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अमेरिका का गंभीर आरोप भारत के लिए कितना बड़ा झटका, जानिए क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट
30-Nov-2023 12:36 PM
अमेरिका का गंभीर आरोप भारत के लिए कितना बड़ा झटका, जानिए क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट

अमेरिका ने अमेरिकी ज़मीन पर एक सिख अलगाववादी नेता और अमेरिकी नागरिक की हत्या की साज़िश के पर्दाफ़ाश का दावा किया है.

निखिल गुप्ता नाम के एक भारतीय नागरिक पर आरोप हैं कि उन्होंने एक भाड़े के हत्यारे को एक लाख डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) कैश के बदले अलगाववादी नेता की हत्या का ठेका दिया.

अभियोग के मुताबिक़, जिस हिटमैन को हत्या का काम दिया गया था, वह वास्तव में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी का अंडरकवर एजेंट था.

निखिल गुप्ता इस समय चेक गणराज्य की जेल में हैं. जो आरोप उन पर लगे हैं, उनके तहत 20 साल तक की सज़ा हो सकती है.

आरोप हैं कि निखिल गुप्ता को एक भारतीय अधिकारी निर्देशित कर रहे थे. अभियोग में भारतीय अधिकारी का नाम नहीं है.

अभियोग में पीड़ित का नाम नहीं है लेकिन भारतीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक़ निशाने पर अधिवक्ता और सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू थे. गुरपतवंत सिंह पन्नू भारत में घोषित ‘आतंकवादी’ हैं.

व्हाइट हाउस का कहना है कि अमेरिका ने हत्या की इस साज़िश के मामले को शीर्ष स्तर पर भारत के सामने उठाया है.

इससे पहले कनाडा ने सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत के शामिल होने के आरोप लगाये थे. कनाडा के इन आरोपों के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों में कड़वाहट आ गई थी.

पैसे देकर हत्या करवाने की इस साज़िश के आरोप ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को भी चिंतित कर दिया था.

एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी ने बीबीसी को बताया है कि बाइडन ने अमेरिका के शीर्ष ख़ुफ़िया अधिकारियों- सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स और नेशनल इंटेलिजेंस के निदेशक एवरिल हेंस को भारतीय अधिकारियों से बात करने के लिए भारत भेजा था.

इन आरोपों के बीच भारत सरकार ने कहा है कि वह इनकी जांच कर रही है.

पैसे देकर हत्या करवाने की इस साज़िश के आरोप पर फ़ाइनैंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि जून में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिका ने भारत को चेतावनी भी दी थी, वहीं भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि अमेरिका ने सिर्फ़ कुछ इनपुट भारत के साथ साझा किए थे, जिनकी जांच ‘संबंधित विभाग कर रहे हैं.’

सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून को कनाडा में हत्या कर दी गई थी.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप लगाये थे, हालांकि भारत ने इन आरोपों को ख़ारिज किया था. दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव भी पैदा हुआ है.

भारत ने कनाडा के आरोपों को ख़ारिज करते हुए सख़्त रुख़ अख़्तियार किया था, लेकिन सवाल ये है कि क्या भारत अमेरिका के सामने भी इसी तरह का रवैया अपना सकता है, वो भी तब जब अमेरिकी ने हत्या की इस साज़िश को लेकर भारत को चेताया हो?

क्या हैं ख़तरे?

अमेरिका के इस आरोप के बाद दुनिया भर के मीडिया में भारत के रुख़ को प्रमुखता से जगह दी गई है.

द डिप्लोमैट ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है, “ये स्पष्ट है कि दोनों में से एक पक्ष इस मामले को तूल नहीं दे रहा है, लेकिन पन्नू की हत्या की साज़िश पर फ़ाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट पर भारत की प्रतिक्रिया नरम रही है और उसका लहज़ा सहयोग वाला है. ये ट्रूडो के आरोपों पर उसके आक्रामक रवैये से बिल्कुल अलग है.”

डिप्लोमैट ने लिखा है, 'भारत ने जिस तरह से कनाडा को फटकार लगाई थी, उस तरह से वह अमेरिका को नहीं लताड़ सकता है. इसका एक साधारण कारण यह है कि भारत के भू-राजनीतिक हितों के लिए अमेरिका कनाडा के मुक़ाबले अधिक महत्वपूर्ण है. यही नहीं अमेरिका को भी चीन को रोकने के लिए भारत की ज़रूरत है और इस बात को भी भारत बहुत अच्छे से समझता है.''

भारत और अमेरिका पारस्परिक रूप से एक दूसरे पर निर्भर हैं. द डिप्लोमैट लिखता है कि इसी पारस्परिक निर्भरता की वजह से निज्जर की हत्या के बाद जिस तरह भारत और कनाडा के संबंध ख़राब हुए, शायद उस तरह पन्नू की हत्या की साज़िश से अमेरिका और भारत के संबंध ख़राब ना हों.

गुरपतवंत सिंह पन्नू सक्रिय खालिस्तानी अलगाववादी हैं और कई बार उन्होंने भारत के ख़िलाफ़ हिंसा की खुली चुनौती दी है. हाल ही में पन्नू ने एयर इंडिया की फ्लाइट को निशाना बनाने की चेतावनी दी थी.

भारत चाहता है कि अमेरिका खालिस्तान के ख़तरे को गंभीरता से ले.

हत्या की साज़िश के इस मुक़दमे की ख़बर के बाद भारत और अमेरिका के बीच प्रतिक्रियाओं का दौर तो शुरू हो सकता है लेकिन क्या इससे भारत को चिंतित होना चाहिए?

