राष्ट्रीय
चंडीगढ़ : क्वारंटाइन सेंटर नहीं, इसे तो नकारात्मकता का केंद्र कहें!
आपके सामने तीन कहानियां हैं। इनके अनुभवों से साफ है कि सरकार वह केंद्र की हो या राज्य की, सिर्फ ताली-थाली पिटवाने में ही व्यस्त हैं।क्वारंटाइन सेंटरों का जो हाल है और कोविड संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के लिए 24-24 घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है.
मेरे पति को चंडीगढ़ के सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में इलाज कराना था और इसी कारण मैं उना से निकलकर पति के साथ चंडीगढ़ आ गईं। इसी दौरान मुझे कुछ लक्षणों से कोरोना होने का संदेह हुआ और जब जांच कराई तो मैं वाकई पॉजिटिव थी। मैंने वापस उना आने का फैसला किया और कार चलाकर लौट गई। फिर प्रशासन को अपने पॉजिटिव होने की जानकारी दी और क्वारंटाइन सेंटर चली गई। क्वारंटाइन सेंटरों में घूम-घूमकर संक्रमित लोगों की मदद करने के दौरान मैं अक्सर रोगियों के लिए खाना वगैरह लेकर यहां आती रही थी लेकिन कभी अंदर नहीं गई थी। बहरहाल, वहां की स्थिति का अंदाजा मुझे अंदर जाने के बाद ही हुआ। सबसे पहली बात यह है कि ऐसे सेंटरों में जबर्दस्त नकारात्मकता होती है। पहले से ही आर्थिक दुश्वारियों का सामना कर रहे लोग अपने आपको एकदम निरीह समझने लगते हैं। इसमें भी वैसे उम्रदराज लोगों को ज्यादा परेशानी होती है जो स्मार्ट फोन चलाना नहीं जानते। ऐसे लोगों के लिए तीन बार खाने के अलावा करने को कुछ नहीं होता। दूसरी बात है सफाई की।
यह समझने की बात है कि सोडियम हाइपो क्लोराइट का जरूरत से ज्यादा छिड़काव ठीक नहीं क्योंकि कई लोगों को इससे एलर्जी होती है। इस काल में समाज का व्यवहार भी अजीब हो गया है। मेरे मामले में पड़ोसियों ने मेरी बेटी की भी कोई मदद नहीं की। गांवों और गरीब इलाकों में स्थिति और बुरी है। लोग इससे जुड़े कलंक के कारण लक्षण उभरने के बाद भी जांच नहीं कराते। आधी-अधूरी जानकारी के कारण लोग ढेर सारा काढ़ा पीते रहते हैं जिससे कई दूसरी समस्याएं उभर जाती हैं। गांव के प्रधान समेत पंचायत सदस्यों को वैसे लोगों से मिलना चाहिए जो कोविड-19 के संक्रमण से ठीक हो गए हों। जब इन लोगों का भ्रम दूर होगा, तभी गांव के आम लोगों में फैली भ्रांतियां दूर होंगी। तेल-साबुन के प्रचार में जुटे स्टार्स को चाहिए कि वे कोरोना को लेकर लोगों में अकारण भय को दूर करने में मदद करें