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एकला चलने की सलाह
चर्चा है कि पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू चुनाव प्रबंधन में अपनी भागीदारी चाहते हैं। साहू को विधानसभा टिकट नहीं दी गई थी। वो तीन बार विधायक, और एक बार महासमुंद से सांसद रहे हैं। रमन सरकार में मंत्री भी रहे। साथ ही चंद्रशेखर साहू पीएससी के सदस्य भी रहे हैं। संगठन में भी अहम जिम्मेदारी मिलती रही है। साहू प्रदेश किसान मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे। मगर वो कार्यकर्ताओं के पसंदीदा नहीं रहे।
चंद्रशेखर साहू को लेकर पार्टी के भीतर यह कहा जाता है कि जब भी वो पॉवरफुल रहे। उनका व्यवहार एकदम बदल जाता है। यही वजह है कि अभनपुर सीट से उनकी टिकट काटकर नए चेहरे इंद्र कुमार साहू को प्रत्याशी बनाया गया, तो कार्यकर्ताओं में स्वागत किया। इंद्र कुमार साहू कांग्रेस के ताकतवर नेता धनेन्द्र साहू को हराने में सफल रहे।
दूसरी तरफ, चंद्रशेखर साहू को संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है। उन्हें महासमुंद में प्रचार के लिए कहा गया था। महासमुंद का चुनाव निपटने के बाद रायपुर लोकसभा में अपनी भूमिका चाहते हैं। चर्चा है कि पार्टी के कई प्रमुख नेताओं से उनकी चर्चा हुई है। विधानसभा वार जिम्मेदारी बंट चुकी है। अब चंद्रशेखर साहू को सलाह दी गई है कि वो कार लेकर अकेले चुनाव प्रचार में निकल जाए।
उम्मीदवारों के खिलाफ मामले
चुनाव प्रचार के बीच में प्रत्याशियों के खिलाफ कई गड़े मुद्दे सामने आ जाते हैं। सरगुजा में कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के खिलाफ कथित तौर पर जमीन कब्जे का मामला उछला, तो भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज के खिलाफ आत्मानंद स्कूल बनवाने के नाम पर अवैध वसूली का मामला सामने आ गया।
चिंतामणि महाराज लूंड्रा, और सामरी से विधायक रहे हैं। एक पत्र वायरल हुआ है जिसमें पंच-सरपंचों ने आत्मानंद स्कूल खोलने के लिए 51 हजार रूपए लेने का आरोप लगाया था। और इसकी शिकायत सीएम तक की थी। अब चुनाव में इसका कितना असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
इसमें नहीं, उपचुनाव में दिलचस्पी
कहावत है एक अनार सौ बीमार। मगर रायपुर दक्षिण में सौ नहीं 55 कम है। बाकी बचे 45 को 4 जून का इंतजार हैं। इनमें सांसद से लेकर पार्षद तक शामिल हैं।
लग रहा पहली बार विकल्प बनने का अवसर मिल रहा है। क्यों चूकें। सभी भैया को जिताने जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। भैया का बताया हर काम कर रहे। कोई काम छोटा या स्टेटस से कम नहीं मान रहे। गांव-गांव, गली- गली घूम रहे। खासकर दक्षिण क्षेत्र के मोहल्लों का तो कई राउंड का जनसंपर्क कर चुके हैं।
भले ही स्वयं का घर उस क्षेत्र में न आता हो। अब सबको भैया के इस्तीफे और दीपावली के आसपास उप चुनाव का। अब देखना यह है कि इन 45 में कौन भैया की पसंद होता है या सीट घर के लिए सुरक्षित रखते हैं। जो दावेदार नहीं वे भैया के करीबी एक महाराज को उपयुक्त और जिताऊ प्रत्याशी बताने लगे हैं।
हिलते-डोलते विधायक
एक विधायक की दिनचर्या, जनसंपर्क अभियान की खूब चर्चा है। पहली ही बार में चुनाव क्रैक करने वाले ये नए नवेले माननीय स्वयं के राजनीति में रमने की बात भी कहते हैं। इनके जनसंपर्क के तौर तरीके पर पटरी न बैठने से इनका एक सुरक्षाकर्मी पीएसओ ने तबादला ले लिया है। अमूमन ऐसा होता नहीं है।
सशस्त्र बल के जवान तो पीएसओ बनने जोड़ तोड़ करते हैं लेकिन यहां मामला उलट निकला। बताते हैं कि जनसंपर्क के दौरान विधायक जी क्षेत्र के जिस भी नेता, कार्यकर्ता के यहां जाते हैं, हिलते डुलते निकलते हैं। उसके बाद उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है । वाई कैटेगरी के सुरक्षाधारी इन नेताजी के एक एक कर्मी छोडऩे लगें तो सुरक्षा एजेंसी की दिक्कतें बढ़ जाएंगी।
बूथ का हिसाब करोड़ों में !
