राष्ट्रीय

कोरोना की तीन कहानियां: आम लोगों पर क्या गुजर रही है-1
29-Aug-2020 8:55 AM
कोरोना की तीन कहानियां: आम लोगों पर क्या गुजर रही है-1

पटना : घर पर पोस्टर चिपकाकर लोगों को बना रहे ‘अछूत’  

आपके सामने तीन कहानियां हैं। इनके अनुभवों से साफ है कि सरकार वह केंद्र की हो या राज्य की, सिर्फ ताली-थाली पिटवाने में ही व्यस्त हैं।क्वारंटाइन सेंटरों का जो हाल है और कोविड संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के लिए 24-24 घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है.  

पटना : घर पर पोस्टर चिपकाकर लोगों को बना रहे ‘अछूत’

निवेदिता पत्रकार हैं और उनके पति शकील डॉक्टर। दोनों वामदल के कार्यकर्ता हैं। निवेदिता सीपीआई की महिला शाखा- बिहार महिला समाज की कार्यकारी अध्यक्ष हैं जबकि उनके पति सीपीआई की प्रदेश परिषद के सदस्य हैं। शकील अपने एक मित्र डॉ. ए के गौड़ के साथ मिलकर जरूरतमंद लोगों के लिए गैरलाभकारी अस्पताल, पॉलीक्लीनिक चलाते हैं। निवेदिता को उनके परिवार, दोस्तों और डॉक्टरों ने तो कोरोना वायरस के जबड़े से सुरक्षित निकाल लिया लेकिन सरकारी अधिकारी संक्रमित लोगों के साथ जिस तरह का बर्ताव करते हैं, यह देखकर वह सदमे-सी स्थिति में हैं।

निवेदिता कहती हैं, “दोस्तों, रिश्तेदारों और डॉक्टर-नर्सों का लाख-लाख शुक्र है कि मैं ठीक हो गई लेकिन अगर सरकारी अमला संक्रमित लोगों के प्रति इतना अमानवीय और लापरवाह नहीं होता तो मेरे लिए यह लड़ाई ज्यादा आसान होती।” वह कहती हैं: “मेरा बेटा पुश्किन लॉकडाउन लगने से कुछ ही दिन पहले 22 मार्च को दिल्ली से आया। कुछ ही दिन बाद हमने घर की दीवार पर एक पोस्टर चिपका पाया जिसमें लोगों को हमसे मिलने-जुलने से सावधान किया गया था।” बाद में पुश्किन का कोविड टेस्ट हुआ और वह निगेटिव निकला। लेकिन हमारी दीवार पर वह पोस्टर लगा ही रहा।

शकील ने पुलिस वालों से पोस्टर हटाने के लिए काफी कहा लेकिन उन्होंने बात नहीं मानी। अंततः शकील ने स्वास्थ्य सचिव से बात की, तब जाकर उस पोस्टर को हटाया गया।

उनके लिए 23 जुलाई से एक अजीब-सा दौर शुरू हुआ। डॉ. ए के गौड़ पॉलीक्लीनिक में रोगियों को देख रहे थे जब उन्हें कोरोना के कुछ लक्षण महसूस हुए। सरकारी अस्पताल से एंबुलेंस नहीं आने पर डॉ. शकील अपनी कार से डॉ. गौड़ को पटना एम्स ले गए। डॉ. गौड़ को अस्पताल पहुंचाने के बाद डॉ. शकील ने एहतियातन अपना टेस्ट कराया तो वह पॉजिटिव निकले। बाद में निवेदिता का भी रिजल्ट पॉजिटिव आया और उनकी हालत ज्यादा गंभीर हो गई क्योंकि वह पहले से ही अस्थमा की रोगी थीं। उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी और डॉ. शकील ने उन्हें अपने दोस्त डॉक्टर डॉ. सत्यजीत सिंह के रुबन अस्पताल में भर्ती करा दिया जहां उन्हें ऑक्सीजन, ड्रिप वगैरह चढ़ाया गया।

निवेदिता कहती हैं, “उनदो नर्सों- रोजी और प्रतिमा को नहीं भूल सकती। उन्होंने अपने परिवार के सदस्य की तरह मेरी देखभाल की। एक बार प्रोटेक्टिव किट पहनने के बाद आठ घंटे तक वे न तो वे खा सकती थीं, न पी सकती थीं और नही टॉयलेट जा सकती थीं। फिर भी वे अपना काम हंसते-हंसते कर रही थीं। लेकिन मुझे सरकारी अधिकारियों की लापरवाही समझ नहीं आती जो रोगी और डॉक्टर, दोनों को भगवान के भरोसे छोड़ देते हैं।”

शकील कहते हैं, “प्रदेश और केंद्र- दोनों सरकारों में इस महामारी से निपटने की न तो इच्छाशक्ति है और न ही दृष्टि। लॉकडाउन घोषित होने के बाद के पांच महीनों के दौरान इन दोनों सरकारों ने कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए कुछ नहीं किया। सरकार ने लॉकडाउन को ही महामारी का समाधान मान लिया। जबकि होना तो यह चाहिए था कि इस समय का इस्तेमाल मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में किया जाता। इसका नतीजा सामने है- बड़ी तेजी से स्थिति नियंत्रण के बाहर होती जा रही है।”

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news