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अर्नब गोस्वामी: महाराष्ट्र की राजनीति में मोहरा हैं या खिलाड़ी
07-Nov-2020 10:09 AM
अर्नब गोस्वामी: महाराष्ट्र की राजनीति में मोहरा हैं या खिलाड़ी

भारत सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत इस वक़्त 22 कैबिनेट मंत्री है. 4 नबंबर को अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, रसायन एवं उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा. सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के अलावा हर कैबिनेट मंत्री ने अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ ट्वीट या रिट्वीट किया है.

कई ऐसे ट्वीट भी सामने आए जिनमें अर्नब को समर्थन देने के साथ-साथ कांग्रेस और शिवसेना को निशाना बनाया गया है. इससे पहले किसी पत्रकार की गिरफ़्तारी को लेकर इतने बड़े पैमाने पर भारत के केंद्रीय मंत्रियों की फ़ौज ने ऐसी एकजुटता दिखाई हो, ऐसा उदाहरण पिछले छह साल में कभी देखने को नहीं मिला.

अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और पार्टी के पदाधिकारी भी बोले. इनमें उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी शामिल थे और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी.

जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व साथ हो तो कार्यकर्ता कैसे पीछे रहते. कई जगह अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ वो सड़कों पर भी उतरे.

दूसरी तरफ़ पूरे मामले पर शिवसेना, महाराष्ट्र पुलिस के साथ खड़ी दिखी. आख़िर हो भी क्यों न. प्रदेश में मुख्यमंत्री भी तो शिवसेना से ही हैं.

लेकिन अर्नब की गिरफ़्तारी के समर्थन में तीन लोगों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में हैं. न तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बोलीं न ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी. इतना ही नहीं एनसीपी नेता शरद पवार की तरफ़ से भी कोई बयान नहीं आया.

जहाँ केंद्रीय नेताओं के ट्वीट पर लोग सवाल उठा रहे हैं वहीं इन तीन नेताओं की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है.

ऐसा इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति में- शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस और बीजेपी- इन चारों ही पार्टियों की छवि दाँव पर है.

शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाई है. भले ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवसेना से हों लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार हमेशा कहते हैं, इस सरकार का 'रिमोर्ट कंट्रोल' एनसीपी नेता शरद पवार के हाथ में है.

इसलिए उनके बयान का सबको इंतजार है.

दूसरी तरफ़ महाराष्ट्र सरकार और अर्नब गोस्वामी के बीच का विवाद जिस टीवी चर्चा से शुरू हुआ, उसमें अर्नब गोस्वामी पर आरोप है कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए अभ्रद भाषा का प्रयोग किया था. इसलिए लोगों को सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बयान का इंतजार है.

इन तीनों के अलावा राज्य में बीजेपी भी है, जिसके नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फ़डणवीस 2019 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे थे. लेकिन शिवसेना ने सपना तोड़ दिया.

फिर भी जोड़-तोड़ कर शपथ ग्रहण भी कर लिया था, लेकिन आगे बात नहीं बनी. इसके जख़्म आज तक हरे हैं.

यही वजह है कि अर्नब की कहानी हो या फिर कंगना रनौत की कहानी- जहाँ भी बात शिवसेना से जुड़ी होती है, हर मामले में बीजेपी ज़रूर कूद पड़ती है.

ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि एक पत्रकार की गिरफ़्तारी को लेकर शिवसेना और बीजेपी आमने सामने क्यों है? क्या एनसीपी और कांग्रेस का भी इसमें कोई हाथ है? क्या अर्नब गोस्वामी का पूरे प्रकरण में इस्तेमाल हो रहा है या वो ख़ुद इसमें एक पक्ष बन गए हैं?

बीजेपी कर रही है अर्नब का इस्तेमाल?

