राष्ट्रीय
सरोज सिंह
नई दिल्ली, 6 नवंबर। मैं लकड़ी का बिजनेस करता हूँ, साथ में समाज सेवा भी। सोशल मीडिया को समाज सेवा का जरिया बनाकर रखा है। अनुभव जिंदगी का नाम से तीन व्हाट्सऐप ग्रुप चलाता हूँ। हर ग्रुप में 256 सदस्य हैं। मैं जहाँ रहता हूँ उसके 10 किलोमीटर के दायरे में किसी भी गरीब, बीमार को मदद की जरूरत होती है, वो मैं करता हूँ।
बिहार के सारण जिले के रहने वाले मनोज सिंह व्हाट्सऐप पर अपनी मौजूदगी को लेकर किसी पेशेवर की तरह संजीदा हैं। वे बताते हैं कि इसके अलावा एक दर्जन और व्हाट्सऐप ग्रुप हैं जिनके वे सदस्य हैं। इनमें से एक ब्लड डोनेशन ग्रुप भी है।
वे कहते हैं, यूपी-बिहार सीमा पर रहता हूँ, दोनों तरफ़ के तीन ग्रुप का मैं सदस्य हूँ। इतना ही नहीं, सारण में कुछ सात-आठ न्यूज़ ग्रुप में भी मैं मेंबर हूँ। उस ग्रुप में जो लिंक फॉरवर्ड होते हैं उससे पल-पल की ख़बर हमें मिल जाती है और मैं अपने ग्रुप में उसे तत्काल शेयर कर देता हूँ। चुनावी माहौल में मैसेज सेंड और रिसीव करने का सिलसिला थोड़ा ज्यादा बढ़ गया है।
वो कहते हैं, बिहार के सारण जिले में तकरीबन 3800 लोगों का व्हाट्सऐप नेटवर्क और 5000 लोगों का फेसबुक नेटवर्क चलाना आसान काम नहीं है।
बिजनेस के साथ-साथ व्हॉट्सऐप ऑपरेट करते हुए उनका दिन आराम से कट जाता है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के एक मैसेज को मिनटों में हजारों लोगों तक पहुंचाना हो तो मनोज सिंह जैसे लोग कारगर साबित होंगे।
बिहार चुनाव में ऐसे लोग कब राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया वॉरियर्स बन जाते हैं, इसका उन्हें भी अंदाजा नहीं होता।
कोरोना महामारी के दौर में बिहार में भारत का पहला विधानसभा चुनाव हो रहा है। यहाँ वर्चुअल रैलियों की शुरुआत जून में ही हो चुकी थी जबकि चुनाव की घोषणा सितंबर महीने में हुई। तब लगा था, मानो ये पूरा चुनाव सोशल मीडिया पर ही लड़ा जाएगा।
हालांकि जब चुनाव आयोग ने फिजिकल रैलियों की इजाजत दी, तो वर्चुअल रैलियों का रंग फीका पड़ गया।
अब तो आलम ये है कि राष्ट्रीय जनता दल के दावे के मुताबिक़ तेजस्वी यादव ने एक दिन में 19 चुनावी रैलियों को संबोधित करने का नया रिकॉर्ड बनाया है।
बताया जा रहा है कि इसके पहले ये रिकॉर्ड उन्हीं के पिता लालू यादव के नाम था, जिन्होंने एक दिन में 16 चुनावी रैलियों को संबोधित किया था।
लेकिन सब जनता रैलियों में तो पहुँचती नहीं है, यही वजह है कि मनोज सिंह जैसे लोग इस चुनाव में नेता से कम भूमिका नहीं निभा रहे।
क्या बीजेपी, क्या आरजेडी, क्या जेडीयू और क्या कांग्रेस-सभी ने बिहार चुनाव के लिए अपने-अपने सोशल मीडिया वॉर रूम अलग से बनाए हैं।
पसंदीदा है व्हाट्सऐप
बीबीसी ने चुनाव के दौरान चारों मुख्य पार्टियों के सोशल मीडिया प्रभारियों से बात की। चारों से बातचीत में एक ही निष्कर्ष निकला कि बिहार में ट्विटर और यू-ट्यूब से ज्यादा चलन व्हाट्सऐप और फ़ेसबुक का है।
व्हाट्सऐप भले ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ना हो। आज भी उसकी गिनती मैसेजिंग ऐप में होती है, जिसमें मैसेज को प्राइवेट चैट माना जाता है। लेकिन अलग-अलग ग्रुप बना कर, जिस बड़े पैमाने पर इसका राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है उसने मैसेजिंग ऐप और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के भेद को खत्म कर दिया है।
आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में तकरीबन डेढ़ अरब लोग व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें 20 करोड़ लोग भारत में हैं।
यही वजह है कि हर पार्टी ने व्हाट्सऐप को अपने कैम्पेन का सबसे अहम जरिया बनाया है। जिला से लेकर पंचायत तक में व्हाट्सऐप नेटवर्क बनाया है और हर जगह मनोज सिंह जैसे लोगों को ढूंढकर ग्रुप में जोड़ा जाता है।
मनोज सिंह कहते हैं कि वो राजनीति से दूर हैं, नेतागिरी नहीं करते, केवल राजनीतिक मैसेज पढ़ते हैं और सच लगने पर, जाँच-परख कर ही आगे फॉरवर्ड करते हैं।
लेकिन उनका दावा सच्चाई से बिल्कुल अलग है।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया, तेजस्वी ने भी रोजगार देने का वादा किया है, बीजेपी ने भी। नीतीश जी स्थाई नौकरी तो नहीं दिए, लेकिन शिक्षा मित्र और स्वास्थ्य विभाग में ठेका वाला नौकरी दिए हैं। तेजस्वी जो कह रहे हैं, वो बात भी सच है कि सरकारी नौकरी में बहुत पद खाली है। इसलिए दोनों का वीडियो हम फॉरवर्ड करते हैं, अपनी तरफ से दो लाइन लिखकर।
और बस इतने से ही राजनीतिक पार्टियों का काम पूरा हो जाता है क्योंकि ऐसे लोग केवल वोटर नहीं होते बल्कि वोट मोबिलाइजऱ का काम करते हैं।
संगीता महापात्रा
चुनावों में सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप के इस्तेमाल के क्या तरीके हैं और इसका फ़ायदा होता भी है या नहीं, इस पर जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल एरिया स्टडी की रिसर्च एसोसिएट संगीता महापात्रा ने शोध किया है।
भारत, अमरीका और इसराइल के साथ-साथ दक्षिण-पश्चिम एशियाई देशों में सोशल मीडिया पर उन्होंने अध्ययन किया है।
वो मानती हैं कि सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप के जरिए जनता किसी मुद्दे पर कोई नई राय नहीं बनाती, लेकिन पहले से मौजूद सोच के लिए ऐसे मैसेज, उत्प्रेरक का काम ज़रूर करते हैं। सोशल मीडिया के जरिए आप मास मैसेजिंग और माइक्रो टारगेटिंग दोनों काम एक साथ कर सकते हैं।
जर्मनी के हैम्बर्ग शहर से बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि व्हाट्सऐप के साथ कुछ ऐसी बातें हैं जो राजनीतिक दलों को काम लायक लगती है।
वो कहती हैं, मसलन, अगर आप बेरोजगारी की वजह से पहले से दुखी हैं, तो रोजगार के वादे अगर आपको व्हाट्सऐप पर मिलते हैं या फेसबुक पर दिखते हैं, तो आपकी पहले से बनी सोच उस पार्टी के लिए और पुख़्ता होती है।
संगीता कहती हैं, भारत में हर इलाके में लोगों तक खबरें अलग-अलग माध्यमों से पहुँचती है। बिहार के लिए ये अलग है और दिल्ली के लिए अलग। दिल्ली में जनता ख़बरों के लिए कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करती है, जैसे ट्विटर, यूट्यूब, गूगल, फ़ेसबुक। लेकिन बिहार की बात करें तो वहाँ मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। ये पर्सनलाइज़्ड होता है और इसमें क्षेत्रीय बोलियो में कंटेंट ऑडियो और वीडियो फॉर्म में आसानी से भेजे जा सकते हैं। बिहार में साक्षरता दर कम है, इस वजह से भी व्हाट्सऐप पर लोगों से जुडऩा ज्यादा आसान होता है। इतना ही नहीं, मैसेज कितना सच है या कितना झूठ, व्हाट्सऐप फॉरवर्ड में अंतर करना मुश्किल हो जाता है। व्हाट्सऐप के बाद बिहार के लोग न्यूज के लिए फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल प्लेटफॉर्म पर जाते हैं।
