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छत्तीसगढ़ के दो दोस्तों की कहानी !
-डॉ. परिवेश मिश्रा
छत्तीसगढ़ के रायपुर में दो हमउम्र स्कूली बच्चों के पिता मित्र थे सो बच्चों में भी मित्रता हो गयी। समय के साथ बच्चे भी बड़े हुए और मित्रता भी बढ़ी। एक समय ऐसा आया कि एक ही वर्ष - 1969 - में मात्र चार महीने के अंतराल में एक मित्र टैक्सी में बैठकर राजभवन पहुंचा और मुख्यमंत्री बना। दूसरा एक अदद सहयोगी के साथ अपनी कार ड्राईव करते हुए राष्ट्रपति भवन पहुंचा और राष्ट्रपति बना।
इसमें से मुख्यमंत्री बनने वाले मित्र थे सारंगढ़ के राजा नरेशचन्द्र सिंह। राज्यपाल के.सी. रेड्डी और राजा साहब पुराने मित्र थे। शपथ के बाद दोनों ने साथ काॅफी पी और कार्यक्रम सम्पन्न हो गया था। बिना किसी तामझाम के।
यह कहानी मैं 9 अगस्त 2020 को विस्तार से लिख चुका हूं। Facebook टाईमलाईन पर है, यहां दोहराऊंगा नहीं।
आज की कहानी दूसरे मित्र मोहम्मद हिदायतुल्ला जी की है जो उसी वर्ष चार महीने के बाद एक दिन सुप्रीम कोर्ट में लंच ब्रेक में अपनी काॅफी छोड़ कर राष्ट्रपति भवन पंहुचे थे और वहां काॅफी का प्याला समाप्त होते तक उनका राष्ट्रपति बनना तय हो गया था।
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लेकिन पहले एक आवश्यक फ्लैश बैक
समय : 1915 से 1920 का काल
छत्तीसगढ़ में बस्तर राज्य के दीवान थे ख़ान बहादुर हाफ़िज़ मोहम्मद विलायतुल्ला (इनका ज़िक्र दुर्ग के जटार क्लब के बारे में 2 सितंबर 2020 को लिखी और Facebook टाईमलाईन में मौजूद मेरी पोस्ट में है)।
राज्य के दीवान आमतौर पर राजा के द्वारा नियुक्त किये अधिकारी होते थे। किन्तु उन दिनों का बस्तर राज्य अपवाद था। कुछ विशेष परिस्थितियों के चलते ( बस्तर की इन असामान्य परिस्थितियों के बारे मे विस्तार से किसी और पोस्ट में) अंग्रेज़ों ने वहां दीवान को प्रशासक का अतिरिक्त जिम्मा सौंप कर अपने अधिकारी नियुक्त करना शुरू कर दिया था। इस प्रकार दीवान-सह-प्रशासक के रूप में एक वरिष्ठ अधिकारी मो. विलायतुल्ला को छिंदवाड़ा से बस्तर पदस्थ कर भेजा गया था।
रायपुर में राजकुमार काॅलेज के कैम्पस में दो बंगले थे जो उन्नीसवीं सदी की समाप्ति से पहले नागपुर के कस्तूरचंद पार्क वाले डागा परिवार से अंग्रेज़ों ने प्राप्त किये थे। (उनकी कहानी भविष्य की पोस्ट में। वर्तमान में ये काॅलेज के प्रिन्सिपल और वाईस-प्रिन्सिपल के निवास हैं।) उन दिनों इनमें छत्तीसगढ़ के दो सबसे महत्वपूर्ण अंग्रेज़ अफ़सर रहा करते थे। एक थे रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग (अंग्रेज़ों का द्रुग और छत्तीसगढियों का दुरुग) ज़िलों के कमिश्नर और दूसरे थे उन्ही के समकक्ष अधिकारी पोलिटिकल एजेंट। ब्रिटिश या खालसा इलाके के प्रभारी थे कमिश्नर। बाकी बचा पूरा छत्तीसगढ़ राजाओं के अधीन था और इस इलाके के लिए अधिकारी थे पोलिटिकल एजेंट।
उन दिनों राजकुमार काॅलेज की प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष थे सारंगढ़ के राजा जवाहिर सिंह। उनके बेटे नरेशचन्द्र सिंह उसी काॅलेज (स्कूल को ही काॅलेज कहा जाता था) में विद्यार्थी थे और वहीं रहते थे।
मो. विलायतुल्ला बस्तर में सात वर्ष रहे। इस दौरान वे रिपोर्ट करते थे छत्तीसगढ़ के पोलिटिकल एजेंट को। सो रायपुर के राजकुमार काॅलेज में आना जाना बना रहता था।
विलायतुल्ला ने रायपुर के बैरन बाज़ार इलाके में एक मकान किराये पर ले कर बेटों - इकरामुल्ला, अहमदुल्ला तथा हिदायतुल्ला - को पहले सेन्ट पाॅल और फिर कुछ ही दिनों में गवर्नमेंट हाई स्कूल में भर्ती करा दिया था।
