राष्ट्रीय
संदीप पौराणिक
भोपाल 16 अगस्त (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में एक बार फिर विधान परिषद के गठन की चर्चाओं ने जोर पकड़ना शुरु कर दिया है। विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में वादा तो कांग्रेस ने किया था, लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाई, वहीं भाजपा के सत्ता में लौटते ही पार्टी के भीतर से ही विधान परिषद के गठन की आवाजें उठने लगी हैं।
राज्य की सत्ता में लौटी भाजपा अपने नेताओं को विभिन्न स्थानों पर समायोजित करने के रास्ते खोज रही है, उसके पास फिलहाल निगम-मंडलों के साथ सहकारी समितियों में नियुक्ति के अवसर हैं। इसके बावजूद कई ऐसे नेता है जो बड़ी जिम्मेदारी चाहते हैं, ऐसे लोगों के लिए बेहतर जगह विधान परिषद हो सकती है और पार्टी में इसको लेकर मंथन भी चल रहा है।
पार्टी में एक तरफ जहां विधान परिषद को लेकर मंथन हो रहा है तो दूसरी ओर नागरिक आपूर्ति निगम के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ हितेष वाजपेई ने तो विधान परिषद बनाने की वकालत ही कर दी। उनका कहना है, अब वक्त आ गया है जब हमें मध्य प्रदेश में विधान परिषद के गठन पर आगे बढ़ना चाहिए।
आईएएनएस से बात करते हुए बाजपेई ने कहा राजनीति में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिटस्टम जो है वो लोकतंत्र के लिए चुनौती बन गया है। भाजपा को कोई और नेता इस पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है।
वाजपेई के इस बयान के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं क्योंकि राज्य में भाजपा की सरकार कांग्रेस से बगावत करके आए 25 तत्कालीन विधायकों की मदद से बनी है। पहले 22 विधायक और फि र एक-एक करके तीन विधायक भाजपा में आए। सरकार बनाने में मदद करने वालों को पार्टी ने सरकार में बड़ी हिस्सेदारी दी है। इसके साथ ही आगामी समय में निगम मंडलों में भी पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए लोगों को समायोजित किया जाना है। ऐसे में पार्टी के कई दावेदारों का हक प्रभावित हो सकता है और इसीलिए विधान परिषद के गठन की चर्चाओं ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है।
वहीं संसदीय कार्य मंत्री डा नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि राज्य में विधान परिषद के गठन का कोई भी प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
ज्ञात हो कि राज्य में में डेढ़ दशक तक भाजपा का शासन रहा और वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी। राज्य में 15 माह तक कांग्रेस की सरकार रही और अंतर्द्वद के चलते सरकार गिर गई। भाजपा फिर सत्ता में आई है और राज्य में 27 स्थानों पर होने वाले विधानसभा के उपचुनाव में से 25 ऐसे स्थान हैं जहां से भाजपा दलबदल करके आने वालों को चुनाव लड़ाने वाली है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में बतौर कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीतने वाले अब भाजपा के उम्मीदवार के रुप में उप-चुनाव लड़ने वाले हैं, इससे पार्टी के भीतर असंतोष पनप रहा है। इस असंतोष को दबाने के लिए पार्टी लगातार नए उपाय खोज रही है।
कांग्रेस के प्रवक्ता अजय सिह यादव का कहना है कि भाजपा में असंतोष है क्योंकि दल बदलुओं को महत्व मिल रहा है। आगामी समय में होने विधानसभा के उप-चुनाव में भाजपा को हार दिख रही है, इसलिए वह विधान परिषद के गठन की बात कर रही है। कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब भाजपा विधान परिषद का विरोध करती थी, अब विधान परिषद की पक्षधर हो गई है। वास्तव में भाजपा मौका परस्तों की पार्टी है।
राजनीतिक विश्लेषक और संविधान के जानकार गिरजा शंकर का कहना है कि राज्य में विधान परिषद की कोई आवश्यकता नहीं है। जिन राज्यों में परिषद है उनका क्या हाल है इसे देख लेना चाहिए, हां यह राजनीतिक तौर पर पुनर्वास का एक स्थान जरूर हो सकता है। अन्य राज्यों में यह राजनीतिक पुर्नवास के केंद्र में बदल चुके है।