राजनीतिक पार्टियों की रणनीति
अमृता भूषण चुनाव में बिहार बीजेपी का सोशल मीडिया देख रही हैं। वो प्रदेश में पार्टी की महामंत्री भी हैं। पटना से बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए उन्होंने कहा, बीजेपी के हर बूथ पर 21 वॉलेंटियर मौजूद हैं जो सोशल मीडिया से फेसबुक, ट्विटर और दूसरे माध्यमों से जुड़े हुए हैं।
अमृता भूषण
वे कहती हैं, लोगों तक अपनी बात पहुँचाने में इनकी अहम भूमिका है। बिहार में बीजेपी ने पंचायत के स्तर पर शक्ति केंद्र का गठन किया है। हर शक्ति केंद्र में बीजेपी का एक आईटी इंचार्ज है। इससे ऊपर जि़ला स्तर पर आईटी सेल और फिर प्रदेश स्तर पर भी अलग से सेल हैं। केंद्र की सोशल मीडिया सेल भी प्रदेश के सोशल मीडिया सेल की मदद करती है। कुल आंकड़े को जोड़ दें तो बिहार में बीजेपी के 60 हजार आईटी संचालक हैं।
इस अभियान का पैमाना कितना बड़ा है, ये बताते हुए वे कहती हैं, यही नहीं, खास तौर पर विधानसभा चुनाव को देखते हुए तकरीबन 72 हजार व्हाट्सऐप ग्रुप बनाए हैं जो जिला और बूथ लेवल पर काम करते हैं। इनमें से कुछ में बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और कुछ में हमारे समर्थक जुड़े हुए हैं। आरजेडी का सोशल मीडिया का कामकाज संजय यादव देखते हैं, जो तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार भी हैं।
संजय यादव
संजय मानते हैं कि सोशल मीडिया का चुनावी लोकतंत्र में एक अपना स्थान है। लोगों तक आसान शब्दों में आप अपनी बात को वीडियो और ऑडियो के जरिए पहुंचा सकते है। काम की वजह से कई लोग टीवी नहीं देख पाते और रैलियों में हिस्सा लेने नहीं जा सकते। सोशल मीडिया के कई माध्यम हैं-कुछ लोग ट्विटर पर नहीं तो फेसबुक पर हैं, कुछ इन दोनों पर नहीं तो यूट्यूब देखते हैं और कुछ तीनों पर नहीं हैं तो कम से कम व्हाट्सऐप पर तो जरूर हैं। बुजुर्ग तो सबसे ज्यादा व्हाट्सऐप पर ही हैं।
संजय मानते हैं कि आरजेडी सबसे ज्यादा मजबूत व्हाट्सऐप पर है, फिर फेसबुक पर, फिर ट्विटर और सबसे अंत में यूट्यूब पर।
बिहार में जेडीयू सोशल मीडिया पर आरजेडी और भाजपा के मुकाबले थोड़ी पिछड़ती दिखाई पड़ती है। ट्विटर हो या फेसबुक दोनों ही जगह उन्होंने मैदान में उतरने में देरी की है। लेकिन समय रहते फॉलोअर्स का बेस बना लिया है।
व्हाट्सऐप पर उन्होंने काम देर से शुरू किया, पर हर पंचायत तक 200 सदस्य जोडऩे में सफल हुए, ऐसा उनका दावा है।
उनके सोशल मीडिया टीम के सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, मई के महीने में जनता दल यूनाइडेट ने सोशल मीडिया पर पकड़ मजबूत करने के लिए दिल्ली से टीम बुलाई। 15 लोगों की टीम ने फेसबुक लाइव के साथ-साथ व्हाट्सऐप ग्रुप में सदस्यों को जोडऩे का काम मई के अंत में शुरू कर दिया था। पार्टी के लिए 53 फेसबुक पेज तैयार किए गए और सबमें तकरीबन 15 हजार से 20 हजार लोगों को जोड़ा गया। नीतीशकेयर्स और बिहारजेडीयू जैसे बिना ब्लू टिक वाले कई फेसबुक पेज इसी मुहिम के तहत लॉन्च किए गए।
दिल्ली वाली टीम ने फेसबुक पर लाइव करवाने का सिलसिला 24 मई से शुरू किया, जिसमें मुख्यमंत्री जैसे बड़े नेता शामिल नहीं होते थे, पर इलाके के छोटे नेता (बूथ अध्यक्ष, प्रखंड अध्यक्ष, जि़ला अध्यक्ष) शामिल होते थे, जो कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद करते थे। ऐसा करने पर इस बात की आशंका भी नहीं होती थी कि दर्शकों की संख्या कम रहने पर बड़े नेता की किरकिरी हो जाएगी। है
सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर जेडीयू के एक नेता ने बीबीसी से कहा, जेडीयू में एक धारणा है कि बिहारी जनता ट्विटर पर चुनाव नहीं लड़ती। जैसे चुनावी रैलियों में जमा भीड़ वोट में तब्दील हो जाए इसकी गारंटी नहीं देती वैसे ही सोशल मीडिया के फॉलोअर्स, ट्वीट, रीट्वीट, लाइक्स, कमेंट और शेयर अच्छे चुनाव प्रचार का पैमाना नहीं हो सकते।
यही वजह है कि ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने ट्विटर पर शोक संदेश और बधाई संदेश लिखने की जगह मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी पीडीएफ पेज ही ट्वीट कर देते हैं।
रोहन गुप्ता
रही बात कांग्रेस की तो उन्होंने चुनाव से चार महीने पहले बिहार में सोशल मीडिया यूजर्स का डेटा बेस तैयार करने का काम शुरू कर दिया था। सबसे पहले एक कंट्रोल रूम में 40 लोगों की टीम तैयार की गई। डिजिटल मेंबरशिप ड्राइव शुरू किया और छह लाख ऑनलाइन मेंबर बनाए।
कांग्रेस के सोशल मीडिया प्रभारी रोहन गुप्ता कहते हैं, हमने बिलकुल अलग तरीके से व्हाट्सऐप नेटवर्क तैयार किया।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि कांग्रेस ने अपने एक नंबर को अपने लोकल उम्मीदवारों से कहकर लोकल व्हाट्सऐप ग्रुप में ऐड करवाया। उनका कहना है कि मैसेज फॉरवर्ड के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप सही है। लेकिन जब पार्टी के प्रोग्राम को लाइव करने की बात आती है तो उसके लिए फेसबुक पेज और यूट्यूब की जरूरत पड़ती है। जिसके लिए उन्होंने कुछ इंफ्लूएंसर्स की मदद ली, जो कांग्रेस की विचारधारा से सहमति रखते हैं।
फेसबुक का इस्तेमाल
व्हाट्सऐप ग्रुप का कौन कैसे इस्तेमाल कर सकता है इसे सारण के मनोज सिंह के जरिए समझा जा सकता है। राजनीतिक पार्टियाँ कैसे किसी फेसबुक पेज का इस्तेमाल कर सकती हैं, इसे भी एक मिसाल से आप समझिए।
भक बुड़बक नाम का बिहार का एक फेसबुक पेज इन दिनों काफी चर्चा में है। इस पेज को तकरीबन साढ़े चार लाख लोग फॉलो करते हैं। ये फेसबुक पेज वैरिफाइड नहीं है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस पेज को इसी साल फरवरी में लॉन्च किया गया है और मार्च में नाम बदला गया है यानी चुनाव से बस आठ महीने पहले।
इस पेज पर जो सबसे पॉपुलर वीडियो पोस्ट किया गया है उस वीडियो को तकरीबन 48 हजार बार शेयर किया जा चुका है और तकरीबन 30 लाख लोग उसे देख चुके हैं।
फेसबुक पन्ने को देखकर ये समझने ज्यादा वक्त नहीं लगता कि ये फेसबुक पन्ना किस पार्टी के समर्थन और किस पार्टी के विरोध में चल रहा है।
ऐसे पेज प्रॉक्सी पेज की तरह काम कहते हैं। संगीता इस तरह के साइट्स के लिए इम्पोस्टर शब्द का इस्तेमाल करती हैं।
उनका कहना है कि ये साइट बहरूपिया होते हैं, देखने में लगेगा कि किसी राजनीतिक पार्टी के हैं, लेकिन असल में होते नहीं हैं। इनके कंटेंट नौजवान वोटरों के लिए बनाए जाते हैं, जिसमें मीम और शॉर्ट वीडियो होते हैं। अकसर ऐसे पेज कुछ सही जानकारी के साथ ग़लत जानकारी, अधूरी जानकारी परोसते हैं। इसलिए ये किसी भी चुनाव में चिंता का सबब होते हैं।
अब कुछ आँकड़े
