राष्ट्रीय
photo credit SANJAY DAS
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल के दो दिन के दौरे के आखिरी दिन क्या बाहरी का तमगा हटाने के लिए ही बीरभूम जिले में शांति निकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय पहुंचे थे?
क्या इसका एक मकसद रवींद्रनाथ टैगोर की प्रशंसा कर बीते लोकसभा चुनावों से पहले ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा टूटने से हुए नुकसान की भरपाई भी थी? शाह के दौरे से गरमाती राजनीति के बीच यहां राजनीतिक हलकों में यही सवाल उठ रहे हैं.
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की मानें तो इसका जवाब 'हां' है और बीजेपी के नेताओं की सुनें तो इसका जवाब 'ना' है.
ध्यान रहे कि ममता बनर्जी और टीएमसी के तमाम नेता बीजेपी और उसके नेताओं को बाहरी बताते रहे हैं. ममता बार-बार कहती रही हैं कि बंगाल के लोग ही यहां राज करेंगे, गुजरात के नहीं.
माना जा रहा है कि अमित शाह अपने दौरे में इस रणनीति की काट के लिए ही राज्य की तमाम विभूतियों से जुड़ी जगहों का दौरा कर रहे हैं. इनमें विश्वभारती विश्वविद्यालय का स्थान सबसे ऊपर है.
सियासी फायदे के लिए दौरा
अपने दौरे के आखिरी दिन अमित शाह ने विश्वभारती में जाकर रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के आवासों को देखा और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
उसके बाद उन्होंने उपासना गृह का दौरा किया और बाद में अपने सम्मान में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया. विश्वविद्यालय परिसर से बाहर निकलने से पहले पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कविगुरू की भूरि-भूरि सराहना की थी.
शाह ने पत्रकारों से कहा, "विश्वभारती में पहुंच कर दो महापुरुषों रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के आवास को देखने और उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मिला. उन्होंने भारतीय ज्ञान, दर्शन, कला और साहित्य की गूंज पूरी दुनिया में पहुंचाई और विश्वभारती के जरिए इनके संरक्षण और संवर्धन में अहम भूमिका निभाई."
गृह मंत्री ने कहा कि रवींद्रनाथ ने दुनिया के कई देशों की भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति के साथ भारतीय भाषाओं के सामंजस्य के लिए विश्वभारती को केंद्र बनाया.
शाह का रोड शो
वहां से निकलने के बाद उन्होंने पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के साथ बाउल कलाकार बासुदेव दास के घर दोपहर का भोजन किया और उसके बाद रोड शो किया.
रोड शो में शाह ने दावा किया कि बंगाल में बदलाव की बयार तेज़ हो गई है और रोड शो में जुटी भीड़ इसका सबूत है. बाउल कलाकार के घर भोजन के बाद उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा, "बाउल कला बहुमुखी बांग्ला संस्कृति का सही प्रतिबिंब है."
लेकिन क्या शाह का बीरभूम दौरा बाहरी के तमगे से निजात पाने के लिए था? प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि रवींद्रनाथ सिर्फ बंगाल के ही नहीं पूरे देश के गौरव हैं. अमित शाह का दौरा सामान्य दौरा था. पहले दिन वे मेदिनीपुर गए और दूसरे दिन विश्व भारती गए. इसका कोई सियासी निहितार्थ नहीं था.
लेकिन दूसरी ओर, टीएमसी ने कहा है कि गुरुदेव के विचारों को जाने बिना बीजेपी अपने सियासी फायदे के लिए उनका इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है.
पार्टी के नेता सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "बीजेपी बाहरी है. वह बंगाल के महापुरुषों का महत्व समझे बिना उनका राजनीतिक इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है. उसे बंगाल की संस्कृति की समझ नहीं है."
शांतिनिकेतन से दिल्ली
वैसे, शांतिनिकेतन से दिल्ली के लिए निकलने से पहले शाह ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कहा उससे साफ हो गया कि पार्टी बाहरी के तमगे को हटाने के लिए जूझ रही है.
उनका कहना था, "बीजेपी अगर बंगाल की सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री इसी माटी का लाल बनेगा, कोई बाहरी नहीं."
शाह यहीं नहीं रुके. उन्होंने सवाल किया कि क्या ममता एक ऐसा देश चाहती हैं जहां एक राज्य के लोग दूसरे राज्य में नहीं जा सकें? क्या वे इंदिरा गांधी औऱ नरसिंह राव के बंगाल आने पर भी उनको बाहरी कहती थीं?
शाह ने कहा, "आप चिंता न करें. आपको हराने के लिए दिल्ली से कोई नहीं आएगा. बंगाल का ही कोई व्यक्ति राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनेगा और वह बंगाली ही होगा."
केंद्रीय गृह मंत्री का कहना था कि राज्य सरकार की नाकामियों से ध्यान हटाने के लिए ममता और उनकी पार्टी बाहरी और स्थानीय का मुद्दा उठा रही है. उन्होंने आंकड़ों के हवाले कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य समेत विकास के तमाम सूचकांकों पर बंगाल का प्रदर्शन दयनीय रहा है.
निराधार आरोप
लेकिन रविवार को ही तृणमूल कांग्रेस ने आंकड़ें जारी करते हुए शाह की ओर से पेश आंकड़ों को निराधार और गलत करार दिया.
