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सपा के निर्णय से भंवर में पड़ी स्वामी और उनकी बेटी की राजनीतिक विरासत
04-Feb-2024 12:24 PM
सपा के निर्णय से भंवर में पड़ी स्वामी और उनकी बेटी की राजनीतिक विरासत

लखनऊ, 4 जनवरी । समाजवादी पार्टी ने लोक सभा की 16 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्या की राजनीतिक नाव को भंवर में डाल दिया है। स्वामी प्रसाद मौर्या अपनी बेटी के सियासी भविष्य के लिए कौन सा रास्ता तय करेंगे, यह सवाल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलहाल, उनके सामने अपने और बेटी के सियासी भविष्य का सवाल खड़ा है।

राजनीतिक जानकर बताते हैं कि सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को टिकट देकर स्वामी के सामने दुविधा पैदा कर दी है कि वे अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाएं या पार्टी धर्म का पालन करें।

संघमित्रा मौर्या 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से पहली बार सांसद बनी थी। इस चुनाव में स्वामी ने उन्हें जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। लेकिन 2022 के चुनाव में अचानक स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़कर सपा में चले गए और भाजपा के खिलाफ कुशीनगर से चुनाव लड़े। उस समय संघमित्रा ने अपनी पार्टी भाजपा का साथ न देकर पिता के पक्ष में प्रचार किया था। इस बात का स्थानीय स्तर पर काफी विरोध होने के बावजूद संघमित्रा को पार्टी से नहीं निकाला गया। वह अभी भाजपा में खूब सक्रिय नजर आ रही हैं।

ऐसे में भाजपा अगर संघमित्रा को वहां से टिकट देती है तो संघमित्रा और धर्मेंद्र आमने-सामने होंगे। ये देखना दिलचस्प होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्या क्या करेंगे, वे बेटी का साथ देंगे या पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा साबित करते हुए धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार करेंगे।

दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्या की एक के बाद एक सनातन धर्म पर टिप्पणियों से धर्म प्रेमियों में खासी नाराजगी है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि स्वामी प्रसाद और उनकी बेटी संघमित्रा की राजनीति बड़ी दुविधा भरी है। इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं स्वामी प्रसाद खुद ही हैं। अच्छा खासा वे भाजपा में कैबिनेट मंत्री थे। लेकिन 2022 में उन्होंने भाजपा छोड़कर पार्टी के सामने काफी बड़ा संकट खड़ा किया। उनकी बेटी ने भी उनका साथ दिया। वो अपनी पार्टी छोड़ सपा कार्यकर्ता बन गई थीं। वहां तक तो फिर ठीक था लेकिन बाद में उन्होंने सनातन के खिलाफ जो बयानबाजी की है, वह उनके लिए और भी घातक होती जा रही है। उसको दोनों तरफ के लोग नहीं पचा पा रहे हैं।

फिलहाल स्वामी की बेटी भाजपा में ही है। वे भाजपा से टिकट की दावेदार हैं, वे भाजपा के मंच और माइक पर नजर आने लगी हैं। केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाने में भी काफी आगे हैं। यदि उन्हें मनमुताबिक इस रास्ते पर चलने का अवसर मिला तो उनका मुकबला सपा के धर्मेंद्र यादव से होगा, ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने असहज स्थिति होगी।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने सनातन के खिलाफ बयान देखकर भाजपा और बसपा में जाने के रास्ते बंद कर लिए हैं। अगर स्वामी से सपा को नुकसान होगा तो अखिलेश उन्हें किनारे कर देंगे। सपा ने बदायूं से टिकट घोषित कर संघमित्रा के लिए सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। उधर स्वामी भी एकला चलो की राह पर चल रहे हैं। ऐसे में बेटी की राजनीति भंवर में फंसी नजर आ रही है।

सपा के प्रवक्ता सुनील साजन का कहना है कि स्वामी प्रसाद सपा के वरिष्ठ नेता हैं, वे अपनी ही पार्टी के उमीदवार का प्रचार करेंगे।

भाजपा के प्रवक्ता आनंद दुबे का कहना है कि पार्टी में टिकट किसे मिलेगा, यह शीर्ष नेतृत्व तय करता है, जो उसके मापदंडों पर खरा उतरेगा, पार्टी उसे ही टिकट देगी। जिले में लोकसभा चुनाव की तैयारी चल रही है। पार्टी जिसे भी टिकट देगी, उसे पूरी मजबूती से चुनाव लड़ाकर जिताया जायेगा।

ज्ञात हो कि 2019 में भाजपा की संघमित्रा मौर्या ने अखिलेश के भाई और सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव को 30 हजार वोटों से हराया था। भाजपा को जहां 5 लाख से ज्यादा वोट मिले थे, वहीं सपा को 4 लाख 91 हजार वोट हासिल हुए थे।

(आईएएनएस)

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