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कार्टूनिस्ट सागर कुमार
अमरीका में बसे हुए कांग्रेस से जुड़े एक नेता, सैम पित्रोदा ने अपने ताजा बयान से एक बार फिर बवाल खड़ा कर दिया है। कुछ ही दिन पहले उन्होंने एक और बयान दिया था जिसे कांग्रेस पार्टी को उनका निजी बयान बताना पड़ा था। उन्होंने अमरीका में विरासत-टैक्स की चर्चा की थी, और कहा था कि किसी अतिसंपन्न के गुजरने पर उसकी संपत्ति का खासा हिस्सा टैक्स के रूप में देश को मिलता है जो कि पूरे समाज को काम आता है। अभी सैम पित्रोदा ने भारत के लोगों की जेनेटिक विविधता की बात करते हुए कहा कि यहां पूर्व के लोग चीनियों जैसे, पश्चिम के लोग अरब जैसे, उत्तर के लोग गोरों जैसे, और दक्षिण के लोग अफ्रीकी जैसे दिखते हैं। उन्होंने कहा कि यही वह भारत है जिसमें मैं विश्वास करता हूं, यहां हर कोई एक-दूसरे के लिए थोड़ा-बहुत समझौता करते हैं। जब इस बयान को लेकर बवाल हुआ, और खासकर नरेन्द्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से जोडक़र हमले किए, तो शाम तक ही सैम पित्रोदा ने इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने से कांग्रेस को आम चुनाव के मतदान के बीच होने वाला नुकसान तो नहीं थमा, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने रिकॉर्ड के लिए अपने आपको इस बयान से अलग कर लिया, और इसकी निंदा की है।
जैसा कि सैम पित्रोदा का ओहदा था, वे विदेशों में बसे हुए भारतीयों के बीच कांग्रेस संगठन के मुखिया थे, और जाहिर है कि वे दूसरे देश में बसे हुए हैं, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जहां की सांस्कृतिक सहनशीलता एक अलग दर्जे की रहती है। वे पश्चिम के देशों में लगातार रहते हुए उसी स्वतंत्रता के आदी हैं, और वहां पर किसी वैचारिक बात पर ऐसा बवाल खड़ा नहीं होता है कि लोग उसे संपत्ति को छीनकर दूसरों में बांट देने का नारा बना दें। सैम पित्रोदा की न पिछली बात में एक विचार-विमर्श के स्तर पर कुछ गलत था, और न ही इस बार भारत की विविधता को लेकर कही हुई उनकी बात में कोई नाजायज बात है। उन्होंने अभी भारत के अलग-अलग इलाकों के लोगों के रूप-रंग को लेकर जो कहा है, वह तो जेनेटिक शोध में अच्छी तरह स्थापित बात है। जिन लोगों को वैज्ञानिक शोध पर आधारित ऐसे नतीजों को पढऩा है वे भारत के एक पत्रकार टोनी जोसेफ की लिखी हुई किताब अर्ली इंडियंस पढ़ सकते हैं जो कि डीएनए सुबूतों के आधार पर लिखी गई है। उन्होंने इसमें 65 हजार साल पहले का इतिहास बताया है जब आधुनिक मानव के पूर्वज होमो सेपियंस के एक समूह ने अफ्रीका से आकर भारतीय उपमहाद्वीप में पैर रखे थे। यही सबसे पहले भारतीय हुए। इसके बाद ईसा के 37 सौ बरस पहले ईरान के किसान उस वक्त के भारत में आए, और उनका डीएनए यहां मिला। यह पूरी किताब वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित है, और यह किसी देश या जाति के गौरव की धारणा के साथ मेल नहीं खाती। यह किताब कई तरह के असुविधा पैदा करने वाले तथ्य सामने रखती है, जिससे कई जातियों का गुरूर टूटता है। इस किताब को आए कुछ बरस हो चुके हैं, और उसके बाद इसका अधिक जानकारी का नया संस्करण भी आ गया है, लेकिन उसे लेकर कोई बवाल नहीं हुआ, अब जब चुनाव के बीच सांप-नेवले जैसी दुश्मनी वाले कांग्रेस और भाजपा के बीच यह बात निकली, तो इसका विवाद दूर तक जाना ही था। सैम पित्रोदा की बात को देखें तो वह भारत की विविधता में एकता वाली बात है जो कि भारत का सम्मान करने की है, लेकिन भारत के कुछ राजनीतिक दलों में हर बात को अपना अपमान साबित करने की अपार क्षमता है, और उसी ताकत से सैम पित्रोदा की कही बात पर इतना बवाल हुआ कि कांग्रेस पार्टी ने ही उन्हें इस्तीफा देने का एक मौका दे दिया।
