राष्ट्रीय
फातिमा खान
नई दिल्ली, 19 अगस्त। प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि वो अपने भाई राहुल गांधी से पूरी तरह सहमत हैं कि किसी ग़ैर-गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
प्रियंका ने कहा है, ‘शायद (त्याग) पत्र में तो नहीं लेकिन कहीं और उन्होंने कहा है कि हममें से किसी को पार्टी का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए और मैं उनके साथ पूरी तरह सहमत हूं’। उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे विचार में पार्टी को अपना रास्ता भी ख़ुद तलाशना चाहिए’।
प्रियंका का सब कुछ बताने वाला ये इंटरव्यू, इंडिया टुमॉरो: कन्वर्सेशन्स विद द नेक्स्ट जेनरेशन ऑफ पॉलिटिकल लीडर्स, नामक किताब में छपा है। 13 अगस्त को प्रकाशित हुई इस किताब के लेखक, प्रदीप छिब्बर और हर्ष शाह हैं।
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि पार्टी अध्यक्ष, भले ही वो गांधी परिवार से न हो, उनका बॉस होगा। उनका हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘अगर वो (पार्टी अध्यक्ष) कल मुझे कहते हैं कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि अंडमान व निकोबार में है, तो मैं ख़ुशी से अंडमान व निकोबार चली जाऊंगी’।
2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद, राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर, पार्टी की अंदरूनी बैठक में कथित रूप से ज़ोर देकर कहा था कि अगला अध्यक्ष किसी ग़ैर-गांधी को बनाया जाना चाहिए।
लेकिन कुछ ही समय बाद, पिछले साल अगस्त में सोनिया गांधी को अंतरिम पार्टी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस के अंदर मांग उठ रही है कि कांग्रेस को पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने चाहिए।
इंटरव्यू में प्रियंका ने ये भी कहा कि 2013 में जब बीजेपी ने, उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने शुरू किए, तो उसके बाद उन्होंने अपना हर लेन-देन अपने बेटे रेहान को दिखाया था, जो उस वक़्त महज़ 13 साल का था।
प्रियंका को ये कहते हुए बताया गया है, ‘जब मेरे पति पर सारे आरोप लगाए गए तो सबसे पहले मैंने ये किया कि अपने बेटे के पास गई और एक एक लेन-देन उसे दिखाया’।
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने इस बारे में अपनी बेटी को भी समझा दिया। मैं अपने बच्चों से कुछ नहीं छिपाती, चाहे वो मेरी ग़लतियां हों, या कमियां हों। मैं उनके साथ बहुत खुली हुई हूं’।
कांग्रेस महासचिव ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय में उनके पति से होने वाली पूछताछ, जो ‘घंटों चलती थी’, और इस मामले में तमाम टीवी बहसों का, उनके बच्चों पर असर पडऩे लगा था।
किताब में वो कहती हैं, ‘मेरा बेटा लडक़ों के बोर्डिंग स्कूल में था और इन चीज़ों की वजह से उसे बहुत परेशानियां पेश आतीं थीं’।
प्रियंका इस बारे में भी बात करती हैं कि जब उनके बच्चे छोटे थे, तभी से वो उनके साथ मीडिया रिपोर्ट्स पर बात करतीं थीं, जो उनके परिवार के बारे में चर्चा करतीं थीं। वो कहती हैं कि ऐसे ही एक लेख में आरोप लगाया गया था कि उनकी इतालवी नानी, सोनिया गांधी की मां, रूसी ख़ुफिया एजेंसी केजीबी की एजेंट थीं और प्राचीन वस्तुएं भारत से बाहर ले जाया करतीं थीं’।