पार्टी के प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने सोशल मीडिया पर जारी आंकड़ों में बंगाल में तीन सौ बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या के शाह के दावे को निराधार बताते हुए कहा है कि इनमें से ज्यादा लोग निजी दुश्मनी की वजह से मारे गए हैं. कई मामलों में तो आत्महत्या को भी हत्या में शामिल कर लिया गया है. इसके उलट 1997 से अब तक टीएमसी के 1027 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है.
बीरभूम जिला तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष अणुब्रत मंडल कहते हैं, "बीजेपी के नेता चुनावों के समय नौटंकी करने लगते हैं. शाह का यह दौरा भी उसी नौटंकी का हिस्सा है. उनको बंगाल की संस्कृति और विभूतियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. बीजेपी कविगुरु जैसी हस्ती को भी सियासी हित में इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है."
टीएमसी नेता सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "बीजेपी बाहरी है. वह बंगाल के महापुरुषों का महत्व समझे बिना उनका राजनीतिक इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है. उसे बंगाल की संस्कृति की समझ नहीं है."
शांतिनिकेतन दौरे पर विवाद
शाह के शांतिनिकेतन दौरे पर विवाद भी पैदा हो गया है. दरअसल, शाह के दौरे से पहले एक स्थानीय संगठन की ओर से जो बैनर और कट-आउट लगाए गए थे उनमें रवींद्रनाथ से ऊपर शाह की तस्वीर थी.
विश्व भारती के छात्रों के विरोध के बाद हालांकि बाद में उनको हटा लिया गया था.
लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर शाह और बीजेपी पर जम कर हमले किए.
इसके विरोध में पार्टी की ओर से कविगुरु के जन्म स्थान जोड़ासांको में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया.
शांतिनिकेतन और विश्वभारती में तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद् और गैर-शिक्षक कर्मचारी संगठन की ओर से इसके विरोध में रैली निकाली गई.
बंगाल का अपमान
टीएमसी नेताओं ने इस मुद्दे पर शाह और बीजेपी पर हमला करते हुए उन पर टैगोर का अपमान करने का आरोप लगाया है.
ग्रामीण विकास मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने पत्रकारों से कहा, "जो लोग बंगाल की संस्कृति नहीं समझते और बंगाल के गौरव विद्यासागर और रवींद्रनाथ टैगोर का सम्मान नहीं करते, वही बंगाल पर कब्जा करने का सपना देख रहे हैं."
शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम कहते हैं, "बीजेपी ने रवींद्रनाथ का ही नहीं बल्कि बंगाल की जनता का अपमान किया है. हम कविगुरु को माथे पर बिठा कर रखते हैं. लेकिन बैनरों में उनको अमित शाह के नीचे दिखाया गया है. यह बंगाल की संस्कृति का अपमान है."
उन्होंने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कविगुरु का जन्मस्थान जोड़ासांको के बदले शांतिनिकेतन बताया था.
टीएमसी सांसद काकोली घोष दस्तीदार कहती हैं, "बीजेपी की निगाहों में बंगाल की विभूतियों का कोई सम्मान नहीं है. इसलिए कभी वह विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ती है तो कभी अपने नेता की तस्वीर कविगुरु से ऊपर लगाती है."
स्थानीय बनाम बाहरी विवाद
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में शाह की खिंचाई करते हुए कहा कि उन्होंने अपने दौरे में झूठों का पुलिंदा पेश किया है. केंद्रीय गृह मंत्री के पद पर बैठे किसी नेता को ऐसे झूठे दावे और बयान शोभा नहीं देते.
ममता ने भी बोलपुर में 29 दिसंबर को रैली का एलान किया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है इस बार बीजेपी के नेता समझ गए हैं कि ममता के बांग्ला राष्ट्रवाद का मुद्दा हिंदू राष्ट्रवाद की पार्टी की अवधारणा पर भारी पड़ेगा. इसलिए पार्टी के तमाम नेता चुन-चुन कर ऐसी जगहों पर जा रहे हैं. इससे एक तो बाहरी के तमगे से निजात मिल सकती है और दूसरे पार्टी यह दिखा सकती है कि राज्य के मनीषियों के प्रति उसके मन में भारी सम्मान है.
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे सुनील कुमार कर्मकार कहते हैं, "बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा टूटने का खामियाजा भर चुकी है. आखिरी दौर के मतदान से पहले कोलकाता में शाह के रोड शो के दौरान उस प्रतिमा के टूटने की वजह से उस दौर में पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका था. ममता ने उस मुद्दे को अपने सियासी हक में बेहतर तरीके से भुना लिया. यही वजह है कि पार्टी के नेताओं ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है."
एक अन्य पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती भी कहते हैं, "बंगाल की सत्ता पर कब्जे के लिए पार्टी अब टीएमसी के बाहरी बनाम स्थानीय मुद्दे को गंभीरता से लेकर इसकी काट की रणनीति के तहत ही मनीषियों से जुड़ी जगहों का दौरा कर रही है. शायद उसने बीते साल की घटना से सबक सीखा है. क्या उसे इसका कोई फायदा मिलेगा, इस सवाल का जवाब तो आने वाले दिनों में मिलेगा. लेकिन चुनावों से पहले स्थानीय बनाम बाहरी विवाद के और गहराने की संभावना है." (bbc)