राष्ट्रीय
भारत में लिंग और लैंगिक पहचान में परिवर्तन कराने की स्वतंत्रता को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ा समर्थन मिला है. अदालत ने सर्जरी की मदद से अपना लिंग बदलने को संवैधानिक अधिकार बताया है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
मामला उत्तर प्रदेश पुलिस के एक कांस्टेबल का है जिन्होंने अदालत से लिंग परिवर्तन की अनुमति दिलाने की अपील की थी. कांस्टेबल को जन्म पर महिला लिंग का घोषित किया गया था लेकिन उन्होंने अदालत को बताया कि वो महसूस एक पुरुष जैसा करते हैं.
यहां तक कि उन्हें महिलाओं के प्रति आकर्षण भी महसूस होता है. उन्होंने अदालत को बताया कि वो जेंडर डिस्फोरिया (लैंगिक असंतोष) महसूस करते हैं और इन कारणों से 'सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस)' करवा कर एक पुरुष के रूप में अपनी पहचान को पूरी तरह से अपना लेनाचाहते हैं.
ताकि समस्या घातक रूप ना ले ले
कांस्टेबल ने 11 मार्च, 2023 को अपने विभाग में एसआरएस कराने के लिए अनुमति का आवेदन दिया था, लेकिन उस पर फैसला नहीं लिया गया. इसके बाद उन्होंने अनुमति के लिए अदालत के दरवाजे खटखटाए.
हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति अजीत कुमार की एक-सदस्यीय पीठ ने कहा, "अगर कोई व्यक्ति जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित है और शारीरिक बनावट को छोड़ कर उसकी भावनाएं और गुण सब विपरीत लिंग के हैं, और ऐसा इस हद तक है कि व्यक्ति अपने शरीर और अपने व्यक्तित्व में सम्पूर्ण मिसअलाइंमेंट महसूस करता/करती है, तो ऐसे व्यक्ति को सर्जिकल हस्तक्षेप के जरिये अपने लिंग को बदलवाने का संवैधानिक अधिकारप्राप्त है."
अदालत ने आगे कहा कि अगर इस अधिकार को ना माना गया तो इससे "लैंगिक पहचान विकार सिंड्रोम" के बने रहे को बढ़ावा मिलेगा. अदालत ने यह भी कहा, "कभी कभी यह समस्या घातक रूप ले सकती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति को विकार, एंजायटी, डिप्रेशन, नकारात्मक सेल्फ इमेज और अपनी सेक्सुअल शरीर रचना से नफरत हो सकती है."
कांस्टेबल के वकील ने अदालत में नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसे ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला माना जाता है.
आसान नहीं है सर्जरी
वकील ने कहा कि इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक पहचान को एक व्यक्ति के आत्मा-सामान के बेहद आवश्यक बताया था. सभी दलीलें सुनने के बाद अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी) को आदेश दिया की इस मामले में फैसला रोक के रखने का कोई औचित्य नहीं है.
हालांकि अदालत ने डीजीपी को कांस्टेबल के आवेदन को स्वीकार करने का आदेश नहीं दिया. अदालत ने बस इतना कहा कि इस मामले में जिन पूर्व अदालती फैसलों का हवाला दिया गया है डीजीपी उनके मद्देनजर इस आवेदन पर फैसला लें.
भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजाम करना चाहिए. इसमें एसआरएस, हार्मोनल थेरेपी और सर्जरी के पहले और बाद में काउंसलिंग भी शामिल है.
लेकिन असलियत यह है कि अधिकांश ट्रांसजेंडर इस तरह की सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं. ज्यादातर लोग सरकारी प्रक्रिया के डर की वजह से आवेदन देने की हिम्मत ही नहीं उठा पाते हैं और जो उठाते हैं वो लंबे समय तक इसमें फंसे रह जाते हैं. (dw.com)