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सेक्स वर्कर्स की ज़िंदगी मजदूर का दर्जा मिलने से कितनी बदलेगी?
10-Oct-2020 9:42 PM
सेक्स वर्कर्स की ज़िंदगी मजदूर का दर्जा मिलने से कितनी बदलेगी?

photo credit PTI

-इमरान क़ुरैशी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक अहम सलाह जारी की है. एनएचआरसी ने सेक्स वर्कर्स को "अनौपचारिक मजदूरों" के तौर पर मान्यता देने के लिए केंद्र और राज्यों को कहा है. साथ ही आयोग ने कहा है कि इन सेक्स वर्कर्स को दस्तावेज दिए जाएं ताकि वे राशन समेत दूसरी सहूलियतें हासिल कर सकें.

कमीशन ने समाज के जोखिम भरे और हाशिए पर मौजूद तबके पर कोविड-19 की दूसरों के मुकाबले ज्यादा असर होने की पड़ताल की है.
आयोग ने कहा है कि इन अनौपचारिक मजदूरों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए ताकि उन्हें "मजदूरों के फायदे" मिल सकें.

एनएचआरसी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली एक संवैधानिक संस्था है. ऐसे में एनएचआरसी की ओर से मिली इस मान्यता को नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (एनएनएसडब्ल्यू) एक बड़े कदम के तौर पर देख रहा है. एनएनएसडब्ल्यू सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए काम कर रहे कई संगठनों का फेडरेशन है.

अस्थाई दस्तावेजों पर मिले राशन
एनएनएसडब्ल्यू की लीगल एडवाइजर आरती पई ने बताया, "लॉकडाउन के ऐलान के बाद सेक्स वर्कर्स की आजीविका खत्म हो गई. बार-बार ये मांग की जा रही थी कि क्या इनका रजिस्ट्रेशन लेबर मिनिस्ट्री में वर्कर्स के तौर पर हो सकता है ताकि इन्हें बेरोजगार वर्कर्स के तौर पर भत्ता मिल सके. इस संदर्भ में यह एक बड़ा कदम है."

एनएचआरसी की एडवाइजरी में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकारें सेक्स वर्कर्स को मदद और राहत मुहैया करा सकती हैं. इसमें कहा गया है कि दूध पिलाने वाली माताओं के लिए महाराष्ट्र सरकार के उठाए कदमों का अनुसरण दूसरे राज्य भी कर सकते हैं. महाराष्ट्र के महिला और बाल विकास मंत्रालय ने सेक्स वर्कर्स को राशन मुहैया कराने का फैसला जुलाई में लिया था.

एनएचआरसी ने यह भी कहा है कि अगर किसी सेक्स वर्कर के पास राशन कार्ड या आधार नहीं है तो भी उन्हें अस्थाई दस्तावेजों के साथ राशन मिलना चाहिए.

सेक्स वर्कर्स की ज़िंदगी बेहतर बनाने की कोशिश
पई ने कहा है, "ज्यादातर सेक्स वर्कर्स अपने घरों को छोड़ देते हैं और उनके पास कोई पहचान पत्र नहीं होता है. एनएचआरसी ने कहा है कि भले ही उनके पास दस्तावेज न हों तब भी उन्हें सपोर्ट दिया जाना चाहिए. इसके मूल में सेक्स वर्कर्स के मानव अधिकारों को मान्यता दिया जाना है."
एनएचआरसी की ओर से सेक्स वर्कर्स को मान्यता देते हुए उन्हें एक व्यापक दायरे में कवर किया गया है.

इसमें प्रवासी सेक्स वर्कर्स को प्रवासी मजदूरों की स्कीमों और बेनेफिट्स में शामिल करना, प्रोटेक्शन अफसरों को पार्टनरों या परिवार के सदस्यों की घरेलू हिंसा की रिपोर्टों पर कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करने, साबुन, सैनिटाइजर्स और मास्क समेत कोविड-19 की फ्री टेस्टिंग और इलाज के प्रावधान, इन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं देने ताकि एचआईवी और दूसरे सेक्स आधारित संक्रमणों से इन्हें बचाया जा सके और इलाज जैसे प्रावधान शामिल हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम आदेश
पई महाराष्ट्र सरकार की मुहिम की एक खासियत का जिक्र करती हैं. वे कहती हैं, "इसमें सेक्स वर्कर्स और ट्रैफिकिंग की शिकार लड़कियों में साफ फर्क किया गया है. सेक्स वर्कर्स ऐसी वयस्क महिलाएं हैं जो कि अपनी मर्जी से आजीविका कमाने के लिए इस काम में हैं. दूसरी ओर, ट्रैफिकिंग की शिकार लड़कियां यौन शोषण के लिए जबरदस्ती इस धंधे में धकेली जाती हैं."
एनएचआरसी की एडवाइजरी ऐसे वक़्त पर आई है जबकि हाल में ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपना एक अहम फैसला सुनाया है.

हाई कोर्ट के जस्टिस पृथ्वीराज के चाह्वाण ने अपने फ़ैसले में कहा है कि "क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कि प्रॉस्टीट्यूशन (वेश्यावृत्ति) को एक आपराधिक कृत्य मानता हो या किसी को इस वजह से सज़ा देता हो कि वह वेश्यावृत्ति में संलिप्त है."

महाराष्ट्र के सांगली की संग्राम संस्था की महासचिव मीना सेशू कहती हैं, "हमारी लड़ाई भाषा के इस्तेमाल को लेकर रही है. कानून खुद प्रॉस्टीट्यूशन और प्रॉस्टीट्यूट शब्दों का इस्तेमाल करता है, लेकिन क़ानून में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि प्रॉस्टीट्यूशन या प्रॉस्टीट्यूट अवैध हैं. हाईकोर्ट का फ़ैसला सेक्स वर्कर्स के लिए एक बड़ी राहत है क्योंकि उन्हें जेल या जेल जैसे हालातों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता था. सेक्स वर्कर्स को बलि का बकरा बनाने का काम वर्षों से जारी है."

क्या अगला कदम सेक्स वर्क को क़ानूनी मान्यता देना होगा?
सेशू कहती हैं, "सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के आंदोलन इस बारे में बेहद स्पष्ट हैं. इसमें इस काम को गैर-आपराधिक बनाने के लिए कहा गया है. मुख्य बात यह है कि सेक्स वर्क आपराधिक नहीं है, लेकिन इसके इर्दगिर्द हर चीज को क्रिमिनलाइज किया हुआ है. हम इसे गैर-आपराधिक बनाने की मांग कर रहे हैं. हम इसे क़ानूनी मान्यता देने के लिए नहीं कह रहे हैं. ऐसे हालात कभी नहीं होंगे जहां एक महिला यह कहेगी कि कल मुझे मेरा लाइसेंस मिल जाएगा और मैं एक सेक्स वर्कर बन जाऊंगी." (bbc)

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