बिहार में तकरीबन छह करोड़ मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले हैं, जिनमें से तकरीबन चार करोड़ लोग मोबाइल इंटरनेट का भी इस्तेमाल करते हैं।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया पर कंटेंट पोस्ट कर कितनी आसानी से मिनटों में कितने लोगों तक पहुँचा जा सकता है।
चुनावी मौसम में ऐसे पेज हजारों की संख्या में बनाए जाते हैं। जरूरी नहीं कि ये पेज बिहार से ही बने, दुनिया के किसी भी कोने में ये बन सकते हैं।
राष्ट्रीय जनता दल
आरजेडी के ट्विटर एकाउंट के 3 लाख 77 हजार फॉलोअर्स हैं। 2014 के चुनाव में उन्होंने अपना ट्विटर एकाउंट बनाया था और अब तक इस हैंडल से लगभग 32 हजार ट्वीट किए गए हैं।
आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव के ट्विटर पर 26 लाख फॉलोअर्स हैं। उनके बड़े भाई तेज प्रताप को तकरीबन 7 लाख 80 हजार लोग फॉलो करते हैं। ट्विटर पर लालू यादव को फॉलो करने वाले तकरीबन 50 लाख लोग हैं।
आरजेडी के फेसबुक पेज को 2012 में लॉन्च किया गया था और तकरीबन 6 लाख उनके फॉलोअर्स हैं।
आरजेडी के बिहार के हर जिले में वेरिफाइड फेसबुक पेज हैं। उनका दावा है कि आरजेडी के अलावा बिहार में कोई पार्टी नहीं है जिसके सभी जिला फेसबुक पेज वेरिफाइड हों।
भारतीय जनता पार्टी
बीजेपी बिहार ट्विटर हैंडल की बात करें तो उनके तकरीबन 2 लाख फॉलोअर्स हैं। 2016 में ये अकाउंट बना और अब तक 21 हजार ट्वीट कर चुके हैं।
बिहार बीजेपी पेज के 5 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और 2015 में उन्होंने अपना अकाउंट खोला है। यानी दोनों ही प्लेटफॉर्म पर आरजेडी के बाद इनका अकाउंट बना है।
आरजेडी की तरह ही बीजेपी के लाइक्स कमेंट और शेयर हजारों में रहते हैं। वीडियो, रैली और इंटरव्यू के क्लिप्स ही ज्यादातर सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं।
सुशील मोदी बिहार बीजेपी के बड़ा चेहरा माने जाते हैं - इनके ट्विटर पर 20 लाख फॉलोअर्स हैं। लेकिन ज्यादातर तस्वीरें और ट्वीट लिख कर पोस्ट करते हैं। बीजेपी के कुछ हैंडल के वीडियोज़ को रीट्वीट जरूर करते हैं।
जनता दल (यूनाइटेड)
जनता दल यूनाइटेड के ट्विटर हैंडल को केवल 43 हजार लोग फॉलो करते हैं। इस हैंडल से अब तक तकरीबन 7 हजार ट्वीट हुए हैं और 2018 में ये अकाउंट बना है। 15 साल से सत्ता में रहने के बाद सत्ताधारी पार्टी ट्विटर अकाउंट इतनी देरी से बना, ये अपने आप में आश्चर्य की बात है।
नीतीश कुमार, बिहार के मुख्यमंत्री हैं इस नाते ट्विटर पर उनके फॉलोअर्स की संख्या 60 लाख है, जो कि प्रदेश के किसी नेता के मुकाबले ज्यादा है।
केवल रैलियों के सीधे प्रसारण के अलावा इक्का-दुक्का अखबार की कतरन देखने को मिलेगी। सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए खास तौर पर कोई अलग से वीडियो बनाया गया हो ऐसा कम देखने को मिलता है।
जनता दल यूनाइटेड का फेसबुक पेज 2018 में बना है। हालांकि देर से अकाउंट खोलने के बाद भी 5 लाख फॉलोअर्स इनके भी हैं।
संगीता का कहना है कि बिहार का चुनाव जितना रैलियों के जरिए लड़ा गया उतना ही व्हाट्सऐप, फेसबुक और यूट्यूब पर भी लड़ा गया।
जमीन पर होने वाली रैलियों की जगह ये नहीं ले सकते मगर रैलियों के प्रचार प्रसार में मददगार हैं, जिससे वोटरों तक पहुँच कई गुना बढ़ जाती है। (बीबीसी)
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