महाराष्ट्र की वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन कहती हैं, "जाहिर सी बात है इस पूरे मामले में राजनीति हो रही है. अर्नब का बीजेपी इस्तेमाल कर रही है. अर्नब की पत्रकारिता देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि वो बीजेपी के समर्थन की पत्रकारिता करते हैं. उनका जर्नलिज़्म प्रोपगैंडा जर्नलिज़्म है. बीजेपी के उनके समर्थन में उतरने से ये बात और साफ़ हो जाती है."

वे कहती हैं, "यही वजह है कि अब तक बीजेपी के निशाने पर शिवसेना रहती थी, इसलिए उसको अर्नब गोस्वामी ने अपनी पत्रकारिता में टारगेट किया. फिर चाहे वो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए अभ्रद भाषा का इस्तेमाल हो या उनके बेटे आदित्य ठाकरे या फिर मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के लिए. अगर आप किसी को रात-दिन टारगेट करेंगे तो ज़ाहिर सी बात है एक दिन आप भी उनके निशाने पर आएँगे ही. बात बस मौके की होती है."

सुजाता आनंदन कहती हैं, "2018 के अन्वय नाइक मामले की दोबारा जाँच का मामला ऐसा ही था. अर्नब ने सुशांत सिंह राजपूत के मामले में बिना सबूतों के रिया चक्रवर्ती को अपराधी घोषित कर दिया था. अब अर्नब के ख़िलाफ़ तो पूरा सुसाइड नोट है. परिवार वालों के बयान हैं. रिया मामले में जो सही है वो अर्नब गोस्वामी के मामले में भी सही होना चाहिए. दोनों मौत का मामला है, दोनों मामलों में पैमाने अलग-अलग नहीं हो सकते."

दरअसल ये सच है कि अन्वय नाइक मामले की दोबारा जाँच के लिए महाराष्ट्र पुलिस ने कोर्ट में अर्जी लगाई थी, लेकिन पुलिस को जाँच दोबारा शुरू करने के लिए कोर्ट की तरफ़ से इजाज़त नहीं मिली थी.

ये भी सच है कि 2018 में शिवसेना, बीजेपी के साथ महाराष्ट्र में सत्ता में थी. उसी दौरान अन्वय नाइक की मौत का मामला सामने आया था.

आखिर उस वक़्त जब पुलिस ने केस बंद किया था, तब शिवसेना ने इस मामले को क्यों नहीं उठाया?

इस सवाल के जवाब में सुजाता कहती हैं, "बीजेपी के साथ सत्ता में रहते हुए शिवसेना के पास कितने अधिकार थे, ये किसी से छुपा नहीं है. शिवसेना के हाथ में न तो राज्य की पुलिस थी, न तो गृह मंत्रालय था, न राजस्व विभाग ही था. उद्धव चुनाव से पहले ही समझ गए कि बीजेपी अपने सहयोगी पार्टियों का क्या हाल कर रही है. यही वजह है कि उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ा और एनसीपी और कांग्रेस से नाता जोड़ा."

सुजाता साफ़ शब्दों में कहती हैं कि ये शिवसेना और बीजेपी के बीच की राजनीतिक लड़ाई है, जिसके बीच में अर्नब गोस्वामी हैं, जो बीजेपी के हाथों में खेल रहे हैं.

उनको नहीं लगता कि इस पूरे मामले में कांग्रेस का कोई रोल है. उनका मानना है कि महाराष्ट्र सरकार में अशोक चव्हाण को छोड़ कर कोई बड़ा नेता कैबिनेट में नहीं है.

हाँ, वो पूरे मामले में एनसीपी का रोल मानती हैं.

उनका कहना है कि एनसीपी के बड़े नेता सरकार में शामिल है. ये भी सच है कि गिरफ़्तारी के समर्थन में पहला बयान गृह मंत्री अनिल देशमुख का ही आया था, जो एनसीपी कोटे से सरकार में गृह मंत्री हैं.

पूरे मामले में कांग्रेस की भूमिका

लेकिन वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय मानते हैं कि उद्धव ठाकरे दूसरे के इशारे पर ये काम कर रहे हैं. उन्होंने सीधे कांग्रेस का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों में अपनी बात कह गए.