आज दुनिया में वंशावली बनाने की दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए ऐसी कई वेबसाइटें हैं जो कि उनके पुरखों को ढूंढ निकालती हैं, और उनकी मौजूदा पीढिय़ों के लोगों के साथ उनका मेल कराती हैं। भारत में भी दुनिया के बहुत से देशों का डीएनए आया हुआ है, और तरह-तरह के विदेशी खून की वजह से इस देश के अलग-अलग प्रदेशों के लोगों के रूप-रंग में, कद-काठी में कई तरह का फर्क साफ दिखता है। लोगों को अपनी जड़ों को लेकर शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए। किसी भी इंसान के लिए यह पसंद की कोई बात तो होती नहीं कि वे किस मां-बाप से पैदा हों, किस नस्ल, रंग, जाति, धर्म, या राष्ट्रीयता के हों। भारत में आज रक्त शुद्धता को लेकर जिस तरह का दुराग्रह चल रहा है, वह पूरी तरह से अवैज्ञानिक है। डीएनए विज्ञान साफ-साफ बताता है कि मोहन जोदड़ो के वक्त से किस तरह अफ्रीका से आए हुए दक्षिण भारत में बसे हुए लोग ईरान और योरप से आए हुए लोगों से मिले, और फिर एक मिलीजुली नस्ल उत्तर भारत में बिखरी। उत्तर-पूर्व के राज्यों के लोगों का डीएनए, चीन के लोगों के डीएनए से दसियों हजार साल पहले कहीं न कहीं मिलता-जुलता रहा है, और उस वक्त तो देशों की सरहद नहीं थी, और भौतिक आवाजाही से डीएनए फैलता था। ऐसे में सैम पित्रोदा की कही बात को लेकर उनकी राजनीतिक भीड़त्या कर देना आसान बहुत है, यह बात लुभावनी भी बहुत है, और कांग्रेस पार्टी इसका विरोध करने की हालत में भी नहीं है, लेकिन उनकी कही बात पर वैज्ञानिक विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों से बात करके देखा जाए, तो समझ पड़ेगा कि उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा है, और उन्होंने मानो भारतीय पत्रकार टोनी जोसेफ की लिखी किताब की कुछ पंक्तियां ही पढ़ी हैं जो कि बिना किसी विवाद के हिन्दुस्तान में बिक रही है।
राजनीति जिंदगी की तमाम दूसरी बातों को बुरी तरह से कुचल चुकी है। विज्ञान, समाजशास्त्र, इतिहास, इनमें से कतरा-कतरा उठाई गई जिन बातों से लोगों को चुनावी उकसावे में लाया जा सकता है, आज उन्हीं का बाजार रह गया है। आज देश के सबसे अच्छे इतिहासकार, वैज्ञानिक, या दुनिया के तरह-तरह के विशेषज्ञ हिन्दुस्तान में सच बोलने पर जूते खाने का खतरा रखते हैं। भारत में इतने किस्म की नस्लीय और रक्त विविधता के लोग अगर आजादी के बाद की आधी-पौन सदी तक एक-दूसरे से मिलजुलकर रहते आए थे, और इसी को अनेकता में एकता कहा जाता था, तो आज सैम पित्रोदा की कही हुई उसी बात पर उनकी खुद की पार्टी भी चुनावी नुकसान का खतरा देखते हुए उससे किनारा कर ले रही है, और भाजपा के हाथ तो तेल लगा हुआ एक लट्ठ लग ही गया है, हाथ को तोडऩे के लिए। यह सिलसिला बहुत खतरनाक है कि किसी की भी बात को तोड़़-मरोडक़र नफरत का सामान बनाने की गुंजाइश को ही राजनीति बना लिया जाए। आज सैम पित्रोदा को गालियां देना बहुत आसान है, लेकिन यह करते हुए लोग अपनी अगली पीढ़ी को विज्ञान के इतिहास, इतिहास के विज्ञान के ज्ञान से दूर कर ले रहे हैं। आज हिन्दुस्तान में वैज्ञानिक तथ्यों को खारिज करने, और अवैज्ञानिक बातों को स्थापित करने की अपार राजनीतिक ताकत और संस्कृति स्थापित हो चुकी हैं, और ऐसे में सच के मारे जाने का पूरा खतरा खड़ा है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)