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मोइली कमेटी के दौरे से पहले कांग्रेस में सवाल
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 25 जून (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। प्रदेश में लोकसभा चुनाव में हार की पड़ताल के लिए कर्नाटक के पूर्व सीएम वीरप्पा मोइली की कमेटी के दौरे की औचित्य पर कांग्रेस के अंदरखाने में सवाल उठ रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि जांच तो विधानसभा चुनाव में हार की भी होनी चाहिए। क्योंकि लोकसभा चुनाव में हार की जड़ विधानसभा चुनाव के नतीजों में छिपी है। खबर है कि कुछ असंतुष्ट नेता मोइली कमेटी से विधानसभा चुनाव में हार की समीक्षा करने की मांग उठा सकते हैं।
कांग्रेस हाईकमान ने छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन की पड़ताल के लिए सीनियर नेता मोइली की अगुवाई में दो सदस्यीय कमेटी बनाई है। इस कमेटी में राजस्थान के पूर्व मंत्री हरीश चौधरी भी हैं। मोइली, और चौधरी 29 तारीख को प्रदेश दौरे पर आ रहे हैं। दोनों नेता 4 जुलाई तक सभी पांचों संभागों का दौरा कर हार के कारणों की जानकारी लेंगे। मगर उनके दौरे से पहले ही कांग्रेस के भीतर मोइली कमेटी के गठन पर ही सवाल उठ रहे हैं।
पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई है। पूरी सरकार पलट गई। मगर इसकी समीक्षा नहीं हुई, ऐसे में लोकसभा चुनाव में हार के कारणों का पता लगाने की कवायद निरर्थक है। उन्होंने कहा कि इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे पिछले चुनाव से थोड़ा ही खराब है। पिछली बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रहते दो सीट जीत पाई थी। इस बार प्रदेश में सरकार नहीं थी, फिर भी कोरबा सीट पर कब्जा बरकरार रख पाई।
पार्टी के कुछ और नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव के 6 महीने बाद लोकसभा चुनाव हुए, और इसमें कोई ज्यादा उम्मीद नहीं थी। विधानसभा चुनाव में राज्य बनने के बाद से अब तक की सबसे बुरी हार की वजह से कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं रह गया था। रायपुर सहित कुछ सीटों पर तो टिकट के लिए आवेदन तक नहीं आ रहे थे। कोई बड़ा नेता रायपुर जैसी सीट से चुनाव लडऩे के लिए तैयार नहीं था। पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी लोकसभा चुनाव लडऩे से आनाकानी कर रहे थे। ऐसे में बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं थी। फिर भी कोरबा सीट पर कब्जा बरकरार रहा। अलबत्ता, बस्तर सीट जो कि कांग्रेस के पास थी वहां प्रत्याशी बदलने से कोई फायदा नहीं हुआ।
एक-दो प्रमुख नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव में हार की बड़ी वजह अपनी ही सरकार से कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी रही है। इसको अनदेखा किया गया। मंत्री और विधायकों के खिलाफ भारी नाराजगी रही है। कवासी लखमा को छोडक़र सभी मंत्री चुनाव हार गए। डेढ़ दर्जन विधायकों की टिकट काटी गई लेकिन इसका भी कोई खास फायदा नहीं हुआ। उल्टे कांग्रेस को पिछले चार चुनाव की तुलना में सबसे कम 34 सीट साल 2023 के विधानसभा चुनाव में मिली है। लेकिन इस पर आज तक कोई बात नहीं हुई।
कुछ नेताओं का मानना है कि विधानसभा चुनाव में हार की समीक्षा कर खामियों का पता लगाकर दूर करने का प्रयास किया गया होता तो नतीजे बेहतर आ सकते थे। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि राज्य बनने के बाद इस बार के लोकसभा चुनाव में परंपरागत विशेषकर दलित वोटर, जो कि छिटक गए थे वो कांग्रेस की तरफ आए हैं।
आदिवासी समाज का एक तबका भी कांग्रेस की तरफ दिखा है। मगर कार्यकर्ता उदासीन थे इस वजह से पार्टी की सीटें नहीं बढ़ पाई। जबकि भाजपा के वोट प्रतिशत में करीब डेढ़ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इन सबसे बीच लोकसभा चुनाव में मोइली कमेटी के समक्ष कुछ लोग विधानसभा चुनाव में हार की चर्चा पर जोर दे सकते हैं। बहरहाल, मोइली कमेटी के प्रवास के दौरान विवाद खड़ा हो सकता है।