावरण प्रेमी नागरिक इस टापू पर से इन पक्षियों के आशियाने को उजाड़ कर छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल का यहां पर ग्लास हाउस या रेस्टोरेंट जैसी परियोजनाओं के लिए गहन निर्माण कार्य के प्रस्ताव का लगातार विरोध कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने भी इस मुद्दे पर तीव्र विरोध दर्ज कराया है।

सहज बुद्धि और मानवीय बौद्धिक क्षमता का प्रयोग करते हुए देखें तो हम समझ पाएंगे कि इस तरह के निर्माण से इस जलाशय/वेटलैंड इकोसिस्टम को बहुत क्षति पहुंचेगी। हम जिस जलवायु परिवर्तन के दौर में हैं, साथ ही पृथ्वी पर जीवन को कायम रखने के लिए जिन सतत विकास के लक्ष्यों की ओर देखते हैं, इस तरह की मूर्खतापूर्ण परियोजनाओं से तो हम कुछ हासिल नहीं कर सकते बल्कि इस से उलट सब कुछ ध्वस्त कर देंगे।

हमारे देश में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के कानून के तहत वन्यजीवों का वर्गीकरण किया गया है| मुख्य रूप से जिन प्रवासी पक्षियों की यहां बात हो रही है, वे सब चतुर्थ अनुसूची  में आते हैं, जिनके शिकार या अवैध व्यापार पर पूर्ण प्रतिबन्ध है। इनके संरक्षण को विशेष महत्व दिया गया है। इस कानून के तहत हमारे देश में विभिन्न प्रवासी पक्षियों के रहवास को संरक्षित क्षेत्र घोषित किये गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय महत्व की वेटलैंड (आर्द्रभूमि) पर रामसर सम्मलेन में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई जिसमें विशेष रूप से ऐसे प्रवासी एवं अन्य पक्षियों के आवास के संरक्षण का संकल्प है। इस संधि में भारत भी शामिल है। हमारे देश में ऐसे 75 महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों को रामसर साइट घोषित किया गया है। इनमे से कई तो यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज की सूची में भी शामिल है, जिन्हें विशेष संरक्षण प्राप्त है।

छत्तीसगढ़ में एक भी रामसर साइट नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल नहीं कि प्रवासी पक्षियों के आवागमन और आवास की दृष्टि से यहां के वेटलैंड कम महत्वपूर्ण हैं। छत्तीसगढ़ में बांध और उसके जलाशय का पूरा वेटलैंड इकोसिस्टम प्रवासी पक्षियों के रहवास के रूप में बहुत महत्वपूर्ण है। छत्तीसगढ़ में वेटलैंड का अध्ययन और इसकी जैव विविधता की सटीक समयबद्ध मैपिंग की आवश्यकता है। राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में स्थित भरतपुर बर्ड सेंचुरी रामसर साइट के साथ यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी है। जो प्रवासी पक्षी खूंटाघाट खारंग जलाशय में पाई जाती हैं वही भरतपुर में भी हैं। रतनपुर के खूंटाघाट वेटलैंड पर कुछ अध्ययन हुए हैं। इस तरह के निर्माण कार्य से उनके रहवास को जो क्षति होगी उस पर अध्ययन होना चाहिए। भूमि पूजन की इतनी जल्दी क्यों है? यह आकलन जरूरी है। कहीं प्रकृति संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी का कोई पक्षी तो इस टापू पर नहीं है, यह अध्ययन किए बगैर इसके रहवास को उजड़ने की पूरी तैयारी हो चुकी है।

हमारी सरकारों की ऐसे पर्यावरणीय संवेदनशील मामलों में किस प्रकार की जवाबदेही है, यह तो हम देख ही रहे हैं। हसदेव अरण्य के मुद्दे पर कोयले की भूख समृद्ध वनों को निगल रहा है। ऐसे में नागरिक आन्दोलन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। 1972 में स्टॉकहोम और उसके बाद रिओ डे जनेइरो में सबसे पहले मानव और पर्यावरण के विषय पर हुए सम्मेलन में एक बात स्पष्ट रूप से सामने आई और लेखबद्ध की गई कि पर्यावरणीय समस्याओं का निदान नागरिकों और जन सामान्य के भागीदारी से ही हो सकेगा। बेशर्म सरकारों को जवाबदेह बनाने का यही तरीका है।

 

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