चुनावी रैलियां, पोस्टर-बैनर, टीवी रेडियो के विज्ञापन पर खर्च तो अपनी जगह हैं मगर असल खर्चीला काम है अपने पक्ष के मतदाताओं को घरों से निकालकर मतदान केंद्र तक पहुंचाना। इसमें जिसे सफलता मिलती है, जीत का सेहरा उसके सिर पर बंधता है। इसीलिये हर गंभीर प्रत्याशी और दलों का लक्ष्य होता है कि बूथ को मजबूत किया जाए।
इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम का नामांकन वापस लेना और फिर भाजपा में शामिल होना इस समय चर्चा में है। कांग्रेस छोडऩे की वजह तो उन्होंने भी दूसरे कांग्रेसियों की तरह सनातन धर्म के प्रति निष्ठा को बताया है, लेकिन छन कर कुछ दूसरे कारण भी सामने आए हैं। इनमें से एक है, मतदान के दिन बूथ पर खर्च कितना किया जाए। अक्षय कांति करोड़पति हैं। पार्टी को शायद उम्मीद थी कि चुनाव का सारा खर्च वे बिना झिझक उठाएंगे। उन्हें वोटिंग के दिन बूथ पर होने वाले खर्च के बारे में भी बता दिया गया। पहले कहा गया कि चार एजेंटों के लिए 6000 रुपये और इतना ही खर्च लगभग 30 कार्यकर्ताओं के भोजन पानी के लिए। यानि एक बूथ पर सिर्फ मतदान के दिन 12 हजार रुपये खर्च। इंदौर में लगभग 2500 बूथ हैं। मतलब करीब 3 करोड़ रुपये। कहा जाता है कि इसके बाद प्रत्याशी को बताया गया कि एजेंट 6000 में नहीं मिल रहे हैं, उनको 10 हजार देना पड़ेगा। प्रत्याशी सोच में पड़ गए। खर्च करीब 4 करोड़ पहुंच रहा था। वह सीट जहां से कांग्रेस पिछले 40 सालों से हारती रही है, शायद प्रत्याशी को इतनी रकम बहा देना सही सौदा नहीं लगा।
बूथ मैनेजमेंट बहुत संवेदनशील मामला होता है। अधिकांश प्रत्याशी अपना बूथ मैनेजमेंट खुद ही देखते हैं। एजेंटों तक पैसे सही तरीके से बांटे जाएं इसके लिए विश्वासपात्र लोगों की ड्यूटी लगाई जाती है। क्योंकि, इसमें कई बार अमानत में खयानत हो जाती है। प्रत्याशी खर्च करने के बावजूद चुनाव नहीं निकाल पाता।
इंदौर के मामले ने एक अंदाजा लगाने का मौका दिया है कि आखिर प्रत्याशियों का खर्च चुनाव आयोग की निर्धारित सीमा से अधिक कैसे पहुंच जाता है। अपने छत्तीसगढ़ में तीसरे चरण में जिन सात सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उनमें भी हर एक सीट पर 22-23 सौ मतदान केंद्र हैं। इंदौर से कुछ कम ज्यादा यहां भी उतना ही खर्च होना है। जब कोई पार्टी किसी प्रत्याशी को मजबूत बताकर मतदान में उतारती है तो मजबूती का मतलब उसकी वित्तीय मजबूती भी होती है।
गुड़ाखू और चेपटी की चिंता
पब्लिक मीटिंग में भीड़ को स्टार प्रचारक के आते तक रोके रखने के लिए कवासी लखमा काफी हैं। 29 अप्रैल को सकरी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सभा से पहले उन्होंने मंच संभाला। शुरुआत में प्रधानमंत्री की नकल करते हुए- भाइयों और बहनों...। फिर भाजपा सरकार की महतारी वंदन योजना पर बोलने लगे। कहा- एक हजार रुपये तो महीने का गुड़ाखू और चेपटी ( देसी शराब की छोटी बोतल) भी नहीं मिलती। मोदी की गारंटी पर कहा- एक गारंटी जरूर है, वह है बीवी छोडऩे की। लखमा ने और भी बातें की जिन पर विवाद भी हो सकता है इसलिये इतना ही ठीक है।
लकड़ी का चॉपर...
पेड़ को तराशे गए लकड़ी के हेलीकॉप्टर की इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर डालने वाले कुछ लोगों ने बताया कि यह बस्तर का है। सर्च करने पर पता चलता है कि दुनिया भर में इस तस्वीर और संबंधित वीडियो को ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर शेयर किया जा रहा है। कुछ ने दावा किया है कि ओरिजनल वीडियो नेशनल जियोग्राफिक चैनल ने रिलीज की है। कुछ का कहना है कि यह वास्तविक नहीं है, एआई से तैयार किया गया है। यदि सचमुच एआई से तैयार किया गया हो तो बुरी बात नहीं है। कम से कम इसमें डीपफेक का मामला तो नहीं बनता, जिसने इन दिनों नामी हस्तियों को परेशान कर रखा है। जो भी हो, जहां के भी बच्चे हों-प्रकृति की गोद में वे खुश दिखाई दे रहे हैं और जो लोग तस्वीर को देख रहे हैं, उनका भी मन खिल रहा है। ([email protected])