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देशद्रोह के मनमाने आरोप थोप लोगों को जेल - अमर्त्य सेन
30-Dec-2020 9:15 AM
देशद्रोह के मनमाने आरोप थोप लोगों को जेल - अमर्त्य सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का कहना है कि भारत में मनमाने तरीके से देशद्रोह के आरोप थोपकर लोगों को बिना मुकदमे के जेल भेजा रहा है।

जानेमाने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने किसान आन्दोलन का खुलकर समर्थन किया है।  

उन्होंने पीटीआई को ई-मेल के माध्यम से दिए एक साक्षात्कार में भारत की केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का समर्थन किया।

सेन ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों की समीक्षा करने के लिए मज़बूत आधार मौजूद हैं क्योंकि इन कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।  उन्होंने कहा ककि निश्चित तौर पर इन कानूनों की समीक्षा करने के लिए एक मजबूत आधार पाया जाता है, लेकिन पहली जरूरत यह है कि उपयुक्त चर्चा की जाए, न कि कथित तौर पर बड़ी रियायत देने की बात कही जाए, जो असल में बहुत छोटी रियायत होगी।  सेन ने यह भी कहा कि भारत में वंचित समुदायों के साथ व्यवहार में बड़ा अंतर मौजूद है।  उन्होंने कहा कि भारी असमानता की मौजूदगी, भारत के नीति निर्माण के हर पहलू को प्रभावित करेगी।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्राध्यापक 87 वर्षीय सेन ने कहा कि जो व्यक्ति सरकार को पसंद नहीं आ रहा है, उसे सरकार द्वारा आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और जेल भी भेजा सकता है।  प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा, ‘असहमति और चर्चा की गुंजाइश कम होती जा रही है।  लोगों पर देशद्रोह का मनमाने तरीके से आरोप लगा कर बगैर मुकदमा चलाए जेल भेजा जा रहा है।

अमर्त्य सेन ने इस बात पर दुख जताया कि कन्हैया कुमार, शेहला राशिद और उमर खालिद जैसे युवा कार्यकर्ताओं के साथ अक्सर दुश्मनों जैसा व्यवहार किया गया है।  उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीकों का इस्तेमाल करने वाले कन्हैया, खालिद या शेहला जैसी युवा एवं दूरदृष्टि रखने वाले नेताओं के साथ राजनीतिक संपत्ति की तरह व्यवहार करने के बजाय उनके साथ दमन योग्य दुश्मनों जैसा बर्ताव किया जा रहा है, जबकि उन्हें गरीबों के हितों के प्रति उनकी कोशिशों को शांतिपूर्ण ढंग से आगे बढ़ाने का अवसर दिया जाना चाहिए था।

कोविड-19 या कोरोना महामारी से लड़ने की भारत की कोशिशों पर सेन ने कहा कि बगैर किसी नोटिस के लॉकडाउन थोपा जाना गलत था जबकि सामाजिक मेलजोल से दूरी रखने की जरूरत के मामले में भारत सही था। उन्होंने कहा कि आजीविका के लिए गरीब श्रमिकों की जरूरत को नजरअंदाज करना भी गलती थी।  उन्होंने यह बात मार्च के अंत में लॉकडाउन लागू किए जाने के बाद करोड़ों लोगों के बेरोजगार हो जाने और प्रवासी श्रमिकों के बड़ी तादाद में घर लौटने का जिक्र करते हुए कही।    अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा कि भारत के विभाजन के बाद पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने भारत के अंदर पलायन किया। (parstoday)

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