प्रियंका कहती हैं, ‘ज्लेकिन मेरी नानी एक ठेठ इतालवी नानी हैं’। प्रियंका आगे कहती हैं, ‘वो अपना सारा समय किचन में पास्ता सॉस बनाने, घर साफ करने, कपड़े इस्त्री करने में गुज़ारती हैं और मेरे बच्चे ये जानते थे ज्हमें ख़ूब हंसी आई ये सोचकर, कि वो एंटीक्स की तस्करी करतीं थीं, रूसी भाषा में बात करतीं थीं और केजीबी के लोगों से कहीं छिपकर मिला करतीं थीं’।
उन्होंने आगे कहा, ‘इस सच्चाई से ये उनका पहला परिचय था कि अपने परिवार के बारे में, वो जो कुछ देखते या पढ़ते हैं, उस सब पर यक़ीन नहीं करना चाहिए’।
प्रियंका का इंटरव्यू किताब में छपने वाले, नई पीढ़ी के ऐसे बहुत से राजनीतिज्ञों के सिलसिलेवार इंटरव्यूज़ का एक हिस्सा है।
परिवार में हत्याएं
इंटरव्यू में, प्रियंका अपने परिवार में हुई दो हत्याओं की भी बात करती हैं- 1984 में उनकी दादी इंदिरा गांधी की और 1991 में उनके पिता राजीव गांधी की- जिन्होंने उनके बचपन को ज़बर्दस्त तरीक़े से प्रभावित किया।
प्रियंका का ये कहते हुए हवाला दिया गया है, ‘तो दो हत्याओं के बीच सात सालों में, हम दरअसल अपने पिता की हत्या के ख़तरे के साए में जीए’। उन्होंने आगे कहा, ‘मैं तब तक सोती नहीं थी, जब तक उन्हें घर में वापस आते हुए सुन नहीं लेती थी। जब भी वो घर से बाहर जाते थे, मुझे लगता था कि वो वापस नहीं आएंगे’।
वो कहती हैं कि इसके नतीजे में, उन्होंने बहुत प्रयास किए हैं ये सुनिश्चित करने में कि उनके बच्चों को एक ‘सामान्य स्कूल’ मिले।
ये पूछे जाने पर कि उनके पिता के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है, उसका बोझ उनके बच्चों को ढोना पड़ेगा, प्रियंका कहती हैं, ‘वो इस तरह की इंसान नहीं हैं, जो यहां बैठकर कहेंगी कि कितनी दुखी जि़ंदगी है’।
‘मुझे भी हत्या का बोझ उठाकर चलना पड़ा, उन्हें भी अपने परिवार के खिलाफ राजनीतिक प्रचार का बोझ उठाकर चलना होगा, जैसे गांव में कोई बच्चा गऱीबी का बोझ उठाकर चलता है’।
प्रियंका ने आगे चलकर ये भी बताया कि वो, ‘स्कूल में बेहद मिलनसार और प्रतियोगी बच्ची थीं’, लेकिन अपने बच्चों की निजता बनाए रखने के लिए, जीवन में आगे चलकर एकांतप्रिय हो गईं।
जब उनकी दादी प्रधानमंत्री थीं, तब वो जिन दबावों को झेलतीं थीं, उनके बारे में बोलते हुए प्रियंका कहती हैं कि स्कूल में उन्हें ‘हर चीज़ में डाल दिया जाता था’, क्योंकि ये माना जाता था कि उनकी दादी आकर देखेंगी।
वो कहती हैं, ‘तो इस तरह की दुनिया में पलकर बड़े होने में, एक चीज़ तो ये होती है कि आपके लिए ख़ुद का आंकलन करना मुश्किल हो जाता है’। उन्होंने आगे कहा, ‘आपको नहीं पता कि आप जिम्नास्टिक्स की टीम में इसलिए हैं कि आप एक अच्छे जिम्नास्ट हैं, या फिर इसलिए कि आपकी दादी आकर आपके जिम्नास्टिक्स मुक़ाबले देखेंगी’।
प्रियंका और चुनाव
प्रियंका ने इस बारे में भी बात की है कि कैसे 1999 में एक विपासना केंद्र में कुछ समय बिताने के बाद उन्होंने राजनीति में नहीं आने का फैसला किया था।
वो याद करती हैं, ‘1999 में, एक सवाल था कि क्या मुझे चुनाव में खड़ा होना चाहिए और मैंने सोचा कि यहां रहकर मैं अपना मन नहीं बना पाऊंगी, क्योंकि हर कोई मुझे बताएगा कि उनके खय़ाल में, मुझे क्या करना चाहिए’।
प्रियंका कहती हैं कि पिता की हत्या पर वो अभी भी, पीड़ा और ग़ुस्से में थीं, और इसी रिट्रीट में उन्होंने अपनी भावनाओं को, प्रॉसेस करना शुरू किया।
लेकिन, उसके दो दशक बाद, 2019 के लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, प्रियंका आधिकारिक रूप से राजनीति में शामिल हो गईं- और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी के तौर पर, कांग्रेस महासचिव का पद संभाल लिया।
