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राजपथ-जनपथ : दिग्गज घर बैठे
08-May-2024 5:23 PM
राजपथ-जनपथ : दिग्गज घर बैठे

दिग्गज घर बैठे

विधानसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस के कई दिग्गजों की सक्रियता बेहद कम हो गई है। इनमें पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, और मोहम्मद अकबर शामिल हैं। ये दोनों दिग्गज तो एक तरह से लोकसभा चुनाव प्रचार से भी अलग रहे। यही नहीं, पूर्व नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव भी पारिवारिक वजहों से प्रचार में पूरा समय नहीं दे सके।

सीतापुर से 4 बार विधायक रहे अमरजीत भगत ईडी की जांच के घेरे में हैं। भूपेश सरकार में ताकतवर मंत्री रहे भगत सरगुजा सीट से टिकट की दावेदारी कर रहे थे। मगर ईडी की रेड की वजह से परेशानी में घिरे हैं। उन्होंने सरगुजा से कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के प्रचार में पूरा समय नहीं दे पाए।

भगत, शशि सिंह के नामांकन मौके पर कुछ देर साथ थे, लेकिन बाद में वो निकल गए। प्रचार के अंतिम दिनों में जरूर अपने क्षेत्र में दौरा किया, लेकिन अपेक्षाकृत सक्रियता नहीं दिखी। कुछ ऐसा ही हाल पूर्व नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का भी रहा। उनके पारिवारिक सदस्य की बीमारी की वजह इलाज के लिए मुंबई में रहे। यद्यपि वीडियो कॉन्फ्रेंस कर चुनाव प्रचार में अपनी भागीदारी निभाने की कोशिश की।

पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर तो एक तरह से चुनाव प्रचार से गायब रहे। उन्होंने जरूर राजनांदगांव सीट से कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल के प्रचार की रणनीति तैयार की थी, लेकिन अपने क्षेत्र कवर्धा नहीं गए। और तो और रायपुर में चुनाव के दौरान सक्रिय रहते थे, लेकिन इस बार वो कांग्रेस के पंडाल में नजर नहीं आए।

पायलट का रिपोर्ट कार्ड

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट लोकसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ को ज्यादा समय नहीं दे पाए लेकिन एक बदलाव को लोग महसूस कर रहे हैं कि चुनाव के दौरान कहीं कोई बड़ी गुटबाजी की खबर बाहर नहीं आई। सब अपने-अपने क्षेत्र में काम कर रहे हैं और जरूरत के मुताबिक एक-दूसरे की मदद करते भी नजर आ रहे हैं।

खबर है कि पायलट ने सारे बड़े नेता, वर्तमान व पूर्व विधायकों के अलावा स्थानीय गुट के नेताओं को आंखें दिखाकर कहा है कि वे मिलकर काम करें और किसी भी तरह की शिकायत नहीं आनी चाहिए। चुनाव के बाद वे सारे नेताओं का रिपोर्ट कार्ड चेक करेंगे। पायलट यह जानते हैं कि गुटों में बंटने का क्या नुकसान होता है। ऐसे में कांग्रेस के नेताओं को संभलकर रहना होगा, क्योंकि कोई रिपोर्ट कार्ड बनाए न बनाए हारने वाले जरूर यह बताएंगे कि चुनाव के दौरान कौन, कहां सक्रिय था और किसकी तरफ से बॉलिंग-बैटिंग कर रहा था।

बचे 26 दिन उठने वाले सवाल

छत्तीसगढ़ की सभी 11 सीटों पर मतदान हो जाने के बाद अब परिणाम की प्रतीक्षा है। नतीजा आने में कुल 26 दिन शेष हैं। इधर शाम 6 बजे मतदान खत्म हुआ और लोग एक दूसरे से पूछने लगे, किस दल को कितनी सीटें? छत्तीसगढ़ में क्या 11 में 11 सचमुच भाजपा को मिल पाएगी? कांग्रेस दो सीट से कम पर आ जाएगी, उतने में ही रह जाएगी या इस बार कुछ ज्यादा निकलने जा रही है? लोकसभा में कांग्रेस साफ हो गई तो किस-किस नेता की राजनीति खत्म हो जाएगी? यदि कांग्रेस पिछली बार से ज्यादा सीट लेकर आ गई और भाजपा की कम हो गई तो छत्तीसगढ़ के मौजूदा सरकार पर क्या फर्क पड़ेगा ? केंद्र में क्या एनडीए गठबंधन क्या सचमुच 400 पार या उसके आसपास पहुंचेगा? ऐसा होगा तो राहुल गांधी का भविष्य और इंडिया गठबंधन का क्या हश्र होगा? क्या फिर सचमुच आरक्षण खत्म हो जाएगा और संविधान बदल जाएगा? इसके उलट, एनडीए में स्पष्ट बहुमत का संकट तो खड़ा नहीं हो जाएगा? यदि ऐसा हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी ही रहेंगे या गठबंधन वाले दल उनके बदले किसी और को चुनने का दबाव भाजपा पर बनाएंगे? क्या कुछ छोटी पार्टियां इंडिया से एनडीए में कूद जाएंगीं? भाजपा के कौन-कौन सीनियर लीडर पक्के तौर पर चुनाव जीतते दिख रहे हैं? मंत्रिमंडल में इनमें से किसे लिया जाएगा? मतदाताओं में पिछले चुनावों की तरह उत्साह दिखाई क्यों नहीं दे रहा था? जहां कम वोटिंग हुई है, वहां उसका फायदा किसे मिलेगा? कहीं-कहीं बंपर वोटिंग हुई है, उसका क्या संकेत है? यूपी और मध्यप्रदेश का रिजल्ट कैसा आने वाला है? पिछली बार की तरह क्या मध्यप्रदेश में भी भाजपा को क्लीन स्विप है? यूपी में क्या योगी आदित्यनाथ बीजेपी की सीटें बढ़ा पाएंगे? यूपी में कमजोर प्रदर्शन रहा तो योगी के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा? छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में जो नए नेतृत्व भाजपा ने सामने लाए हैं, वे क्या परिणाम के बाद स्थायी हो जाएंगे और पुराने लीडर हमेशा के लिए किनारे कर दिए जाएंगे?

पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र और उनकी ओर उठाए गए मुद्दों का नतीजों पर क्या असर होगा, इस पर भी चर्चा हो रही है। क्या एसटी-एससी समुदायों ने आरक्षण समाप्त करने और संविधान बदलने के विपक्ष के आरोपों पर यकीन किया है? क्या मतदाताओं ने भरोसा किया कि इंडिया गठबंधन की सरकार आई तो लोगों की संपत्ति छीनकर मुसलमानों में बांट दी जाएगी? क्या पिछड़े वर्गों के आरक्षण को छीनकर अल्पसंख्यकों को देने के भाजपा के आरोप ने मतदाताओं पर असर डाला है? छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना की वजह से महिलाओं के वोट क्या लोकसभा में भी भाजपा को मिले, विधानसभा की तरह? कांग्रेस की महालक्ष्मी योजना, वह क्या वैसा असर डालने वाली है, जैसा महतारी वंदन का था?

बचे चार चरणों के मतदान और काउंटिंग की तारीख पास आते-आते इन सवालों की सूची और लंबी होती जाएगी। ऐसा नहीं है कि सवाल करने वाला कुछ नहीं जानता और आपको जानकार मानता है। वह पूछता ही इसीलिए है कि वह आपके कमजोर आकलन से असहमत होकर, अपनी एक्सपर्ट टिप्पणी कर सके।

एग्जिट पोल का प्रसारण अंतिम चरण का मतदान खत्म होने के बाद एक जून की शाम से शुरू हो जाएगा। उसके बाद धडक़नें तेज होंगी, उतावलापन बढ़ेगा और चर्चा की दिशा बदल जाएगी। यह ईवीएम के खुलने तक चलेगी। फिर सरकार बनने तक इस पर बहस होगी कि नतीजा ऐसा क्यों आया।

मतदान केंद्र के बाहर भगवान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीलीभीत यूपी में रैली के दौरान राम मंदिर के निर्माण और करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण का जिक्र किया था। इसकी शिकायत कांग्रेस ने चुनाव आयोग से की थी। आयोग ने मोदी को क्लीन चिट देते हुए कहा कि वह भाषणों में इन दोनों निर्माण कार्यों का उल्लेख करने को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं मानता। यह धर्म के आधार पर वोट की अपील नहीं है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 5 मई को राधोगढ़ में चुनाव प्रचार के अंतिम दिन रैली निकाली, जिसमें भगवान राम की फोटो प्रदर्शित की गई थी। कांग्रेस ने फिर इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की। इस पर फैसला अभी नहीं आया है। अब वहां वोट भी पड़ चुके हैं। फैसला हो सकता है कि यूपी की रैली की तरह ही आए। मगर, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में वह प्रयोग भाजपा ने नहीं किया, जो गुजरात के गांधीनगर में हुआ। पत्रकार रवीश कुमार ने अपने ट्विटर हैंडल पर यह तस्वीर डाली है, जिसमें गांधीनगर सीट के एक मतदान केंद्र के बाहर भगवान राम के कट आउट लगे हैं। भाजपा के पंडाल से मतदाता पर्ची लें, भगवान का दर्शन करें और वोट डालें।

डीएमएफ फंड वाले जिले का हाल

कोरबा संसदीय सीट के सैला ग्राम पंचायत में ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार किया। सुबह 11 वोट डाले गए, उसके बाद पहले से घोषित चुनाव बहिष्कार का पालन करते हुए बाकी 600 मतदाताओं ने वोट डालने से मना कर दिया। पिछले 15 साल से इस गांव के लोग सैला से लैंगी के बीच सडक़ की मांग कर रहे हैं। पोड़ी-उपरोड़ा ब्लॉक का यह गांव है। पूरा कोरबा जिला खनिज उत्खनन से प्रभावित है। जिला खनिज न्यास कोष (डीएमएफ) में दंतेवाड़ा जिले के बाद सबसे अधिक राशि इसी जिले को मिलती है। इस फंड के करोड़ों रुपये अफसरों ने जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से अनाप-शनाप खर्च कर फूंक डाले। उसके एक छोटे से हिस्से से वह सडक़ बन सकती थी, जिसके लिए ग्रामीणों को मतदान का बहिष्कार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। क्या यही है- मतदान का पर्व और लोकतंत्र का गर्व?   ([email protected])        

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