ताजा खबर

‘लिव इन रिलेशन आयातित धारणा, भारतीय संस्कृति के लिए कलंक’
08-May-2024 2:15 PM
‘लिव इन रिलेशन आयातित धारणा, भारतीय संस्कृति के लिए कलंक’

 हाईकोर्ट ने बच्चे के संरक्षण के लिए लगाई गई पिता की याचिका खारिज की  

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बिलासपुर, 8 मई। हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप से जन्म लिए बच्चे को संरक्षण देने का अधिकार प्राप्त करने के लिए पेश की गई पिता की अपील को ख़ारिज करते हुए कहा है कि एक विवाहित व्यक्ति के लिए लिव इन रिलेशनशिप से बाहर आना बहुत आसान है, और ऐसे मामलों में, उक्त कष्टप्रद लिव इन रिलेशनशिप से बचे व्यक्ति कि वेदनीय स्थिति और उक्त रिश्ते से जन्म लेने वाली संतानों के संबंध में न्यायालय अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता।  लिव इन रिलेशनशिप जैसी आयातित धारणा अभी भी भारतीय संस्कृति में कलंक के रूप में जारी है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की युगल पीठ ने लिव इन रिलेशनशिप पर अहम् टिप्पणी करते हुए कहा है कि समाज के कुछ क्षेत्रों में अपनाई जाने वाली लिव इन रिलेशनशिप अभी भी भारतीय संस्कृति में कलंक के रूप में जारी है क्योंकि लिव इन रिलेशनशिप आयातित धारणा है, जो कि भारतीय रीति की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत है।  

बस्तर, दंतेवाड़ा क्षेत्र का अब्दुल हमीद तीन साल से एक हिन्दू महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था। महिला ने वर्ष 2021 में धर्म परिवर्तन किये बगैर उससे शादी की। हमीद के पहली पत्नी से तीन बच्चे हैं। लिव-इन में रहते महिला ने अगस्त 2021 में एक बच्चे को जन्म दिया। अचानक 10 अगस्त 2023 को महिला अपने बच्चे के साथ लापता हो गई। अब्दुल हमीद ने वर्ष 2023 में हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान महिला अपने माता-पिता और बच्चे के साथ पेश हुई। महिला ने कोर्ट को बताया कि वह अपनी मर्जी से अपने माता-पिता के साथ रह रही है।

इधर, बच्चे से मिलने न देने पर अब्दुल हमीद ने फैमिली कोर्ट दंतेवाड़ा में आवेदन दाखिल किया। उसने कहा कि वह अपने बच्चे की परवरिश करने में सक्षम है, इसलिए बच्चे को उसके संरक्षण में दिया जाए। फैमिली कोर्ट ने उसके आवेदन को ख़ारिज कर दिया। फैसले के खिलाफ हमीद ने हाईकोर्ट में अपील की। उसने याचिका में तर्क दिया कि उसने मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी की है तथा उसका विवाह वैध है। हाईकोर्ट में महिला की तरफ से कहा गया कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरा विवाह वैध नहीं है। लिव-इन में पैदा हुए बच्चे पर उसके पिता का हक नहीं बनता।

लिव-इन में रह चुके दो अलग-अलग धर्मों को मानने वालों के बीच के इस मामले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि व्यक्तिगत कानून के प्रावधानों को किसी भी अदालत के समक्ष तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि इसे प्रथा के रूप में पेश और साबित नहीं किया जाता है। 

डिवीजन बेंच ने मामले में सुनवाई के बाद 30 अप्रैल 2024 को फैसला सुनाया और फैमिली कोर्ट के 13 दिसंबर 2023 के निर्णय को सही ठहराते हुए बच्चे को संरक्षण देने का अधिकार प्राप्त करने के लिए दायर अपील खारिज कर दी।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news