प्रियंका कहती हैं, ‘हर चीज़ को तबाह होते देखकर, जो हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने लड़ाई लडक़र बनाईं थीं’, उन्होंने आखऱिकार राजनीति में आने का फैसला किया।
किताब में उनके हवाले से कहा गया है, ‘अपने आसपास ये सब होते देखकर, ऐसा करना नामुमकिन हो गया कि आप अपने बच्चों की देखभाल करते हुए ये ढोंग करते रहें कि आपका इससे कोई वास्ता नहीं है। मैं अब ये और नहीं कर सकती थी’।
अपनी दादी से की जाने वाली तुलना, ख़ासकर उनकी कम्युनिकेशन स्किल्स और शख्सियत पर बात करते हुए, प्रियंका कहती हैं कि उनके अंदर, अपने परिवार के सभी सदस्यों की ख़ासियतें मौजूद हैं।
वो आगे कहती हैं, ‘अगर आप मुझे किसी पार्टी में ले जाएं, तो मैं किसी कोने में बैठी होंगी, और किसी से बात नहीं कर रही होंगी। अगर आप मुझे किसी गांव में ले जाएं, तो मैं हर किसी से बात कर रही होंगी’।
राहुल गांधी, उनके ‘सबसे अच्छे दोस्त’
प्रियंका ने अपने भाई, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अपने रिश्तों और दोनों के बीच ‘बुनियादी अंतर’ पर भी बात की है।
प्रियंका कहती हैं, ‘मेरे मुक़ाबले, वो ज़्यादा दूर की सोचते हैं। मैं वर्तमान में जीती हूं’। वो आगे कहती हैं, ‘वो 15 साल आगे की सोचते हैं, लेकिन अगर आप मुझसे 15 साल आगे का पूछेंगे, तो मैं तो अगले पांच दिन का ही सोचती रह जाऊंगी, और इतनी दूर की सोच ही नहीं पाऊंगी’।
वो आगे कहती हैं, ‘अगर मेरे अंदर ग़ुस्से के कोई अवशेष बचे हैं तो उनमें उससे भी कम हैं। वो यक़ीनन मुझसे ज़्यादा समझदार हैं’।
प्रियंका कहती हैं कि बड़े होते हुए, वो दोनों ‘घर तक सीमित’ थे, और कई बार ‘ऐसा लम्बा अकेलापन होता था, जिसमें बस हम दो एक ख़ाली घर में घूम रहे होते थे और पैरेंट्स काम के सिलसिले में अक्सर बाहर घूमते रहते थे’।
प्रियंका ये भी कहती हैं कि बड़े होते हुए, वो दोनों बहुत लड़ते थे। ‘अब, मैं कहूंगी कि वो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं’।
‘सच कहूं, तो मुझे याद किए जाने की ज़रूरत नहीं है’
प्रियंका कहती हैं कि वो ‘विरासत के बहुत खिलाफ’ हैं, और वो सियासत में इसलिए नहीं हैं कि उन्हें किसी विरासत को बनाए रखना है।
वो कहती हैं, ‘मैं समझती हूं कि बच्चों के पास विरासत नहीं होनी चाहिए। हमें उनके लिए कोई विरासत नहीं छोडऩी चाहिए, अच्छी या बुरी। उन्हें आज़ाद होना चाहिए’।
‘और इसलिए, सच कहूं, तो मुझे याद किए जाने की ज़रूरत नहीं है’।
कांग्रेस ने नए मीडिया को देर से समझा
किताब में प्रियंका का ये कहते हुए हवाला दिया गया है कि कांग्रेस पार्टी को ‘कुछ समय लगा, ये समझने में कि नया मीडिया कैसा है’।
वो कहती हैं, ‘1980 के दशक में, अख़बार में कोई लेख छप जाता था, जिससे एक सम्मानित दूरी बनाकर आप अपना काम करते रहते थे। वो फॉर्मूला काम करता था’। वो आगे कहती हैं, ‘आज, ये काम नहीं करता, आज, जब तक आप न बोलें, आपकी बात वहां नहीं पहुंचती’।
प्रियंका कहती हैं कि कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी का प्रचार ‘अंदर तक घुसा हुआ’ रहा है।
वो कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि बीजेपी के प्रचार का प्रभाव इतना मज़बूत रहा है, और इतना अंदर तक घुसा है कि जो लोग हमारे कऱीब हैं, जो हमारे जीने के तरीक़े को देखते हैं, उन्होंने भी शायद चीज़ों पर सवाल उठाए हैं’।
‘ये प्रचार इतने अच्छे से आयोजित था, और इतने लंबे समय तक चला कि जब तक हमें समझ में आया कि हमें भी अपना पक्ष रखना चाहिए, तब तक नुक़सान पहुंच चुका था’। (hindi.theprint.in)