राष्ट्रीय

कोटा: इतने छात्रों के आत्महत्या करने के पीछे क्या वजहें हैं
31-Aug-2023 1:12 PM
कोटा: इतने छात्रों के आत्महत्या करने के पीछे क्या वजहें हैं

कोचिंग हब के तौर पर मशहूर कोटा में छात्रों के आत्महत्या करने का सिलसिला जारी है. बीते आठ महीने में 24 छात्रों ने जान दी है. इनमें से 13 ऐसे थे, जिन्हें कोटा आए हुए दो-तीन महीने से लेकर एक साल से भी कम समय हुआ था.

 (डॉयचे वैले पर मनीष कुमार का लिखा-)

राजस्थान का कोटा शहर. देशभर के बच्चे यहां करियर बनाने और प्रवेश परीक्षा की तैयारियों के लिए पहुंचते हैं. यहां के कोचिंग संस्थान इन छात्र-छात्राओं को तराशकर उन्हें मेडिकल या इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा के लिए तैयार करते हैं. लेकिन, कोचिंग हब के रूप में जाना जाने वाला यह शहर बीते लंबे वक्त से छात्रों की आत्महत्याओं के लिए सुर्खियां बना रहा है.

इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना लिए देशभर से बच्चे नीट (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) या जेईई (जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन) परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा के कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेते हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या बिहार के बच्चों की होती है. जनवरी 2023 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कोटा में एक कार्यक्रम के दौरान कोचिंग में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं से संवाद कर रही थीं.

इसी क्रम में उन्होंने कुछ राज्यों का नाम लेकर वहां से आए बच्चों की संख्या के बारे में जानना चाहा. इसी दौरान उन्होंने पूछा, इनमें कितने बच्चे बिहार से हैं? जवाब में जब तीन-चौथाई बच्चों ने अपने हाथ ऊपर किए, तो वह चौंके बिना नहीं रह सकीं. हैरानी से उन्होंने अपनी हथेली को मुंह पर रख लिया.

पटना के रहने वाले डी के कांत ने करीब छह महीने पहले अपने बेटे का दाखिला कोटा के एक नामी कोचिंग संस्थान में कराया. वह अपना अनुभव यूं बताते हैं, "जब मैं कोटा स्टेशन पर उम्मीदों की ट्रेन पटना-कोटा एक्सप्रेस से उतरा, तो ऐसा लगा मानो किसी रैली में भाग लेने आया हूं. जहां तक नजर जा रही थी, वहां बच्चे-बच्चियां और अभिभावक ही दिख रहे थे. मैंने इतनी भीड़ की कल्पना ही नहीं की थी. यहां का पूरा परिदृश्य समझना हो, तो वेब सीरीज कोटा फैक्ट्री देख लीजिए."

एक अनुमान के मुताबिक, इस शहर में ढाई लाख से ज्यादा छात्र कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं. अभी यहां 4,000 के करीब हॉस्टल हैं और 40 हजार से ज्यादा पीजी (पेइंग गेस्ट) हैं, जहां बच्चे रहते हैं.

आठ महीने में 24 बच्चों ने दे दी जान

एक बार फिर यह शहर आत्महत्या की बढ़ती संख्या को लेकर सुर्खियों में है. 27 अगस्त को महज चार घंटे के अंतराल में यहां दो छात्रों ने अपनी जान दे दी. इनमें एक 18 साल का आदर्श, बिहार के रोहतास जिले का रहने वाला था. आदर्श चार महीने पहले ही नीट की तैयारी के लिए कोटा आया था.

इस साल जनवरी से लेकर 28 अगस्त तक कोटा में 24 छात्रों ने आत्महत्या की. इनमें 13 ऐसे थे, जिन्हें कोटा आए दो-तीन महीने से लेकर एक साल से भी कम समय हुआ था. जबकि सात छात्र ऐसे थे, जिन्होंने डेढ़ महीने से लेकर पांच महीने पहले ही कोचिंग लेना शुरू किया था. आदर्श की मौत से पहले 4 और 16 अगस्त को भी बिहार के दो बच्चों ने जान दे दी थी. केवल अगस्त महीने में ही सात बच्चों ने खुदकुशी की है.

2022 के दिसंबर महीने में चार छात्रों ने आत्महत्या की थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 12 साल में 150 से ज्यादा छात्रों ने यहां जान दी है.

ज्यादा नंबर लाने की दौड़ बन रही जानलेवा

कोटा में जेईई की तैयारी कर रहे सुयश (बदला हुआ नाम) कहते हैं, ‘‘ जिस परीक्षा की हम तैयारी कर रहे हैं, वह काफी मुश्किल है. अगर आप जनरल कैटेगरी से हैं, तो एक-एक नंबर आप पर भारी पड़ता है. आपका प्रदर्शन बेहतर हो, इसके लिए यहां जो पढ़ाया जाता है उसका टेस्ट लिया जाता है. इससे हमें खुद को आंकने का मौका मिलता है. आखिरकार, उतना नंबर पाने के बाद ही हम क्वालिफाई कर सकते हैं.''

