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नयी दिल्ली, 05 अक्टूबर (वार्ता)। सांसद एवं कलिंग औद्योगिक प्रौद्योगिकी संस्थान (केआईआईटी) तथा कलिंग सामाजिक विज्ञान संस्थान (केआईएसएस) के संस्थापक डॉ अच्युत सामंत का कहना है कि देश में खर्च होने वाली कुल धनराशि का 40 प्रतिशत हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर व्यय किया जाना चाहिए ताकि राष्ट्र की बुनियाद को मजबूत किया जा सके।
उन्होंने ‘बाल शिक्षा पर केआईआईएस मॉडल की समझ और नये दौर की शुरुआत’ पर सोमवार को आयोजित एक वेबिनार में कहा कि जब उन्होंने अपना कार्य शुरू किया था तो न उनके पास कोई मजबूत पृष्ठभूमि थी और न ही कोई आर्थिक सहारा था तथा बैंकिंग जगत की भी कोई जानकारी उन्हें नहीं थी। उन्होंने 25 वर्ष की आयु में महज पांच हजार रुपए की शुरुआती पूंजी से शुरुआत की थी।
इस कार्यक्रम में एल्कॉन ग्रुप ऑफ स्कूल के निदेशक डॉ अशोक पांडे और यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) निदेशक मंडल के अध्यक्ष विश्वास त्रिपाठी ने भी शिरकत की। श्री त्रिपाठी ब्राजील,रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका वाणिज्य उद्योग मंडल के अध्यक्ष भी हैं। श्री त्रिपाठी ने देश के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में बेहतर और गुणवत्ता युक्त शिक्षा को प्रदान करने की योजना में अहम भूमिका निभाई है और उनके विशेषज्ञता क्षेत्रों में प्रबंधन सलाह, कॉरपोरेट सलाह, अंकेक्षण एवं कराधान, निवेश नियोजन और व्यापार सलाहकार सेवा तथा व्यापार विकास शामिल है।
डॉ पांडे को शिक्षा के क्षेत्र में 35 वर्षों से अधिक का अनुभव है और वह युवाओं को बेहतर मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं।
डॉ सामंत के पिता का निधन महज चार वर्ष की आयु में हो गया था और बचपन में ही उन्हें घोर गरीबी का सामना करना पड़ा था। उनका बचपन ओडिशा के एक दूरदराज गांव में विधवा मां और सात भाई बहनों के साथ बीता। आज वह शिक्षा के क्षेत्र में एक किवदंती बन चुके हैं जो हमेशा मानवता की सेवा में रत हैं तथा समाज सुधार की भूमिका निभा कर गरीबों, वंचितों और हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए आशा की किरण बने हुए हैं।
लोकसभा सदस्य श्री सामंत अविवाहित हैं और उनका मानना है कि उनकी सफलता में शक्तियों के विकेन्द्रीकरण ने काफी भूमिका अदा की है। उनका कहना है,“ मेरा कोई पुश्तैनी कारोबार नहीं है लेकिन मैने हमेशा अपने सहकर्मियों पर भरोसा किया है और उन्हें उनकी इच्छानुसार काम करने की छूट दी।”
इसमें वित्तीय निर्णय भी शामिल हैं लेकिन वह प्रत्येक कार्य पर खुद नजर रखते हैं। उनका मानना है कि गुणवत्ता युक्त शिक्षा और जीवन पर्यन्त सीखने की ललक की अहम भूमिका है और अधकचरा ज्ञान निरक्षर रहने से कहीं अधिक खतरनाक है।
वह पिछले 30 वर्षों से रोजाना 16 से 18 घंटे प्रतिदिन काम कर रहे हैं और कभी थकान नहीं होती है। इसका कारण वह अपनी उस ऊर्जा को मानते हैं जो उन्हें अध्यात्म से प्राप्त होती है। वह एक दूरदृष्टि युक्त समाज सुधारक हैं जिन्होंने 1992 में शिक्षा को सामाजिक विकास का एक साधन बनाया था ताकि लोगों को गरीबी से मुक्त किया जा सके।
उन्होंने ओडिशा में कटक के कालाराबैंक के दूरदराज के एक गांव को स्मार्ट गांव में तब्दील कर दिया है और समूची मानपुर पंचायत को एक मॉडल पंचायत में विकसित किया है। डॉ सामंत का एक ही मकसद है, “ भूख,गरीबी और निरक्षरता को शून्य स्तर पर लाना है।”
केआईआईएस कक्षा एक से स्नातकोत्तर तक छात्रों को मुफ्त आवास, भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा प्रदान कर रहा है तथा उन्हें वोकेशनल प्रशिक्षण भी दे रही है। इसी तरह केआईआईटी भी आदिवासी छात्रों को निशुल्क आवास और शिक्षा की सुविधा प्रदान कर रहा है। इसमें अब तक 27 हजार से अधिक छात्रों ने शिक्षा प्राप्त कर देश-विदेश में संस्थान का नाम रोशन किया है।
केआईआईटी इस समय दो हजार बेड का एक मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल और एक संबद्ध मेडिकल कालेज संचालित कर रहा है और केआईआईएस विश्व में सबसे बड़ा आदिवासी आवासीय संस्थान बन चुका है जिसमें इस समय 30 हजार आदिवासी बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं। केआईआईटी और केआईआईएस को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स तथा गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल किया जा चुका है।