रिश्ते क्या पटरी से उतर जाएंगे?

थिंक टैंक रैंड कार्पोरेशन से जुड़े और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ डेरेक जे ग्रॉसमैन लिखते हैं, “आज की इस सनसनीखेज ख़बर के बाद भारत को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है. वास्तव में अमेरिका को भारत की ज़रूरत अधिक है. बाइडन प्रशासन की चीन को रोकने की रणनीति के लिए भारत अहम है. लेकिन अमेरिकी छूट असीमित नहीं रहेगी और अगर आगे भी ऐसा ही बुरा व्यवहार हुआ तो जो लाभ हाल में हासिल हुए हैं, वो दूर भी हो सकते हैं.”

थिंक टैंक द विल्सन सेंटर से जुड़े विदेश नीति मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन ने लिखा है, “भले ही हमारे पास अब इस हत्या की साज़िश के बारे में और अधिक जानकारी हो, मुझे अब भी ये लगता है कि इससे अमेरिका और भारत के रिश्तों को कोई ख़ास नुक़सान नहीं होगा.''

''व्हाइट हाउस को इस साज़िश का जुलाई में ही पता चल गया था, लेकिन इसके बाद भी दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय बैठकों को रद्द नहीं किया गया. जी20 में बाइडन और मोदी की मुलाक़ात हुई. अमेरिका ने जवाबी कार्रवाई नहीं की, सिर्फ़ इतना कहा कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए. भारत और अमेरिका का रिश्ता इतना अहम है कि ये नाकाम नहीं हो सकता है.”

वहीं कुछ विश्लेषक मानते हैं कि ताज़ा घटनाक्रम पर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो ये भारत और अमेरिका के रिश्तों को नुक़सान भी पहुँचा सकता है.

सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन स्टडी में भारत-प्रशांत कार्यक्रम की निदेशक लीसा कर्टिस ने लिखा है, “इस हैरान करने वाले घटनाक्रम के समाधान के लिए भारत को तुरंत पूरी तरह अमेरिका के साथ सहयोग करना चाहिए, अन्यथा भारत और अमेरिका के रिश्तों में जो प्रगति बहुत मुश्किल से हासिल की गई है वो ख़तरे में आ जाएगी.”

अमेरिका पर सवाल

पश्चिमी देशों में सिख अलगाववाद भारत के लिए अहम मुद्दा रहा है. हाल के महीनों में भारत ने शीर्ष स्तर पर सिख अलगाववाद के मुद्दे को उठाया है.

हाल ही में जब नई दिल्ली में अमेरिका और भारत के मंत्रियों के स्तर की बैठक हुई तो उसके बाद भी भारत की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया था कि भारत ने अमेरिका के समक्ष सिख अलगाववाद का मुद्दा भी रखा है. नवंबर में ही ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री की भारत यात्रा के दौरान भी भारत ने बढ़ते सिख चरमपंथ का मुद्दा उठाया था.

वहीं पश्चिमी देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते हैं और उनके लिए सिख अलगाववाद अहम मुद्दा नहीं है क्योंकि यह सीधे तौर पर उन्हें प्रभावित नहीं करता है.

वैश्विक मामलों के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर जोरावर दौलत सिंह ने एक्स पर लिखा है, “ये अभियोग किसी कॉमिक के प्लॉट जैसा है, जिसमें एक कथित भारतीय ख़ुफिया अधिकारी ने एक दलाल के ज़रिए एक हत्यारे को ठेका दिया. ये हत्यारा अमेरिका का ख़ुफ़िया एजेंट निकला.”

ज़ोरावर सिंह ने लिखा, “अमेरिका को सभी आतंकवादियों और अलगाववादियों को भारत को सौंपने की ज़रूरत है ताकि उन पर भारतीय क़ानूनों के तहत मुक़दमा चलाया जा सके. लेकिन अमेरिका भारत विरोधी आतंकवादियों को अपनी ज़मीन पर जगह क्यों देता है?”

पश्चिम का दोहरा मानदंड?

वहीं इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू ने लिखा है, ये अस्वीकार्य है कि कोई भी देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खालिस्तानी आतंकवाद को ढंके या आतंकवादियों पर क़ानूनी कार्रवाई का समर्थन ना करे. तमाम बयानबाज़ियों के बावजूद, पश्चिमी देश सिर्फ़ उन लोगों पर ध्यान देते हैं जो उनके हितों के ख़िलाफ़ हिंसा करते हैं. उनके दोहरे मानदंड जगजाहिर हैं.

काटजू लिखते हैं, “दुनिया ऐसे ही दोहरे मानदंडों से भरी पड़ी है. सिद्धांतों और न्याय की तमाम पवित्र बातों के बावजूद ऐसा हो रहा है. कूटनीति का उद्देश्य राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए इस कठिन दोहरे और अनैतिक भूभाग में रास्ता तलाशना है.”

पूरे विवाद पर भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने एक्स पर लिखते हैं, “चीन के साथ क़रीबी रिश्तों वाले संदिग्ध पत्रकार ने यह स्टोरी प्लांट की (गढ़ी) है. निज्जर प्रकरण, जिसे लेकर भारत पर अमेरिका की नाराज़गी का असर अभी तक कम नहीं हुआ है, उसके बाद क्या भारत एक अमेरिकी नागरिक को मारने की साज़िश रचकर हालात को बिगाड़ना चाहेगा? क्या इस बात का कोई मतलब है? कहीं पर भारत विरोधी साज़िश रची जा रही है.” (bbc.com)

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