डेढ़ साल से नीट की तैयारी कर रही शिवानी (बदला हुआ नाम) का कहना है, ‘‘प्रतियोगिता का स्तर काफी ऊंचा है. यहां पहुंचकर बच्चे को अपना स्तर पता चलता है. वे डर जाते हैं कि दूसरा बच्चा हमसे ज्यादा नंबर ला रहा है. फिर माता-पिता की उम्मीदें ज्यादा होती हैं. बेहतर प्रदर्शन करना मजबूरी बन जाता है. इससे बच्चे तनाव में आ जाते हैं और फिर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं.''

रोहतास के रहने वाले जिस छात्र आदर्श ने खुदकुशी की, उसे भी कोचिंग संस्थान के टेस्ट में लगातार कम नंबर आ रहे थे. पुलिस के मुताबिक, वह 700 में से 250 नंबर ला पा रहा था. इसे लेकर वह परेशान रहता था.

दरअसल कोचिंग संस्थान 700 नंबर के इस टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर छात्रों की रैंकिंग और ग्रेडिंग तय करते हैं. 500 से ज्यादा नंबर लाने वाले छात्रों की रैंकिंग अच्छी मानी जाती है और उनपर कोचिंग संस्थानों का ज्यादा फोकस होता है. उनकी नजर में ऐसे छात्रों के क्वालिफाई करने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं. ऐसे में जो बच्चे कम नंबर लाते हैं, वे अपने नंबरों से तो परेशान होते ही हैं, साथ ही उन्हें यह डर भी सताने लगता है कि अब संस्थान भी उनपर कम ध्यान देगा. ऐसे में वे अवसाद के शिकार हो जाते हैं.

भारी पड़ता माता-पिता की उम्मीदों का बोझ

पटना के एक कोचिंग संस्थान के निदेशक नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘‘यह सच है कि जेईई या नीट की परीक्षा का जो ढर्रा है, उससे बच्चों पर पढ़ाई का खासा दबाव रहता है. एक-एक नंबर के लिए जूझना पड़ता है. निगेटिव मार्किंग इसे और मुश्किल बना देता है. इसलिए कोचिंग के टेस्ट में पिछड़ने पर उन्हें अपना अस्तित्व ही खतरे में दिखाई देने लगता है.''

मनोविज्ञान की व्याख्याता रश्मि शेखर कहती हैं, "मेरे ख्याल से इस स्थिति के लिए काफी हद तक माता-पिता की उम्मीदें जिम्मेदार हैं. कोई भी बच्चा अपनी क्षमता के अनुसार ही चीजें समझता है. उस पर अपनी महत्वाकांक्षा का दबाव बनाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. पास-पड़ोस के बच्चे की सफलता को देखकर तो कतई नहीं.''

घर से दूर रह रहे कई बच्चे अलग-अलग परेशानियों के अलावा अकेलापन भी महसूस करते हैं. कई बार वे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं, जिसकी जानकारी न तो कोचिंग संस्थान को होती है और न ही उनके माता-पिता को. कोटा में जेईई की तैयारी कर रहे आदित्य (बदला हुआ नाम) बताते हैं, ‘‘घर से बाहर रह रहे बच्चे को माता-पिता की उम्मीदें हर समय परेशान करती रहती हैं. हमेशा महसूस होता है कि हम पर इतना पैसा खर्च हो रहा है. मां-बाप भी सबसे पहले यह जानना चाहते हैं कि टेस्ट में कितने नंबर आए. गड़बड़ होने पर सुनना भी पड़ता है. ऐसे में करो या मरो की स्थिति बन जाती है. बच्चा पढ़ाई का दबाव नहीं झेल पाता है और गलत फैसला ले लेता है.''

क्या कर रही है राजस्थान सरकार

आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए कुछ दिन पहले कोटा जिला प्रशासन ने छात्र-छात्राओं के हॉस्टल या पीजी वाले कमरों में स्प्रिंग लोडेड फैन लगाने का निर्देश जारी किया है. ताकि अगर कोई छात्र पंखे से लटककर जान देने की कोशिश करे, तो पंखा नीचे आ जाए और उसकी जान बच सके.

आत्महत्या के बढ़ते मामलों से चिंतित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों एक बैठक में कोचिंग संस्थानों को कुछ निर्देश दिए. इनमें रविवार को टेस्ट नहीं लेने, दो सप्ताह में एक बार छात्र-छात्राओं की सेहत की जांच कराने, पढ़ाई का बोझ नहीं डालने जैसे निर्देश शामिल हैं. कोटा के कलेक्टर ने कोचिंग संस्थानों में दो महीने तक टेस्ट ना कराने का निर्देश जारी किया है.

लेकिन क्या बस इन उपायों से छात्र-छात्राओं की खुदकुशी रोकी जा सकेगी. शायद नहीं. शिक्षा प्रणाली और परीक्षा पैटर्न पर विचार करने की भी जरूरत है, ताकि दबाव को कम किया जा सके. इसके अलावा अभिभावकों और बच्चों का नजरिया बदले जाने की भी जरूरत है. छात्रों को नियमित काउंसलिंग भी दी जानी चाहिए.

कोचिंग संस्थान तो एक माहौल देता है. सफलता के लिए जो चीजें जरूरी हैं, उसे उपलब्ध कराता है. ताकि छात्र पूरे दमखम से अपनी तैयारी कर सकें. साप्ताहिक या मासिक, जो भी टेस्ट लिए जाते हैं, उन्हें एक संकेत के रूप में लेना चाहिए, ना कि रिजल्ट के रूप में.   (dw.com)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news