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नयी दिल्ली, 8 मई। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि ‘क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश) या ‘इंद्रदेव पर निर्भरता’ उत्तराखंड में जंगल में आग की बढ़ती घटनाओं का निदान नहीं है और अधिकारियों को इस समस्या से निपटने के लिए एहतियाती उपाय करने होंगे।
उत्तराखंड सरकार ने राज्य में जंगल की भीषण आग पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदमों से न्यायालय को अवगत कराते हुए कहा कि आग की घटना के कारण राज्य का केवल 0.1 प्रतिशत वन्यजीव क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को बताया कि पिछले साल नवंबर से राज्य में जंगल में आग लगने की 398 घटनाएं हुई हैं और इनमें पांच लोगों की मौत हुई है।
उत्तराखंड के उपमहाधिवक्ता जतिन्दर कुमार सेठी ने पीठ को बताया कि सभी घटनाएं ‘मानव-निर्मित’ थीं। उन्होंने कहा कि जंगल की आग के संबंध में 388 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं और उनमें 60 लोगों को नामजद किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘लोग कहते हैं कि उत्तराखंड का 40 प्रतिशत हिस्सा आग से जल रहा है, जबकि इस पहाड़ी राज्य में वन्यजीव क्षेत्र का केवल 0.1 प्रतिशत हिस्सा ही आग की चपेट में है। और ये सभी मानव-निर्मित थे। नवम्बर से लेकर आज तक जंगल में आग की 398 घटनाएं हुई हैं, सभी मानव-निर्मित।’’
उपमहाधिवक्ता ने पीठ के समक्ष अंतरिम स्थिति रिपोर्ट भी रखी, जिसमें जंगल की आग से निपटने के लिए अधिकारियों द्वारा उठाये गये कदमों का ब्योरा भी समाहित था।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘‘...‘क्लाउड सीडिंग’ (कृत्रिम बारिश) या ‘‘इंद्र देवता पर निर्भर रहना’’ इस मुद्दे का समाधान नहीं है और उनका (याचिकाकर्ता का) कहना सही है कि आपको (राज्य को) निवारक उपाय करने होंगे।’’
पीठ राज्य में जंगल की आग की बढ़ती घटनाओं के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी।
सेठी ने कहा कि आग बुझाने के लिए भारतीय वायुसेना के कई हेलीकॉप्टर को सेवा में लगाया गया है। इस पर पीठ ने पूछा, ‘‘आग के कारण मरने वालों की संख्या क्या है?"
उन्होंने जवाब दिया कि जंगल की आग के कारण पांच लोगों की मौत हो गई।
पीठ ने यह भी जानना चाहा कि ऐसी घटनाओं में कितने जानवर मारे गये हैं? इस बारे में सेठी ने कहा कि वह जानकारी प्राप्त करके अदालत को अवगत करायेंगे।
मामले में पक्षकार बनने के लिए अर्जी दायर करने वाले एक वकील ने पीठ से कहा कि राज्य सरकार एक "बेहद गुलाबी तस्वीर" पेश कर रही है, लेकिन विभिन्न मीडिया रिपोर्ट का दावा है कि जंगल की आग से निपटने में शामिल पूरी मशीनरी चुनाव-संबंधी काम में व्यस्त है।
उन्होंने कहा, "स्थिति दयनीय है। जो लोग आग बुझाने जाते हैं उनके पास उचित उपकरण तक नहीं हैं।"
मामले में पेश हुए एक अन्य वकील ने कहा कि पूरे जंगल देवदार के पेड़ों से ढके हुए हैं और यही जंगल की आग का कारण है।
पीठ ने कहा, "अंग्रेजों ने इन्हें लगाया होगा, लेकिन अब उनका इस्तेमाल देश में किया जा रहा है। हम उन पेड़ों को खत्म नहीं कर सकते और वे निचले इलाकों में नहीं उग सकते।"
न्यायालय ने कहा कि कोई भी इस बात पर विवाद नहीं कर रहा है कि जंगल की आग "गंभीर समस्या" है।
सुनवाई के दौरान उत्तराखंड में बारिश की संभावना पर एक हालिया समाचार रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया।
सेठी ने कहा कि जंगल की आग सिर्फ उत्तराखंड के लिए ही अनोखा नहीं है, बल्कि दुनिया भर से इसकी खबरें आती हैं।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 मई की तारीख तय की।
शीर्ष अदालत ने वर्ष 2019 में जंगल की आग पर एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा था कि ऐसी घटनाएं, खासकर गर्मियों के दौरान, पहाड़ी राज्यों में एक गंभीर समस्या पैदा करती हैं और इसका कारण बड़ी संख्या में देवदार के पेड़ों की मौजूदगी है, जो अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं। (भाषा)