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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर | सुप्रीम कोर्ट ने मानसिक रूप से अक्षम एवं मंद बुद्धि लड़की के साथ दुष्कर्म के आरोपी व्यक्ति की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी के साथ न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आरोपी ने लड़की की मानसिक विकलांगता और पीड़िता के कम आईक्यू का लाभ उठाया है।
पीठ ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के सितंबर, 2016 के फैसले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी कि उसने पीड़ित महिला की मानसिक बीमारी का बेजा फायदा उठाते हुए उसका शोषण किया था। उसे बरी करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था और उसे दुष्कर्म का दोषी मानते हुए सात साल की सजा सुनाई थी।
शीर्ष अदालत ने डीएनए रिपोर्ट पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया है कि आरोपी पीड़िता के बच्चे का जैविक पिता है। पीठ ने कहा कि यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि यह एक पीड़िता पर यौन हमले का मामला है, जिसका आईक्यू 62 है और वह मानसिक रूप से मंद है और आरोपी ने पीड़ित की मानसिक बीमारी का अनुचित लाभ उठाया है।
पीठ ने कहा, "मानसिक रूप से बीमार लोगों को विशेष देखभाल और प्यार की जरूरत होती है, उनका शोषण नहीं किया जाना चाहिए।" इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने मानसिक रूप से दिव्यांग महिला के साथ दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति की सजा को बरकरार रखा।
मामले में प्राथमिकी 2008 में पीड़िता के पिता द्वारा दर्ज कराई गई थी। उन्होंने कहा कि उनकी बेटी ने अपनी मां को बताया था कि जब वह मवेशी चराने गई थी तो आरोपी ने उसके साथ दुष्कर्म किया।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि डर और मानसिक कमजोरी के कारण पीड़िता ने शुरूआत में किसी के साथ घटना का खुलासा नहीं किया था। (आईएएनएस)