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भाजपा नेता जय पंडा पर दलितों की ज़मीन हथियाने का आरोप, क्या है पूरा मामला?
24-Nov-2020 8:57 AM
भाजपा नेता जय पंडा पर दलितों की ज़मीन हथियाने का आरोप, क्या है पूरा मामला?

नई दिल्ली, 24 नवंबर | भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत उर्फ़ जय पंडा और उनकी पत्नी जगी मंगत पंडा के ऊपर अब ख़तरे के बादल मंडराने लगे हैं.

दलितों की ज़मीन हड़प करने के कथित आरोप में ओडिशा पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने दोनों के ख़िलाफ़ एक केस दायर किया है. पंडा दंपति ने इस मामले में ओडिशा हाईकोर्ट में पुलिस के केस के ख़िलाफ़ एक याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने शुक्रवार को ख़ारिज कर दिया.

साथ ही अदालत ने पाँच नवंबर को जय और जगी को दी गई अंतरिम सुरक्षा हटा दी. हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद जय और जगी की गिरफ़्तारी का रास्ता साफ़ हो गया है.

क्या है मामला?

31 अक्तूबर को ओडिशा पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और ओडिशा भूसंस्कार क़ानून के तहत ओडिशा इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड (ओआईपीएल) के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की थी. जय और जगी इस कंपनी के प्रमोटर हैं.

ओआईपीएल पर आरोप है कि 2010 से 2013 के बीच कंपनी ने खुर्दा ज़िले के सारूआ गांव में ग़ैर-क़ानूनी ढंग से 22 दलितों से 7.924 एकड़ ज़मीन ख़रीदी.

ग़ौरतलब है कि ओडिशा में आदिवासियों और दलितों की ज़मीन को ग़ैर-आदिवासी/दलित नहीं ख़रीद सकते हैं. केवल विशेष परिस्थितियों में और ज़िलाधीश की अनुमति मिलने पर ही एक दलित, किसी ग़ैर-दलित को अपनी ज़मीन बेच सकता है. लेकिन ऐसी अनुमति मिलना आमतौर पर काफ़ी मुश्किल होता है.

ओआईपीएल पर आरोप है कि उसने इस क़ानून से बचने के लिए रवि सेठी नाम के अपने एक दलित कर्मचारी का इस्तेमाल किया, जो पंडा परिवार के ओड़िया टीवी चैनल 'ओटीवी' में ड्राइवर की नौकरी किया करते थे.

एफ़आईआर के अनुसार ओआईपीएल ने रवि के ज़रिए 22 दलितों से ज़मीन ख़रीदवा कर अपने नाम करवा लिया. आरोप ये भी है कि ख़रीद-फ़रोख़्त के दस्तावेज़ में तो यह दिखाया गया है कि रवि ने यह ज़मीन 22 लाख में ख़रीदी और फिर उस ज़मीन को ओआईपीएल को 65 लाख में बेच दिया लेकिन असल में रवि और ओआईपीएल के बीच पैसे का कोई लेनदेन नहीं हुआ.

केवल ज़मीन संबंधी काग़ज़ात पर उसके हस्ताक्षर लिए गए. एफ़आईआर में बताया गया है कि रवि का वेतन सिर्फ़ आठ हज़ार रुपये प्रति महीना था और 22 लाख देकर ज़मीन ख़रीदने की उनकी हैसियत नहीं थी.

एफ़आईआर दर्ज करने के अगले ही दिन यानी एक नवंबर को पुलिस ने ओआईपीएल के तत्कालीन निदेशक और ओटीवी के मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफ़ओ) मनोरंजन सारंगी को गिरफ़्तार कर लिया था.

मामला हाईकोर्ट में

पुलिस केस को चुनौती देते हुए जय और जगी ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें इस संदर्भ में दर्ज एफ़आईआर को ख़ारिज किए जाने की अपील की गई थी.

पाँच नवंबर को मामले की पहली सुनवाई में जय और जगी ने यह कहकर कोर्ट से सुरक्षा माँगी थी कि पुलिस उन दोनों को गिरफ़्तार कर सकती है क्योंकि वे दोनों इस कंपनी के प्रमोटर हैं.

हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी और मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 नवंबर की तारीख़ मुक़र्रर की.

13 नवंबर की सुनवाई में मनोरंजन सारंगी ने उन्हें मुक़दमे से बाहर रखे जाने की अपील की क्योंकि वे इस बीच ओआईपीएल के निदेशक पद और ओटीवी के सीएफ़ओ पद से भी इस्तीफ़ा दे चुके हैं.

हाईकोर्ट ने उनके आवेदन को स्वीकार किया और उन्हें इस मामले से बाहर रखने का आदेश जारी कर दिया. लेकिन मुख्य याचिका पर अपनी राय संरक्षित रखते हुए पाँच नवंबर को पंडा दंपति को दी गई अंतरिम सुरक्षा की अवधि मामले पर अंतिम फ़ैसला होने तक बढ़ा दी गई थी.

पिछले शुक्रवार को मामले पर अपना फ़ैसला सुनाते हुए न्यायाधीश बीपी राऊतराए की खंडपीठ ने पंडा दंपति द्वारा दायर याचिका को यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि इस समय मामले की जाँच में कोर्ट के हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने उनकी इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि यह मामला सत्तारूढ़ पार्टी के द्वेष और ग़लत मंशा का नतीजा है .

कोर्ट ने कहा कि इस आरोप को साबित करने के लिए आवेदनकारियों की ओर से कोई दस्तावेज़ पेश नहीं किया गया. साथ ही खंडपीठ ने उन्हें दी गई अंतरिम सुरक्षा भी हटा दी.