अपनी बौद्धिक विलक्षणता के कारण डबल-प्रमोशन की छलांग लगा कर हिदायतुल्ला जी 1921 में मैट्रिक तक पंहुच तो गये किन्तु परीक्षा में बैठने की उम्र न होने के कारण उन्हें एक वर्ष का खाली समय बिताना पड़ा था। इन्ही दिनों राजकुमार काॅलेज में अच्छे राजा और प्रशासक बनने की शिक्षा और प्रशिक्षण पा रहे कुमार नरेशचन्द्र सिंह जी रायपुर शहर के ऑनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त किये जा चुके थे। दोनों के बीच मित्रता प्रगाढ़ होने के अवसर पैदा हुए।
1949 से 1956 तक राजा नरेशचन्द्र सिंह जी मंत्री के रूप में नागपुर में रहे (पहले मनोनीत तथा 1952 से निर्वाचित विधायक थे)। दोनों मित्रों का फिर साथ हुआ। हिदायतुल्ला जी नागपुर हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे, बाद में मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हो गये थे। दिन में दोनों अपना काम करते और शाम गोल्फ कोर्स में नियमित साथ खेलते व्यतीत होती।
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अब आते हैं 1969 पर
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भोपाल मे 13 मार्च 1969 के दिन राजा नरेशचन्द्र सिंह जी ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इधर हिदायतुल्ला जी तब तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बन चुके थे।
15 जुलाई 1969 के दिन सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी। एक से दो बजे का लंच ब्रेक हुआ तो पीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश अपने चेम्बर मे आये। देखा तो उनके सचिव फोन हाथ में लिए खड़े हैं। भारत के राष्ट्रपति बात करना चाहते थे।
राष्ट्रपति ने फौरन लाईन पर आ कर कहा : "मैं आप से मिलना चाहता हूँ। क्या आप आ सकते हैं?"
हिदायतुल्ला जी ने निवेदन किया कि सुनवाई पूरी कर चार बजे आना चाहता हूँ।
किन्तु राष्ट्रपति ने कहा "नहीं, नहीं। बहुत ज़रूरी बात है। अभी आइये। और सीक्रेसी का ध्यान रखें। किसी को पता नहीं चलना चाहिए "।
जिन राष्ट्रपति से हिदायतुल्ला जी की बात हुई वे थे श्री वराह गिरी वेन्कट गिरी (वी वी गिरी)। श्री गिरी 1967 में भारत के उपराष्ट्रपति चुने गये थे। ठीक दो वर्ष के बाद 3 मई 1969 के दिन राष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन का निधन हो गया। उसी दिन देर दोपहर राष्ट्रपति भवन के एक हिस्से में डॉ. ज़ाकिर हुसैन का शव रखा था और दूसरे हिस्से में श्री वी वी गिरी को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गयी थी। शपथ दिलाने वाले थे चीफ जस्टिस हिदायतुल्ला।
15 जुलाई 1969 की उस दोपहर राष्ट्रपति जी से बात होने के फौरन बाद हिदायतुल्ला जी ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार श्री देसाई (वे आगे चल कर गुजरात हाईकोर्ट के जज बने थे) को बुलाकर अपनी व्यक्तिगत कार बिना ड्राइवर के पोर्च में लगाने का निर्देश दिया। अपने लंच और काॅफी को छोड़ हिदायतुल्ला जी बाहर निकले। हमेशा की तरह लिफ्ट का इस्तेमाल करने की बजाए सीढ़ियों से उतरे। जब तक लोग देख पाते कार में बैठे और तब जाकर उन्होंने देसाई को बताया कि वे दोनों राष्ट्रपति भवन जा रहे हैं। पंहुच कर उन्होंने देसाई से कार में प्रतीक्षा करने को कहा। ए.डी.सी राह देखते खड़ा था। उसने अंदर पंहुचाकर दरवाजा बंद कर दिया। एकांत में श्री गिरी के साथ जो बातचीत हुई उसका विवरण हिदायतुल्ला जी ने अपनी पुस्तक "माय ओन बाॅज़वेल" में दिया है। ढीला अनुवाद कुछ इस तरह है :-
राष्ट्रपति (Prez) : मैंने फैसला किया है कि आपको राष्ट्रपति बनाऊं।
मुख्य न्यायाधीश (CJ): मेहरबानी कर अपनी बात स्पष्ट करें
Prez : मैंने तय किया है कि मैं इस्तीफा दे कर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ूंगा। लेकिन बताएं मैं किसे अपना इस्तीफा दूं।
आपको दूं ?
