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जोखिमभरा अतिआत्मविश्वास
प्रदेश में कुछ जगहों पर भाजपा के नेता अतिआत्मविश्वास में हैं। इन सबकी वजह से कई जगहों पर सभाओं-रैलियों में अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुट पाई है।
अंबिकापुर में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज की नामांकन रैली भीड़ के लिहाज से फीका रहा। बताते हैं कि नामांकन रैली, और सभा में भीड़ जुटाने के लिए विधायकों व पार्टी के पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी। मगर वो एक-दूसरे पर छोड़ते रहे। रैली में कम से कम 10 हजार से अधिक लोगों के आने की उम्मीद थी, लेकिन डेढ़-दो हजार से ज्यादा नहीं पहुंचे।
भीड़ की एक वजह यह भी रही कि शुक्रवार को तेज गर्मी थी। इस वजह से भी लोग कम संख्या में पहुंचे। लेकिन सरगुजा लोकसभा के प्रभारी अमर अग्रवाल ने इसको गंभीरता से लिया, और उन्होंने जिले के पदाधिकारियों पर जमकर नाराजगी जताई। ये अलग बात है कि चिंतामणि महाराज अब भी व्यक्तिगत साख और मोदी की वजह से बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि अतिआत्मविश्वास जोखिमभरा हो सकता है। आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार किस तरह रहता है, इस पर कुछ हद तक नतीजे निर्भर करेंगे। देखना है आगे क्या होता है।
वोट खूब गिरे, मिलेंगे किसे?
बस्तर में सबसे कम मतदान बीजापुर विधानसभा में करीब 43 फीसदी हुआ। धुर नक्सल प्रभावित बीजापुर में मतदान पहले भी कभी 50 फीसदी को नहीं छू पाया था। इस बार पहले की तुलना में सुरक्षा के तगड़े इंतजाम थे। किसी तरह नक्सल घटना होने पर चिकित्सकीय प्रबंध भी किए गए थे। एयर एम्बुलेंस की भी व्यवस्था थी। फिर एक घटना को छोडक़र बीजापुर में चुनाव शांतिपूर्वक निपट गया।
प्रचार का हाल यह रहा कि कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही दल के नेताओं ने बीजापुर में रैली-सभाओं से परहेज किया। और तो और कई बूथों पर दोनों ही दल के एजेंट तक नहीं थे। अंदरुनी इलाकों का हाल तो और भी बुरा था। कुल मिलाकर दोनों ही दलों ने ज्यादातर जगहों पर मतदाताओं तक पहुंच बनाने की कोशिश भी नहीं की। ऐसे में यहां किस दल को बढ़त मिलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
अब की बार अनुभवी सांसद
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 11 सीटों में अपने उम्मीदवार बदल दिए थे। उसने 9 सीटों पर जीत हासिल की और सभी सांसद नए थे। कांग्रेस की सीट जीतने वाले दीपक बैज और कोरबा जीतने वाली ज्योत्सना महंत भी पहली बार संसद पहुंचीं। इस तरह पिछली लोकसभा में छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व करने वाले सभी सदस्य पहली बार संसद पहुंचे थे। मगर, इस बार हो सकता है कि कुछ अनुभवी सदस्य भी संसद पहुंचें, यदि यह मानकर चला जाए कि सभी सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला है। कोरबा ऐसी एक ही सीट है, जहां से कोई भी जीते वहां के मतदाताओं को अनुभवी सांसद मिलेगा। कांग्रेस की ज्योत्सना महंत मौजूदा सांसद रहते चुनाव लड़ रही हैं, भाजपा की सरोज पांडेय तो दुर्ग लोकसभा के अलावा राज्यसभा में भी प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इस बार 7 सीटें ऐसी हैं जिनमें कोई भी जीतें पहली बार लोकसभा में दिखाई देंगे। जैसे, रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल और विकास उपाध्याय, सरगुजा में शशि सिंह और चिंतामणि महाराज, रायगढ़ में राधेश्याम राठिया और डॉ. मेनका सिंह, बिलासपुर में देवेंद्र यादव और तोखन साहू, जांजगीर में डॉ. शिव डहरिया और कमलेश जांगड़े, बस्तर में कवासी लखमा और महेश कश्यप तथा कांकेर में भोजराज नाग और वीरेश ठाकुर के बीच सीधा मुकाबला दिखाई दे रहा है। ये सभी पहली बार लोकसभा पहुंचने के लिए मैदान में हैं। दुर्ग से भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल, महासमुंद से कांग्रेस प्रत्याशी ताम्रध्वज साहू, राजनांदगांव से भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडेय पहले संसद पहुंच चुके हैं।
जो उम्मीदवार इस बार मैदान में हैं, उनमें तीन सरोज पांडेय, ताम्रध्वज साहू और विजय बघेल ऐसे हैं, जो लोकसभा के अलावा विधानसभा में भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इन तीनों के अलावा चिंतामणि महाराज, देवेंद्र यादव, तोखन साहू, डॉ. शिव डहरिया, बृजमोहन अग्रवाल, विकास उपाध्याय, विजय बघेल, भूपेश बघेल, कवासी लखमा और भोजराज नाग ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके पास विधानसभा में प्रतिनिधित्व का अनुभव है।
आसार यही है कि कांग्रेस भाजपा के बीच सीटों का बंटवारा कुछ भी हो, इस बार जो लोकसभा में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व पिछली बार से अधिक अनुभवी नेताओं का रहेगा।
शॉपिंग मॉल कल्चर
प्रकृति ने भुट्टा या मकई की खुद ही अच्छी पैकिंग कर रखी है लेकिन फिर भी शॉपिंग मॉल या सुपर बाजार यह प्लास्टिक बैग में पैक करके बेचा जा रहा है। केले का छिलका उतारकर उसे भी एयरटाइट प्लास्टिक पाउच में पैक करके बेचने के लिए सजाया जा रहा है। पैकिंग पर बार कोड के साथ छिले हुए भुट्टे, छिले हुए केले नहीं लिखे होंगे बल्कि लिखा होगा- पील्ड कॉर्न कॉब या पील्ड बनाना।