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सेक्स के नाम पर सेंसर होने वाली फ़िल्म जिसमें सेक्स नहीं दिखाया गया था
23-Dec-2020 5:55 PM
सेक्स के नाम पर सेंसर होने वाली फ़िल्म जिसमें सेक्स नहीं दिखाया गया था

photo credit ALAMY

-नील आर्मस्ट्रांग

साल 1939 में लिखे गए उपन्यास "ब्लैक नार्सिसस" पर कुछ साल बाद फ़िल्म बनी थी. अब वही कहानी टीवी पर दिखाई जा रही है.

"अक्टूबर के आख़िरी सप्ताह में सिस्टर्स ने दार्जिलिंग छोड़ दिया. वे मोपू के जनरल के महल में रहने के लिए आई थीं जिसे अब कॉन्वेंट ऑफ़ सेंट फ़ेथ के नाम से जाना जाता था."

रूमर गॉडेन के उपन्यास "ब्लैक नार्सिसस" की शुरुआत में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे लगे कि इस पर बनी फ़िल्म को सेंसर किया गया होगा, पाबंदी लगाई गई होगी और दुनिया के महान निर्देशकों में से एक मार्टिन स्कॉर्सेस ने उसे "सही मायनों में कामुक फ़िल्म" माना होगा.

उस फ़िल्म को अंग्रेज निर्देशक माइकल पॉवेल और हंगरी में पैदा हुए लेखक-निर्माता एमरिक प्रेसबर्गर ने बनाया था.

इस जोड़ी ने कई क़ामयाब और प्रभावी फ़िल्में बनाईं जिनमें "ब्लैक नार्सिसस" को सबसे अधिक पसंद किया गया. वही कहानी अब टीवी पर दिखाई जा रही है जिसे बीबीसी और एफ़एक्स प्रोडक्शन ने मिलकर बनाया है. इसमें जेमा आर्टर्टन और आइस्लिंग फ्रैंकोसी ने काम किया है.

यह गॉडेन की तीसरी किताब और पहली बेस्टसेलर थी. आलोचकों ने इसे सुंदर, सूक्ष्म और ताज़गी भरा बताया था. अब तीन भाग में बने टीवी संस्करण की लेखिका अमांडा कोए का कहना है कि वह इसे "दि शाइनिंग विद नन्स" समझती हैं.

90 साल की उम्र में गॉडेन का निधन 1998 में हुआ था. वह इंग्लैंड में जन्मी थीं लेकिन बचपन का बड़ा हिस्सा उन्होंने भारत में बिताया था. उनके पिता यहां एक स्टीमर कंपनी का प्रबंध करते थे. गॉडेन ने 60 से ज़्यादा किताबें लिखीं जिनमें कई पर फ़िल्में बनीं.

"ब्लैक नार्सिसस" गॉडेन की सबसे मशहूर किताब है. इसकी एक वजह इस पर 1947 में बनी फ़िल्म की लोकप्रियता है.

पहाड़ी महल में कैथोलिक ननें

यह कुछ एंग्लो-कैथोलिक ननों की कहानी है जिनको दूरदराज के हिमालय पर 8,000 फीट (2,400 मीटर) की ऊंचाई पर बने महल में भेजा गया था. उनको देसी लोगों के लिए एक स्कूल और दवाखाना खोलने के लिए कहा गया था भले ही वे लोग चाहें या न चाहें.

युवा मगर कम तजुर्बेकार सिस्टर क्लोडग को इस मिशन की प्रमुख बनाया गया था. ननों में सिस्टर रूथ को संभालना सबसे मुश्किल था.

यह महल एक गहरी खाई के किनारे पर बना था. वहां तेज़ हवाएं चलती थीं. स्थानीय लोग इस महल को महिलाओं के घर के रूप में जानते थे, क्योंकि यहां पहले उस जगह के राजा ने अपना हरम रखा था. वहां कई आत्माएं भटकती थीं.

इस महल में रहते-रहते वे सांसारिक इच्छाओं से घिर जाती हैं. एक नन सब्जियों की जगह फूल के पौधे लगाती है और उसे बगीचे से प्यार हो जाता है.

