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कोविड के दौर में बड़े बैनर वाली पहली मराठी फिल्म 'चंद्रमुखी' की शूटिंग शुरू
09-Nov-2020 12:35 PM
कोविड के दौर में बड़े बैनर वाली पहली मराठी फिल्म 'चंद्रमुखी' की शूटिंग शुरू

मुंबई, 9 नवंबर| निर्माता अक्षय बर्दापुरकर और पीयूष सिंह ने मराठी फिल्म चंद्रमुखी के निर्माण की घोषणा की है, जो कोरोना महामारी शुरू होने के बाद बड़े बैनर तले बनने वाली पहली मराठी फिल्म है। अमिताभ बच्चन अभिनीत मराठी फिल्म 'एबी आणी सीडी' को ओटीटी पर मिली भारी सफलता के बाद फिल्म निर्माता अक्षय बर्दापुरकर और पीयूष सिंह 'चंद्रमुखी' के लिए लगातार तीसरी बार काम करने के लिए साथ आए हैं। फिल्म का आधिकारिक पोस्टर इस साल जनवरी में खासी धूमधाम के साथ लॉन्च किया गया था।

पहले लुक की लॉन्चिंग के बाद से ही दर्शक यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि "चंद्रमुखी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री कौन है? और उसका चेहरा अभी तक सामने क्यों नहीं आया है?" इन सवालों को लेकर फिल्म निर्माता आज भी खामोश हैं।

चंद्रमुखी की शूटिंग मुंबई में इसी नवंबर प्रसिद्ध गायक-संगीतकार जोड़ी अजय-अतुल की मौजूदगी में शुरू हुई है। फिल्म का मुहुर्त भायखला में मसिना अस्पताल में फिल्माया गया। इस मौके पर टीम के सभी प्रमुख सदस्य, कलाकार और फिल्म निर्माता मौजूद थे। मुहुर्त में आई गायक-संगीतकार अजय-अतुल की जोड़ी चंद्रमुखी के लिए लावणी समेत शानदार संगीत देगी।

संगीत के अलावा भी बात करें तो 'चंद्रमुखी' के पास रिकॉर्ड-तोड़ बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पाने के लिए और भी कई चीजें हैं, जैसे-नाटक, राजनीति, सौंदर्य, संगीत, नृत्य आदि। यह फिल्म लेखक विश्वास पाटिल के इसी नाम के उपन्यास पर बनी है। फिल्म का प्लॉट तमाशा और राजनीति के रास्तों से गुजरता है। कहानी के आगे बढ़ने पर दर्शक देखेंगे कि कैसे खूबसूरत लावणी नर्तकियां एक अपरम्परागत रास्ते पर जाती हैं।

प्लेनेट मराठी और गोल्डन रेशियो फिल्म्स जैसे बैनर वैसे भी कंटेन्ट आधारित मनोरंजन देने के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा निर्माताओं ने इस फिल्म की कहानी कहने के लिए टॉप मराठी सितारे लिए हैं। फ्लाइंग ड्रैगन एंटरटेनमेंट के ऋषिकेश पाटिल भी फिल्म निर्माताओं की टीम में जुड़े हें। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म 'कच्चा लिम्बु' के निर्देशक प्रसाद ओक इस फिल्म का निर्देशन करेंगे। स्क्रीनप्ले और सिनेमैटोग्राफी के लिए चिन्मय मंडलेकर और संजय मेमन एक बार फिर प्रसाद ओक के साथ जुड़ेंगे।

गोल्डन रेशियो विविध प्रकार की फिल्में बनाने वाला बैनर है, जो बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन अभिनीत 'एबी आणी सीडी' के साथ मराठी फिल्म उद्योग में डेब्यू कर चुका है। प्लेनेट मराठी के साथ यह सफल फिल्म बनाने के बाद वे 'गोश्त एका पैठणीची' का भी निर्माण कर रहे हैं। 'चंद्रमुखी' इन दोनों बैनर का तीसरा जॉइंट प्रोजेक्ट है।

गोल्डन रेशियो फिल्म्स के सीओओ पीयूष सिंह क्षेत्रीय फिल्म निर्माताओं की प्रतिभा की पुरजोर वकालत करते हैं। चंद्रमुखी को लेकर उन्होंने कहा, "हम भाषा और माध्यमों का ख्याल किए बिना दर्शकों के लिए सार्थक सामग्री बनाने का लक्ष्य रखते हैं। हमारा प्रयास एक स्क्रिप्ट की रचनात्मक क्षमता को अनलॉक करके आला विशेषज्ञों की टीम जुटाना है, जिस तरह हम ऑफ-स्क्रीन टैलेंट को चुनने के लिए प्रतिबद्ध हैं, वैसे ही हम अभिनेताओं को चुनने के लिए भी सचेत हैं जो हमारी कहानी का एक जरिया हैं। हम निश्चित हैं कि हमारे दर्शकों को चंद्रमुखी पसंद आएगी।"

प्लेनेट मराठी के सीएमडी अक्षय बर्दापुरकर ने कहा, "चंद्रमुखी प्लेनेट मराठी और हमारे सहयोगी गोल्डन रेशियो के लिए एक शानदार मील का पत्थर साबित होगी। हमें गर्व है कि हम महामारी के बाद पहली और सबसे बड़ी मराठी फिल्म ला रहे हैं। सभी सुरक्षा मानकों के साथ हम पूरे क्रू की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं। अद्भुत ऊर्जा और काम पर वापस जाने की तीव्र इच्छा के साथ चंद्रमुखी की पूरी टीम ने प्रोडक्टशन का काम शुरू कर दिया है। हम इसे लेकर निश्चिंत हैं कि दर्शकों को भी स्क्रीन पर हमारा ये पैशन नजर आएगा।"

उन्होंने आगे कहा, "चंद्रमुखी और कलाकारों के बारे में अधिक चीजें बताना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन हम यह कह सकते हैं कि फिल्म निर्माताओं से लेकर संगीतकारों और कलाकारों का एक प्रतिभाशाली मिश्रण है, जो हमारे मराठी दर्शकों के लिए इस खूबसूरत प्रस्तुति को लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। मेरा ²ढ़ता से यह मानना है कि इस फिल्म में मराठी सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की क्षमता है।"

साल 2015 के चुनावों में 56.66 फ़ीसदी मतदान हुआ और इसमें महिलाओं का वोट प्रतिशत जहां 60.48 फ़ीसदी रहा वहीं पुरुष का वोट प्रतिशत 53.32 फ़ीसदी था.

आंकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट है कि महिला वोटर जिसे चाहें उसे सत्ता की चाबी सौंप सकती हैं.

लेकिन महिला वोटरों को लेकर एक सवाल जो हमेशा से उठता रहा है कि क्या उनका वोट स्वतंत्र होता है? एक आम धारणा है कि महिलाओं का वोट स्वतंत्र नहीं होता. उन पर उनके पति, पिता, बेटे, भाई की पसंद का ख़ासा असर होता है.

कटिहार की प्रभावती के लिए जैसे उनके बेटे का पढ़ा-लिखा होना इस बात की तस्दीक़ करता है कि उसकी पसंद के उम्मीदवार को वोट देना ही सही फ़ैसला होगा, वहीं रौतेरा बाज़ार में ही सब्ज़ी बेचने वाली सावित्री को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि किसने क्या किया और कौन क्या वादा कर रहा है.

उनका मानना है कि वोट देना एक प्रक्रिया है और अगर उन्होंने वोट नहीं दिया तो सरकार नाराज़ हो जाएगी. (आईएएनएस)

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