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ग्वाल की याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की, न्यायिक अधिकारी पद से बर्खास्तगी को दी थी चुनौती
20-Aug-2020 2:34 PM
ग्वाल की याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की, न्यायिक अधिकारी पद से बर्खास्तगी को दी थी चुनौती

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 20 अगस्त।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बर्खास्त न्यायिक अधिकारी प्रभाकर ग्वाल की याचिका खारिज कर दी है जिसमें उन्होंने बिना सुनवाई अपने को बर्खास्त करने के आदेश को चुनौती दी थी।

ग्वाल को हाईकोर्ट की अनुशंसा पर विधि विभाग के तत्कालीन सचिव ने 1 अप्रैल 2016 को बर्खास्त किया गया था, जब वे सुकमा जिले में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के पद पर कार्यरत थे। उस समय यह बात सामने आई थी कि रायपुर की एक टोल प्लाजा में हुए विवाद के बाद ग्वाल की पत्नी प्रतिभा ग्वाल ने हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सहित राज्य के 21 वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ रायपुर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अश्वनी कुमार चतुर्वेदी की कोर्ट में याचिका दायर की थी। चतुर्वेदी ने यह याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली थी, जिसके बाद उन्हें भी निलम्बित कर दिया गया था। इसके बाद हाईकोर्ट ने अपने खिलाफ दर्ज सभी मुकदमों पर सुनवाई स्थगित करते हुए दायर याचिका अपने पास स्थानांतरित करा ली थी।

ग्वाल ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने बिना सुनवाई किये बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट में जस्टिस पी. सैम कोशी की सिंगल बेंच ने उनके बर्खास्तगी के आदेश को सही ठहराया है। आदेश में कोर्ट ने कहा है कि न्यायिक अधिकारी रहते हुए याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी के माध्यम से मुख्य न्यायाधीश व हाईकोर्ट के एक अन्य जज के खिलाफ आपराधिक केस दायर किया। इसमें बिना ठोस तथ्यों के निराधार आरोप थे। याचिकाकर्ता प्रचार पाना, न्यायपालिका और न्यायाधीशों तथा अधिकारियों की छवि खराब करने का इरादा रखते थे। इस अधिकारी ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य न्यायाधीशों व न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ पत्र लिखकर दुर्भावनापूर्ण, गंभीर व अपमानजनक आरोप लगाये थे। यदि अधीनस्थ न्यायपालिका का कोई अधिकारी अपने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व वरिष्ठ अन्य न्यायाधीशों के खिलाफ अपराध दर्ज कराने का साहस रख सकता है तो कल्पना की जा सकती है कि वह अपनी न्यायिक शक्तियों का कहां तक दुरुपयोग कर सकता है। कुछ मौकों पर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश तक को पत्र भेजा था। पत्रों की भाषा अपमानजनक होती थी। न्यायाधीशों को हमेशा उच्च-स्तर का आचरण बनाकर रखना चाहिये ताकि संस्थान की छवि बनी रहे। जनता के बीच भी इस तरह का व्यवहार करना चाहिये कि न्यायपालिका की छवि धूमिल न हो। न्यायिक अधिकारी ने अनुशासन को बनाये रखने, विनम्र होने, अति सक्रिय या अति प्रतिक्रियाशील होने से बचना चाहिये। न्यायाधीश से अपेक्षा की जाती है कि वह खूब मेहनत करे और उस व्यवहार से अपने आपको दूर रखे जो उत्पीडक़, पक्षपाती तथा पूर्वाग्रही हो। प्रत्येक न्यायिक अधिकारी का आचरण तिरस्कार या कलंक से ऊपर होना चाहिये। उसे कानून अनुसार न्याय करना चाहिये और अपनी नियुक्ति को सार्वजनिक विश्वास के रूप में प्रगट करना चाहिये। उसे अपने न्यायिक कर्तव्यों के शीघ्र और उचित प्रदर्शन के साथ अन्य मामलों में या अपने निजी हित को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देनी चाहिये। न्यायिक कार्यालय राज्य की महत्वपूर्ण शाखा है जिसका अधिकारिक आचरण बहुत सावधानीपूर्वक होना चाहिये।

हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका इसलिये खारिज करने करने योग्य है क्योंकि इसमें अनुच्छेद 311 (2) लागू होता है, जिसमें स्पष्ट है कि न्यायिक अधिकारी ने जानबूझकर कृत्य किया है। अदालत ने पहले भी इस धारा के अंतर्गत आदेश दिये हैं।  

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