इस फ़ैसले के बाद अब जय और जगी की गिरफ़्तारी के लिए रास्ता साफ़ हो गया है. हालांकि उन्हें सचमुच गिरफ़्तार किया जाएगा या नहीं, इस बारे में पुलिस आर्थिक अपराध शाखा ने अभी तक कोई संकेत नहीं दिया है .

पंडा दंपति की प्रतिक्रिया

मामले पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जगी पंडा ने बीबीसी से कहा कि सारे आरोप ग़लत और निराधार हैं.

उन्होंने कहा, "असल में जिस क़ानून के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है, वह क़ानून इस मामले में लागू नहीं होता क्योंकि जिस इलाक़े में यह ज़मीन ख़रीदी गई वह औद्योगिक इलाक़ा है. वहाँ हमने 100 एकड़ से अधिक ज़मीन ख़रीदी है और उसपर एक 'इको फ़्रेंडली' और सौर ऊर्जा चालित फ़िल्म सिटी बनाई है जहां सैकड़ों लोग काम करते हैं. यहाँ सिनेमा और टीवी सीरियल बनाए जाते हैं. जिस सात एकड़ की बात की जा रही है वह इस फ़िल्म सिटी का एक छोटा सा हिस्सा है. यह ज़मीन ख़रीदते समय हमने सारे क़ानून और नियमों का पालन किया है. हम इस मामले की निष्पक्ष जाँच की माँग करते हैं और हमें पूरा विश्वास है कि अंत में हम सही साबित होंगे."

जगी ने कहा कि ओटीवी ने जिस तरह नवीन पटनायक सरकार में हुए भ्रष्टाचार को उजागर किया है, उससे नाराज़ होकर सरकार ने पिछले कुछ हफ़्तों में उनकी कंपनियों, कर्मचारियों और परिवार के सदस्यों पर लगभग 20 मामले दायर किए हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि 'सभी मामलों में पुलिस ने पक्षपात किया है और सारे नियमों को ताक पर रखा.'

कौन हैं जय पंडा और क्या है राजनीति

एक समय था जब जय पंडा, बीजू जनता दल अध्यक्ष और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के सबसे क़रीबी दोस्तों में से एक थे. वैसे तो इस मित्रता के कई कारण थे लेकिन सबसे बड़ा कारण यह था कि नवीन के स्वर्गीय पिता और पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक और जय के पिता और जाने माने उद्योगपति डॉक्टर बंशीधर पंडा अच्छे मित्र थे और दोनों में पारिवारिक संबंध थे.

जय बीजू को बीजू अंकल पुकारा करते थे. ऐसे में यह स्वाभाविक था कि नब्बे के दशक के अंत में जब नवीन पटनायक अपने पिता के देहांत के बाद राजनीति के मैदान में उतरे तो जय उनके क़रीबी मित्र बन गए. यह मित्रता क़रीब डेढ़ दशक तक चली.

साल 2000 से लेकर 2014 तक जय पंडा, राजधानी दिल्ली में बीजेडी का 'चेहरा' हुआ करते थे और लगभग हर टीवी बहस में पार्टी का प्रतिनिधित्व करते थे. नवीन से मित्रता के कारण जय दो बार राज्यसभा और दो बार लोकसभा सदस्य बने और केंद्रापड़ा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

रिश्तों में दरार

लेकिन 2014 के चुनाव के आसपास दोनों के रिश्तों में दरार नज़र आने लगी. दोनों के बीच फूट का सही कारण किसी को नहीं पता. लेकिन इस मामले को क़रीब से देखने वालों की मानें तो जय की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं और पार्टी में किसी दूसरे का क़द बढ़ने को लेकर नवीन पटनायक की असहिष्णुता के कारण ही दोनों में अनबन शुरू हुई.

साल 2014 से लेकर 2019 के आम चुनाव के पहले तक दोनों के बीच रस्साकशी चलती रही. इस दौरान जय, नवीन के ख़िलाफ़ खुलकर सामने नहीं आये. लेकिन चुनाव के ठीक पहले जब जय ने भाजपा से नज़दीकियां बढ़ानी शुरू की, तब दोनों के बीच की लड़ाई खुलकर सामने आ गई.

साल 2019 के चुनाव में जब भाजपा ने जय को केंद्रापड़ा लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी चुना तो उन्हें हराने के लिए नवीन और बीजेडी ने सब कुछ झोंक दिया. नतीजा यह हुआ कि जय जिस लोकसभा क्षेत्र का लगातार दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके थे, वहीं से वे क़रीब डेढ़ लाख वोट से हार गए और सिने स्टार अनुभव मोहंती वहाँ से सांसद बन गए.

आगे क्या होगा?

चुनाव के बाद नवीन और जय के बीच लड़ाई और भी तीखी हो गई.

जय पंडा पर कभी चिलका झील के ऊपर हेलिकॉप्टर उड़ाने के लिए मामला दर्ज कर उनके हेलिकॉप्टर को ज़ब्त किया गया. कभी पंडा परिवार की कंपनी इंफा द्वारा क्रोम खनिज परिवहन के रास्ते पर पर्याप्त सिंचाई न करने के आरोप में कंपनी द्वारा खनन का काम बंद किया.

जय पंडा की कंपनियों के ख़िलाफ़ 20 मामले दर्ज किए गए हैं. दलित ज़मीन हड़प का मामला भी इसी क्रम में आता है. लेकिन मामले से संबंधित तथ्यों के आधार पर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि शायद इस मामले से पीछा छुड़ाना आसान नहीं होगा. (bbc)

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