बच्चों को संभालने वाली एक नन अपने ख़ुद के बच्चे के लिए तरसती है. सिस्टर क्लोडग युवा प्रेम संबंध की यादों से परेशान रहती है और सिस्टर रूथ गांव में रहने वाले एक लंपट अंग्रेज मिस्टर डीन के लिए वासना से भर जाती है.

गांव की एक सुंदर लड़की कांची जब ननों द्वारा शिक्षित युवाओं का दिमाग फेर देती है तो उनकी दमित लालसा और जोर मारती है. आख़िरकार यह दबी हुई लालसा सैलाब बन जाती है और बांध तोड़ देती है.

कहानी में मसाला

उपन्यास में यौन प्रसंगों को विस्तार नहीं दिया गया, लेकिन जब पॉवेल ने इसे पढ़ा तो उन्हें लगा कि फ़िल्मी पर्दे पर यह कहानी बेहद कामुक लगेगी.

पॉवेल के क्रिएटिव पार्टनर प्रेसबर्गर, गॉडेन को लंच पर ले गए और फ़िल्म बनाने की अपनी योजना के बारे में बताया.

गॉडेन की जीवनी के मुताबिक उनको लगा कि "अगर वे सेंसर की मंजूरी हासिल कर लेते हैं तो ब्लैक नार्सिसस की सही कहानी पर्दे पर आएगी."

1946 में जब पॉवेल और प्रेसबर्गर ने फ़िल्म पर काम शुरू किया तब तक उनकी टीम पहले से ही कामयाब थी. वे "दि लाइफ़ एंड डेथ ऑफ़ कर्नल ब्लिंप" (1943) और "अ कैंटरबरी टेल" (1944) बना चुके थे.

"ए मैटर ऑफ़ दि लाइफ़ एंड डेथ" की रिलीज़ वाले साल में ही उन्हें पहली बार रॉयल फ़िल्म परफॉर्मेंस के लिए चुना गया.

उन्होंने तुरंत ही फ़ैसला किया कि "ब्लैक नार्सिसस" की शूटिंग भारत में करना बहुत महंगा और मुश्किल होगा.

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सारा स्ट्रीट का कहना है कि पॉवेल ने इसे सकारात्मक तरीके से लिया. उन्हें लगा कि स्टूडियो के नियंत्रित वातावरण में वह शानदार फ़िल्म बना पाएंगे. हिमालय दिखाने के लिए उन्होंने पश्चिमी ससेक्स में होरशाम के लियोनार्डली में चीड़ के जंगल को चुना.

क्लोडग की भूमिका के लिए डेबोरो केर और रूथ के लिए कैथरीन बायरन को चुना गया. पॉवेल के दोनों अभिनेत्रियों से संबंध थे. उन्होंने अपनी आत्मकथा में दावा किया है कि एक बार बायरन ने उन पर बंदूक तान दी थी- "नग्न महिला और भरी हुई बंदूक प्रेरक चीजें हैं."

बायरन ने इस कहानी को खारिज कर दिया था. उनके मुताबिक "जब मुझे ब्लैक नार्सिसस ऑफर किया गया तब माइकल पॉवेल ने मुझे एक तार भेजा था जिसमें लिखा था कि हम आपको सिस्टर रूथ का रोल दे रहे हैं, मुश्किल यह है कि आपको ऐसी भूमिका आगे कभी नहीं मिलेगी. वह कमोबेश सही थे."

फ़िल्म रिलीज़ के कई साल बाद लोग आज भी बायरन को "सनकी नन" के रूप में याद करते हैं.

स्ट्रीट ने पता लगाया कि 44 दिन के काम के लिए बायरन को सिर्फ़ 900 पाउंड का भुगतान किया गया था. 55 दिनों की शूटिंग के लिए केर को 16 हजार पाउंड मिले थे.

क्लासिक फ़िल्म

ब्रिटेन के दर्शकों ने फ़िल्म को बहुत पसंद किया. आलोचक इसे लेकर उधेड़बुन में थे (हालांकि सिनेमेटोग्राफर जैक कार्डिफ को ऑस्कर मिला था) और रूमर गॉडेन को इससे नफरत थी.

अमरीकी कैथोलिक लीजन ऑफ़ डीसेंसी की नाराज़गी दूर करने के लिए सिस्टर क्लॉडग के नन बनने से पहले की ज़िंदगी के फ्लैशबैक का हिस्सा हटा दिया गया. कुछ और दृश्य भी काटे गए.

