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झारखंड: आखिर क्यों नहीं दोहराई जा सकी ‘राबड़ी देवी’ की कहानी
02-Feb-2024 1:03 PM
झारखंड: आखिर क्यों नहीं दोहराई जा सकी ‘राबड़ी देवी’ की कहानी

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आखिरकार ईडी ने गिरफ्तार कर लिया. अब चंपई सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया है. करीब-करीब ऐसी ही परिस्थितियों में राबड़ी देवी अविभाजित बिहार की मुख्यमंत्री बनी थीं.

   डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट- 

हेमंत सोरेन, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री हैं. कथित जमीन घोटाले में हेमंत सोरेन से सीएम आवास में ही करीब सात घंटे तक पूछताछ की गई. इसके बाद ईडी की हिरासत में ही देर शाम राजभवन जाकर सोरेन ने राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को अपना इस्तीफा सौंप दिया. यहीं उनके करीबी और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के समक्ष पेश किया. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री होंगे.

कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में राबड़ी देवी अविभाजित बिहार की मुख्यमंत्री बनी थीं. राबड़ी, लालू प्रसाद यादव की पत्नी हैं. साल 1997 में चारा घोटाले में गिरफ्तारी की नौबत आने पर लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं को दरकिनार करते हुए राबड़ी देवी को सत्ता की कमान सौंप दी थी.

उस वक्त लालू प्रसाद का राजनीतिक करियर भी दांव पर लग गया था. ऐसे में जब लालू प्रसाद ने पत्नी को सीएम बनाया, तो कई जानकारों ने इसे मास्टर स्ट्रोक बताया. पांचवीं कक्षा तक पढ़ीं राबड़ी देवी उस समय एक ठेठ घरेलू महिला थीं, जो अचानक ही सीएम बन गईं. वह तीन बार बिहार की मुख्यमंत्री बनीं.

इस बार झारखंड में भी ऐसे ही घटनाक्रम के आसार थे. खबरों के मुताबिक, हेमंत अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बनाना चाहते थे. पार्टी ने आधिकारिक तौर पर ऐसी कोई घोषणा नहीं की, लेकिन राजनीतिक गलियारे में कल्पना को सीएम बनाए जाने की चर्चा तैरती रही. कहा जा रहा था कि हेमंत उसी तरह कल्पना को सत्ता सौंप देंगे, जिस तरह लालू प्रसाद ने राबड़ी देवी को सत्ता सौंपी थी. हालांकि, परिवार में बगावत के सुर और शायद तकनीकी पेच के चलते अंतत: यहां बिहार वाली कहानी दोहराई नहीं जा सकी.

कल्पना की जगह चंपई क्यों?
दरअसल ईडी, हेमंत सोरेन को लगातार समन जारी कर रही थी.इसी बीच 30 दिसंबर, 2023 को व्यक्तिगत कारण बताकर गांडेय विधानसभा सीट से झामुमो के विधायक डा. सरफराज अहमद ने इस्तीफा दे दिया. यह कयास लगाया जाने लगा कि कल्पना सोरेन के लिए ही गांडेय की सीट खाली करवाई गई है. विपरीत स्थिति आने पर हेमंत उन्हें मुख्यमंत्री बना सकते हैं.

बीते सोमवार को दिल्ली में ईडी की टीम के साथ लुकाछिपी का खेल खेलने के बाद हेमंत सोरेन अचानक ही रांची पहुंच गए और वहां उन्होंने अपने सरकारी आवास में पार्टी के विधायकों के साथ बैठक की. इस बैठक में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी उपस्थित थीं. किसी भी राजनीतिक बैठक में कल्पना सोरेन की यह पहली भागीदारी थी. इससे यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि अगर हेमंत सोरेन गिरफ्तार किए जाते हैं, तो कल्पना को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.

विधायक दल की इस बैठक में हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने भाग नहीं लिया. इसे उनकी बगावत के रूप में देखा गया. साथ ही यह बात भी उठने लगी कि झारखंड विधानसभा का चुनाव होने में अब साल भर से भी कम समय शेष रह गया है, इसलिए निर्वाचन आयोग गांडेय सीट पर उपचुनाव की सहमति नहीं दे सकता है.

