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यूपी: 'विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश ने राज्य को घृणा, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बना दिया है'
30-Dec-2020 5:01 PM
यूपी: 'विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश ने राज्य को घृणा, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बना दिया है'

-समीरात्मज मिश्र

देश के कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके सौ से ज़्यादा रिटायर्ड नौकरशाहों ने एक दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर राज्य की क़ानून-व्यवस्था पर चिंता जताई थी और राज्य सरकार से ग़ैर-क़ानूनी धर्मांतरण अध्यादेश को वापस लेने की माँग की थी लेकिन यूपी सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने इस चिंता और इनकी आपत्तियों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार और राज्य बीजेपी के प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी का कहना है कि योगी आदित्यनाथ आगे भी इसी अंदाज़ में काम करते रहेंगे. शलभमणि त्रिपाठी पत्र लिखने वाले इन पूर्व नौकरशाहों पर भी सवाल उठाते हैं.

केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों में वरिष्ठ पदों पर रह चुके 104 पूर्व नौकरशाहों के हस्ताक्षर वाले इस पत्र में यूपी के मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए लिखा गया है कि "विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश ने राज्य को घृणा, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बना दिया है."

पत्र लिखने वालों में देश के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव, प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार टीकेए नायर, रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी जेएफ़ रिबेरो, प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार समेत कई रिटायर्ड अधिकारी शामिल हैं.

पत्र के माध्यम से माँग की गई है कि अध्यादेश को वापस ले लिया जाए क्योंकि यह संवैधानिक भावनाओं के अनुकूल नहीं है. पत्र में कहा गया है कि यूपी कभी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए जाना जाता था लेकिन अब वो कट्टरता का केंद्र बन गया है और शासन की संस्थाएं भी सांप्रदायिकता के ज़हर से बची नहीं हैं.

यूपी में क़ानून व्यवस्था
पत्र में हाल के दिनों की कई घटनाओं का ज़िक्र किया गया है जिसमें नए अध्यादेश के तहत कुछ धर्म विशेष के लोगों पर कार्रवाई की गई है. पत्र में अख़बारों में छपी कुछ रिपोर्ट्स का भी हवाला दिया गया है. पत्र लिखने वालों में ललित कला अकादमी के पूर्व चेयरमैन और जाने-माने साहित्यकार अशोक वाजपेयी भी शामिल हैं.

बीबीसी से बातचीत में अशोक वाजपेयी कहते हैं, "सिर्फ़ यही एक मामला नहीं है बल्कि यूपी में क़ानून व्यवस्था लगातार बिगड़ रही है. इस एक अध्यादेश के तहत महीने भर में कितने लोग गिरफ़्तार हुए हैं और जिस तरीक़े से गिरफ़्तार हुए हैं, वह लोकतंत्र के लिए बेहद ख़तरनाक है."

अशोक वाजपेयी कहते हैं कि यह पत्र मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए भले ही लिखा गया है लेकिन इसमें देश के नागरिकों, सत्ताधारियों और सिविल सेवकों, इन तीनों लोगों को संवैधानिक नियमों और कर्तव्यों को याद दिलाने की कोशिश की गई है.

उनके मुताबिक़, "सिविल सेवाओं के लोगों की सरकार की ऐसी कार्रवाइयों में जो मिली भगत दिख रही है, उससे यही लग रहा है कि वो अपने संवैधानिक कर्तव्य और निष्पक्षता में कोताही बरत रहे हैं. ये भूल रहे हैं कि उनका संवैधानिक अस्तित्व और कर्तव्य है. सरकारों के आने-जाने से इन पर फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए. हम लोग भी इन सेवाओं में रहे हैं, हमें पता है. हमने सत्ताधारियों का सहयोग भी किया है और अनैतिक और ग़ैर-क़ानूनी परिस्थितियों में सहयोग करने से इनकार भी किया है."

पत्र में कहा गया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों ने यह फ़ैसला सुनाया है कि जीवनसाथी का चयन करना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी संविधान के तहत मिली हुई है.

पत्र में लिखा है, "यह अध्यादेश तथाकथित 'लव जिहाद' जैसे अपराधों को टार्गेट करता है, जो कि दक्षिणपंथी साज़िश के तहत दिया गया नाम है. यह शब्द केंद्र से मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन इसका प्रयोग अल्पसंख्यकों को आतंकित करने के लिए किया जा रहा है."

भारतीय विदेश सेवा के रिटायर्ड अधिकारी और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक रह चुके डॉक्टर सुरेश कुमार गोयल कहते हैं कि जब किसी बात की संविधान ने आज़ादी दे रखी है तो उसे बाधित करने के लिए क़ानून बनाना संविधान के ख़िलाफ़ है.

बीबीसी से बातचीत में डॉक्टर गोयल कहते हैं, "किसी ने रज़ामंदी से शादी की, लड़की भी कह रही है. सबके सामने दोनों स्वीकार कर रहे हैं लेकिन कुछ लोगों की शिकायत पर कार्रवाई हो जा रही है. जो काम हुआ है, संविधान के ख़िलाफ़ है. नहीं होना चाहिए था. पहले तो ऐसा अध्यादेश आना ही नहीं चाहिए था लेकिन यदि लागू हो गया है तो यह क़ानून वापस होना चाहिए. जबरन धर्म परिवर्तन ग़लत है लेकिन रज़ामंदी से कोई ऐसा कर रहे है तो परेशान नहीं किया जाना चाहिए."

इलाहाबाद उच्च न्यायालय सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों ने यह फ़ैसला सुनाया है कि जीवनसाथी का चयन करना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जिसकी गारंटी संविधान के तहत मिली हुई है

नौकरशाहों की चिट्ठी
इस पत्र पर सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और अरुणा रॉय जैसे पूर्व नौकरशाहों के भी हस्ताक्षर हैं. यूपी सरकार या फिर मुख्यमंत्री कार्यालय से पत्र मिलने की पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी ने इस पत्र पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है.

बीबीसी से बातचीत में शलभमणि त्रिपाठी कहते हैं, "देश में चिट्ठी लिखने वालों का एक गैंग है जो आए दिन कुछ सेलेक्टेड मामलों में पत्र में लिखता रहा है. ये चिट्ठी गैंग संसद पर हुए हमले में शहीद हुए वीर रणबांकुरों के दरवाज़ों पर भले न गई हो पर इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों और ग़द्दारों को फांसी से बचाने के लिए चिट्ठी लेकर आधी रात अदालतों के दरवाज़े पर ज़रूर पहुँच जाती है. ऐसे गैंग के बारे में देश का हर व्यक्ति जानता है. इसकी हम परवाह भी नहीं करते. चिट्ठी गैंग को चिट्ठी लिखने दीजिए, योगी जी अपने अंदाज़ में काम करते रहेंगे."

उत्तर प्रदेश सरकार ने 28 नवंबर को राज्य धर्म परिवर्तन अध्यादेश जारी किया था जिसके बाद इस क़ानून के तहत अब तक 14 केस दर्ज किए जा चुके हैं. इन मामलों में अब तक 51 लोग गिरफ़्तार किए गए थे जिनमें 49 लोग अभी भी जेल में हैं. दिलचस्प बात यह है कि ज़्यादातर मामलों में शिकायत करने वाले परिवार के लोग हैं या फिर दूसरे लोग. पीड़ित महिलाओं की ओर से सिर्फ़ दो मामलों में शिकायत दर्ज कराई गई है. (bbc.com)
 

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