फ़िल्म को शुरुआत में आयरलैंड में प्रतिबंधित किया गया क्योंकि सेंसर बोर्ड को लगता था कि यौन माहौल से भरी फ़िल्म से कॉन्वेंट जीवन का मज़ाक बनेगा.

1970 के दशक में इसी दोबारा समीक्षा हुई और अब इसे क्लासिक माना जाता है. स्कॉर्सेस और फ्रांसिस फ़ोर्ड कोपोला इसके कद्रदानों में शामिल हैं.

स्कॉर्सेस को बचपन से ही पॉवेल और प्रेसबर्गर की फ़िल्मों से प्यार है. उनका कहना है कि जब भी वे फ़िल्म की शुरुआत में दि आर्चर्स (पॉवेल और प्रेसबर्गर की प्रोडक्शन कंपनी) का लोगो देखते थे उनको लगता था कि अब वे कुछ बहुत ही ख़ास चीज़ देखने जा रहे हैं.

स्कॉर्सेस ने एक डीवीडी रिलीज़ की ऑडियो कमेंट्री में "ब्लैक नार्सिसस" को "पहली सच्ची कामुक फ़िल्मों में से एक" करार दिया.

जिसे भी इसमें शक हो उसे फ़िल्म के अंत का वह सीन देखना चाहिए जिसमें सिस्टर क्लोडग उन्माद से भरी सिस्टर रूथ के कमरे में जाती है जहां वह अपनी आदत के मुताबिक सुर्ख लाल रंग की लिबास में है.

माथे पर पसीने की बूंदों के साथ रूथ अपने नम होठों पर लाल लिपस्टिक लगाते हुए सिस्टर क्लोडग पर ताने मारती है.

इस दृश्य को कामुक अंदाज़ में क्लोज-अप करके फिल्माया गया था. अमरीका में यह सीन भी काटा गया था.

स्ट्रीट कहती हैं, "लिपस्टिक वाले पल अविश्वसनीय हैं. अपने आप में यह दृश्य बहुत कामुक है, लेकिन फ़िल्म में यह इस बात का डर दिखाता है कि रूथ जिस तरह की शख्सित बन गई है वह दूसरी ननों में भी हो सकती है."

टीवी के लिए बनाए गए नये संस्करण में यह सीन है. कोए कहती हैं, "फ़िल्म को पसंद करने वाले लोग कुछ चीज़ें यहां भी देखना चाहेंगे."

आर्टर्टन सिस्टर क्लोडग बनी हैं और फ्रैंकोसी सिस्टर रूथ की भूमिका में है. इसमें दिवंगत डायना रिग की भी एक छोटी भूमिका है जो टीवी के लिए उनका आख़िरी रोल है (रिग ने ननों के बारे में गॉडेन की दूसरी कहानी के स्क्रीन रूपांतरण - इन दिस हाउस ऑफ़ ब्रेडे- में भी काम किया था.).

नये युग के लिए "ब्लैक नार्सिसस"

यह मिनी सीरीज़ पॉवेल और प्रेसबर्गर की क्लासिक फ़िल्म को श्रद्धांजलि देती है. मेलोड्रामा में कुछ चीज़ों को हल्का किया गया और कुछ थीम, जैसे ब्रिटिश साम्राज्य के पतन को अधिक छेड़ा गया.

कलाकारों का चयन बेहतरीन है. सहायक भूमिकाएं निभाने वाले कई कलाकार अपनी छाप छोड़ते हैं.

मिसाल के लिए सिस्टर ब्लैंच का रोल निभाने वाली पैट्सी फ़ेरान और फूलों की दीवानी सिस्टर फिलिप्पा का रोल करने वाली कैरेन ब्रायसन, जो मोपू के ख़तरों के बारे में जान जाती हैं.

मिस्टर डीन की भूमिका एलेसांद्रो निवोला ने निभाई है जो इस फ़िल्म से पहले से परिचित थे. उनकी पत्नी एमिली मॉर्टिमर 2010 में जब स्कॉर्सेस की साइकोलॉजिकल थ्रिलर "शटर आइलैंड" के लिए काम कर रही थी तब उन्होंने एमिली से होमवर्क के तौर पर यह फ़िल्म देखने को कहा था.