तकनीकी दिक्कत यह थी कि अगर गांडेय सीट पर छह महीने के अंदर उपचुनाव नहीं होता, तो कल्पना उसके बाद मुख्यमंत्री नहीं रह पातीं. फिर इस पर भी संशय था कि विधायक नहीं होने के कारण कल्पना पर राज्यपाल का रुख क्या होगा. इन्हीं वजहों से किसी मौजूदा विधायक को सीएम बनाना तय हुआ.

चंपई सोरेन, दिशोम गुरु और हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन के बेहद करीबी लोगों में से हैं. पार्टी के वफादार और वरिष्ठ नेताओं में वह काफी अनुभवी हैं. झारखंड राज्य के गठन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही थी. इसे देखते हुए उनके नाम पर सहमति बनी. चंपई, सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से छह बार चुनाव जीत चुके हैं. हेमंत जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तो चंपई उनकी सरकार में खाद्य आपूर्ति व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री थे.

सीता को कल्पना का नेतृत्व स्वीकार नहीं
सीता सोरेन, झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू और हेमंत के बड़े भाई दिवंगत दुर्गा उरांव की पत्नी हैं. वह जामा विधानसभा क्षेत्र से झामुमो की विधायक हैं. खबरों के अनुसार, उन्होंने साफ कह दिया कि अगर हेमंत अपनी पत्नी को सीएम बनाने की कोशिश करते हैं, तो वह इसका विरोध करेंगी. कल्पना का नेतृत्व उन्हें स्वीकार नहीं है. यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने अपनी बेटी को सीएम बनाने की मांग की.

सीता सोरेन का कहना था कि 2019 में उन्होंने हेमंत को सीएम के तौर पर स्वीकार कर लिया था. उस समय उनकी उपेक्षा की गई थी, लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहेंगी. सीता सोरेन ने कथित तौर पर यह भी कहा कि घर की बड़ी बहू होने के कारण पहले उनका हक है और वह तीन बार की विधायक हैं.

इसी तरह हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन ने भी कल्पना का समर्थन नहीं किया. वह भी विरोध में उतर आए. वरिष्ठ पत्रकार एके चौधरी कहते हैं, ‘‘क्षेत्रीय पार्टियां परिवारवाद को काफी प्रश्रय देती हैं. इसलिए परिवार की अनदेखी करना इनके लिए मुश्किल होता है. कल्पना की राह भी परिवार में बगावत के सुर ने ही रोक दी.''

चंपई सोरेन गैर-विवादास्पद नेता हैं. लेकिन झामुमो के सहयोगी दलों को वह कितने स्वीकार्य होंगे, यह कहना थोड़ा मुश्किल है. हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि सोरेन परिवार में उनकी स्वीकार्यता पर कोई संदेह नहीं है.

कब सुर्खियों में आई कल्पना सोरेन
कल्पना सोरेन का नाम सबसे पहले तब चर्चा में आया, जब पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आरोप लगाया कि अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी को 11 एकड़ के एक भूखंड का आवंटन किया है. दास ने आरोप लगाया था कि रांची के एक इंडस्ट्रियल पार्क में सोहराई प्राइवेट लिमिटेड को मीट प्रोसेसिंग यूनिट के लिए प्लॉट आवंटित किया गया, जिसकी मालिक कल्पना सोरेन हैं.

उस समय हेमंत के पास उद्योग विभाग था. कल्पना से हेमंत की शादी 7 फरवरी, 2006 को हुई थी. वह ओडिशा के मयूरभंज जिले के तेंतला गांव की निवासी हैं. उनके पिता सेना के अवकाश प्राप्त अधिकारी हैं और फिलहाल मयूरभंज में रहते हैं. कल्पना ने बी.टेक करने के बाद एमबीए किया है. वह फिलहाल झारखंड की राजधानी रांची में एक प्ले स्कूल चलाती हैं और महिला सशक्तिकरण से संबंधित कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं. उनकी पहचान एक समाजसेवी और कारोबारी महिला की है. (dw.com)

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