बीबीसी से फ़ोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "भारतीय राजनीति में अपराधिकरण का बीज सबसे पहले कांग्रेस ने बोया. अपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को पहले काउंस्लर बनवाया, मुख्यमंत्री बनवाया, फिर विधानसभा और संसद भवन तक पहुँचाया. ये सब इमरजेंसी की देन है. अगर ये सब चलता रहा तो नहीं मालूम महाराष्ट्र की राजनीति किस तरफ़ जाएगी.

उद्धव ठाकरे जो कर रहे हैं वो राजनीतिक बदले की भावना से नहीं बल्कि निजी बदले की भावना से कर रहे हैं. उनके इस निजी बदले की भावना का इस्तेमाल दूसरी पार्टी कर रही है. वो पार्टी उन्हें कठपुतली की तरह नचा रही है. वो पार्टी कौन है ये सब लोग जानते हैं."

राम बहादुर राय इस पूरे मामले की जड़ में सुशांत सिंह राजपूत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की मौत पर रिपब्लिक टीवी के कार्यक्रम को मानते हैं. दिशा सालियान ने सुशात सिंह राजपूत की मौत से कुछ दिन पहले ही 8 जून 2020 को आत्महत्या की थी.

वो कहते हैं, "इस मामले पर अपने एक शो में अर्नब गोस्वामी ने इशारे में आदित्य ठाकरे पर निशाना साधा था. अर्नब ने उनके लिए 'बेबी पेंगुइन' शब्द का इस्तेमाल किया था. उद्धव ठाकरे उसी बात को गांठ बाँध कर बैठे हैं."

हाल में हुई दशहरा की रैली में भी उद्धव ठाकरे ने कहा था कि उनको और आदित्य ठाकरे को बिना सबूत के निशाना बनाया जा रहा है.

राम बहादुर राय आगे कहते हैं, उद्धव ठाकरे जो कर रहे हैं, उससे उनकी अयोग्यता, बदले की कार्रवाई को साबित करता है. लेकिन इसके पीछे कोई और भी है.

शिवसेना-बीजेपी कभी पास, अब दूर

राम बहादुर राय को बीजेपी के करीबी पत्रकारों में गिना जाता है. शिवसेना और बीजेपी के बीच पहली बार गठबंधन से लेकर 2019 में दोनों के अलग होने को उन्होंने क़रीब से देखा है.

दोनों पार्टियों के साथ आने की वजह पर वो एक किस्सा सुनाते हैं. 80 के दशक के वाक्ये को याद करते हुए उन्होंने कहा, "1989 में जब शिवसेना और बीजेपी का पहली बार गठबंधन हुआ था, तो मुझसे महाराष्ट्र के कई पत्रकारों ने कहा था कि ये ठीक नहीं हुआ. अब शिवसेना की इमेज की काली छाया बीजेपी पर पड़ेगी. प्रमोद महाजन मेरे मित्र थे. मैं उनके पास गया और कहा कि ये समझौता बहुत ख़राब है. इससे बीजेपी की साख़ पर धब्बा लगेगा. तो प्रमोद महाजन ने मुझे समझौते के तर्क दिए. तर्क ये था कि अयोध्या आंदोलन में शिवसेना बीजेपी से साथ खड़ी थी.

आज शिवसेना के कार्यकर्ता जो पहले करते थे, वही काम वहाँ की पुलिस से सरकार करवा रही है."

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौर बीजेपी और शिवसेना का ये गठबंधन टूट गया.

गठबंधन का टूटना और बीजेपी का सत्ता में ना आना ही महाराष्ट्र की राजनीति का वो अहम पड़ाव है, जो बीजेपी साल भर बाद भी भूल नहीं पाई है. और अब वो जख़्म नासूर बन गया है.

पूरे मामले में इसलिए दोनों पार्टियाँ आमने सामने हैं.(bbc)

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