निवोला ने बीबीसी कल्चर को बताया, "शटर आइलैंड को वो जिस तरह से शूट करना चाहते थे उसमें एक बड़ी प्रेरणा ब्लैक नार्सिसस थी. वह चाहते थे कि फ़िल्म के सभी कलाकर उस फ़िल्म को देखें. मुझे याद है कि वह (मॉर्टिमर) घर आकर बोली थी कि मार्टी चाहते हैं कि हम यह फ़िल्म देखें."

"इस तरह मैंने पहली बार इसे देखा था. यह अजीब और विचित्र था. मुझे याद है कि इसमें सभी तरह की कामुकता थी लेकिन किसी भी तरह का स्पष्ट प्रदर्शन नहीं था."

वास्तव में, इस फ़िल्म की यौनिकता इतनी सांकेतिक है कि इसे टीवी पर रविवार दोपहर को भी दिखाया गया तो कोई शिकायत नहीं आई.

कोए कहती हैं, "मैंने बहुत सी ऐसी बातें लिखी हैं जिसमें यौन सामग्री बहुत स्पष्ट है. मेरे परिवार में यह मज़ाक चलता है कि मैं ऐसा कुछ नहीं लिखती जिसे मेरी मां या मेरे बच्चे देख सकें."

"मुझे लगता है कि इसे हर कोई देख सकता है. लेकिन एक तरह से यह सबसे कामुक चीज़ है जिस पर मैंने काम है क्योंकि इसमें दबी हुई कामुकता है."

"कहानी का एक पहलू दि शाइनिंग विद नन्स की तरह है. मोपू ओवरलुक होटल जैसा है, एक बहुत ही अलग-थलग सी जगह जहां नन, सभी अपने तरीके से, थोड़ी पागल होने लगती हैं."

समानता और अंतर

पॉवेल और प्रेसबर्गर की फ़िल्म और टीवी सीरीज़ में निरंतरता का एक तत्व है. टीवी सीरीज़ के एक सह-निर्माता एंड्रयू मैकडोनल्ड, प्रेसबर्गर के पोते हैं. क्रू की एक सदस्य गॉडेन की पोती हैं.

इसकी कुछ शूटिंग नेपाल में हुई है, लेकिन टीवी सीरीज़ के अंदरूनी हिस्से चीड़ के जंगल में बने सेट पर फिल्माए गए हैं.

एक अहम अंतर मौजूद है. यह फ़िल्म फिलहाल स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ब्रिटबॉक्स पर उपलब्ध है जहां यह एक चेतावनी के साथ आती है. इस चेतावनी का यौन या धार्मिक सामग्री से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह बदलते सामाजिक मूल्यों से संबंधित है- "इस क्लासिक ड्रामा में ब्लैकफेड प्रदर्शन है जो बुरा लग सकता है."

अंग्रेज अदाकारा जीन सिमन्स ने मूल फ़िल्म में कांची का रोल किया था. उस फ़िल्म में सिर्फ़ एक भारतीय कलाकार था- साबू जो युवा जनरल बना था और सिस्टर्स से शिक्षा पाना चाहता था (वह ब्लैक नार्सिसस नामक इत्र पसंद करता था- जिससे इस फ़िल्म को नाम मिला था).

नये टीवी संस्करण में, विभिन्न नस्लों के कलाकार शामिल हैं. मिसाल के लिए कांची का रोल दीपिका कुंवर ने किया है जो ब्रिटिश-नेपाली अदाकारा हैं.

यह सीरीज़ निश्चित रूप से नये पाठकों को गॉडेन की किताब पढ़ने के लिए प्रेरित करेगी. टीवी सीरीज़ के साथ इस किताब का नया हार्डबैक संस्करण भी आया है, जिसकी भूमिका कोए ने लिखी है.

वह इस उपन्यास को "स्त्रियों की भव्य कविता" कहती हैं, जिसमें "सेक्स है, आध्यात्मिक करुणा है और मीठे मटर के पौधे लगाने की तड़प है. मैं इस तरह की दूसरी किताब के बारे में नहीं सोच सकती."(https://www.bbc.com/hindi)

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