CJ : क्षमा कीजिये। मैं एक जज हूँ और यह सलाह मैं आपको नहीं दे सकता।
Prez : तो मैं किससे पूछें?
CJ : प्रधानमंत्री से पूछ सकते हैं, अटाॅर्नी जनरल से पूछ सकते हैं।
Prez : अच्छा तो इतना ही बता दीजिये मैं इस्तीफा किस पद से दूं ? राष्ट्रपति के पद से या उपराष्ट्रपति के ?
CJ : आप केवल उपराष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हुए हैं। राष्ट्रपति का पद तो कार्यकारी है और उपराष्ट्रपति होने की बदौलत ही मिला है।
इस दौरान दोनों ने काॅफी पी और दो बजने से पांच मिनिट पहले चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट वापस पंहुच गये।
(श्री वी वी गिरी ने जिस चुनाव का उल्लेख किया वह सामान्य चुनाव नहीं था। 1967 में डॉ ज़ाकिर हुसैन देश के तीसरे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है। डॉ राजेंद्र प्रसाद (पांच-पांच वर्ष के दो कार्यकाल) तथा डॉ राधाकृष्णन के कार्यकाल भारतीय संसद के पांच सालों के साथ समानांतर चले थे। 3 मई 1969 के दिन डॉ ज़ाकिर हुसैन का निधन हो गया। इस समय देश में ऐसी स्थिति पहली बार निर्मित हुई जब राष्ट्रपति पद का चुनाव अनियमित समय पर कराए गये थे। पहले वाक्य में लिखा है यह चुनाव सामान्य नहीं था। दूसरा कारण जिसने इसे विशिष्ट बनाया वह था श्री वी वी गिरी का निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरना और विजयी होना (यह अपने आप में एक पूरी पोस्ट का विषय है, सो, कभी और)। 1969 में अगस्त माह में यह चुनाव सम्पन्न हुआ था।)
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डॉ ज़ाकिर हुसैन भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिनकी मृत्यु पद में रहते हुए और कार्यकाल पूरा होने से पहले हुई थी। सांविधानिक व्यवस्था के अनुरूप उस समय उपराष्ट्रपति को कार्यकारी राष्ट्रपति बना दिया गया था। लेकिन यदि कार्यकारी राष्ट्रपति की भी मृत्यु हो जाए या किसी अन्य कारण से उन्हें पद छोड़ना पड़े तो कौन राष्ट्रपति पद की शपथ लेगा इसका प्रावधान संविधान में तब तक नहीं था। इस कमी को कुछ ही दिनों में (मई 1969 में ही) सुधार लिया गया था। नये प्रावधानों के अनुसार ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (और वे भी अनुपस्थिति हों तो वरिष्ठता के क्रम में दूसरे जज) कार्यकारी राष्ट्रपति बनते हैं। (यह व्यवस्था आज भी लागू है।)
संविधान के इसी संशोधन ने श्री हिदायतुल्ला के लिए कार्यकारी राष्ट्रपति बनने का अवसर पैदा किया था।
दो दिन लगे पर श्री वी वी गिरी ने आखिर गुत्थी सुलझा ही ली। 18 जुलाई को उपराष्ट्रपति वी वी गिरी ने कार्यकारी राष्ट्रपति वी वी गिरी को संबोधित करते हुए अपना त्यागपत्र लिखा और एक कवरिंग लेटर के साथ श्री हिदायतुल्ला के पास भेज कर आगे की कार्यवाही करने का निवेदन किया। श्री हिदायतुल्ला ने अपने सबसे वरिष्ठ सहयोगी जस्टिस जे.सी.शाह को कार्यकारी चीफ जस्टिस की शपथ दिलाई। दोनों राष्ट्रपति भवन पंहुचे और वहां जस्टिस शाह ने श्री हिदायतुल्ला को कार्यकारी राष्ट्रपति के पद की शपथ ग्रहण करायी।
1969 का वर्ष छत्तीसगढ़ के दोनों मित्रों के जीवन में मील का पत्थर साबित हुआ।
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(गिरिविलास पैलेस, सारंगढ़)