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असम: CAA के विरोध में मारे गए सैम के परिजन जारी रखना चाहते हैं आंदोलन
31-Dec-2020 12:22 PM
असम: CAA के विरोध में मारे गए सैम के परिजन जारी रखना चाहते हैं आंदोलन

सैम स्टेफर्ड

-दिलीप कुमार शर्मा

पिछले साल 12 दिसंबर को गुवाहाटी में कथित तौर पर पुलिस फ़ायरिंग में मारे गए 17 साल के सैम स्टेफर्ड की मां अब भी अपने बेटे के घर लौटने का इंतज़ार कर रही है. वह किसी भी बात का पूरा जवाब नहीं देती.

44 साल की मामोनी स्टेफर्ड अपने बेटे को खोने के सदमे से आज भी बाहर नहीं निकल पाई है. सैम की मौत के कुछ दिन बाद उन्हें मानसिक परेशानी के लिए एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा जहां लंबे समय तक इलाज करवाने के बाद भी वह सामान्य स्थिति में लौट नहीं पाई है.

मेहमानों के बैठने वाले कमरे में लगी बेटे की तस्वीर को निहारते हुए मामोनी रुंधे गले से केवल इतना कहती है,"सैम मुझसे कह कर गया था वह जरूर वापस आएगा."

एक साल पहले गुवाहाटी के लताशिल मैदान में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शन में भाग लेकर घर लौटते वक्त सैम को 'पुलिस फ़ायरिंग' में दो गोलियां लगी थी. दरअसल उस दिन नागरिकता क़ानून का विरोध करने राज्य के कई बड़े गायक,कलाकार और संगीतकार एकत्रित हुए थे. सैम खुद भी एक म्यूजिशियन था और शहर में छोटे-मोटे कार्यक्रम करता था.

सैम की बड़ी बहन मौसमी बेग़म घटना वाले दिन को याद करते हुए कहती हैं, "उस दिन मां ने सैम को जाने से रोका था लेकिन सैम ने कहा था कि असमिया जाति और संस्कृति के अस्तित्व की रक्षा के लिए सारे कलाकार विरोध प्रदर्शन में भाग ले रहें है, मैं घर पर बैठा नहीं रह सकता."

सैम स्टेफर्ड की तस्वीर
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सैम की मौत के बाद से मौसमी अपने पांच साल के बेटे के साथ मां के घर पर हैं.

मौसमी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा,"सैम की मौत के गम में मेरी मां अब तक एक रात भी चैन से सो नहीं सकी हैं. वह केवल सैम के घर लौटने का इंतज़ार करती रहती हैं. कई बार वह भाई (सैम) को ढूंढने के लिए बिना किसी को बताए घर से निकल जाती हैं. इसलिए मुझे अपने पति का घर छोड़कर यहां रहना पड़ रहा है. सैम की मौत के बाद से हमारा पूरा परिवार मातम में डूबा हुआ है."

सामने लकड़ी की सोफ़ा पर बेसुध बैठी अपनी मां की तरफ देखते हुए मौसमी उनकी मानसिक हालत को इशारों से समझाने की कोशिश करती है. इतना सब कुछ होने के बावजूद मौसमी और उनके पिता बीजू स्टेफर्ड चाहते हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ जारी आंदोलन रुकना नहीं चाहिए.

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सैम की बहन मौसमी

दरअसल असम में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ पिछले साल विरोध प्रदर्शन में सैम समेत पांच लोग मारे गए थे जिन्हें ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने जातीय शहीद घोषित किया था. आसू की ओर से जातीय शहीद की घोषणा ठीक वैसी ही थी जैसे 1979 से छह साल चले असम आंदोलन में मारे गए 855 लोगों को शहीद घोषित किया गया था. अर्थात यह 'शहादत' असमिया जाति के अस्तित्व की लड़ाई से जुड़ी हुई थी.

असम आंदोलन के बाद इतने व्यापक स्तर पर प्रदेश में कोई दूसरा आंदोलन नहीं हुआ. नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे लोगों की नाराज़गी को देखते हुए सरकार के कई मंत्री-विधायक महीनों तक अपने इलाकों में नहीं गए थे.

क़ानून के ख़िलाफ़ फिर से विरोध-प्रदर्शन शुरू

असम में सीएए विरोध-प्रदर्शन
इमेज स्रोत,DILIP SHARMA
अब एक बार फिर राज्य में एक साल बाद आसू समेत असम के 18 प्रमुख संगठनों ने विवादास्पद इस क़ानून को निरस्त करने की मांग करते हुए राज्य भर में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों को शुरू किया है.

जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही मे पश्चिम बंगाल के दौरे पर कहा था कि कोविड -19 की वजह से नागरिकता संशोधन क़ानून के नियमों को तैयार करने में देरी हो रही है. लेकिन जैसे ही देश में वैक्सीन का काम शुरू होगा उसके बाद सीएए के नियमों को लागू करने को लेकर निर्णय लिया जाएगा.

पिछले साल 11 दिसंबर को यह क़ानून संसद में पारित किया गया था और उसके बाद केंद्र सरकार ने कई मौक़ों पर साफ कह दिया है कि इस क़ानून को वापस नहीं लिया जाएगा.

लेकिन असम में फिर से नागरिकता क़ानून का विरोध शुरू हो गया है. कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) की छात्र इकाई छात्र मुक्ति संग्राम समिति 24 दिसंबर से 31 दिसंबर तक प्रदेश के प्रत्येक जिले में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध करने के लिए एंटी-सीएए सप्ताह मना रही है.

प्रदेश के कई हिस्सों में लोग इस क़ानून के ख़िलाफ़ एकत्रित हो रहे हैं और अलग-अलग तरीकों से विरोध कर रहें है. आसू के नेतृत्व वाले छात्रों की बिरादरी ने सरकार को नागरिकता संशोधन क़ानून को लागू नहीं करने की चेतावनी दी है.

शिवसागर जिला छात्र मुक्ति संग्राम समिति के संपादक मानस ज्योति दत्ता फिर से शुरू हुए एंटी-सीएए आंदोलन पर कहते है,"पिछले साल हुए आंदोलन में जिस कदर असमिया जाति के हज़ारों लोग अपनी जाति की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरे थे, वैसा ही आंदोलन हम फिर से खड़ा करना चाहते है. क्योंकि पिछले साल के आंदोलन के बावजूद बीजेपी को हाल के चुनावों में लोगों ने वोट देकर जिताया है. दरअसल बीजेपी अपनी कुछ परियोजनाओं का लोभ देकर गरीब पिछड़े लोगों को अपनी तरफ करने का प्रयास कर रही है. लेकिन हमने फिर से सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया ताकि असमिया जातियतावाद की धारा बरकरार रख सके. वरना असमिया जाति का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. हम इस आंदोलन को आगे लगातार जारी रखेंगे."

जातीय अस्मिता की लड़ाई

असम में सीएए विरोध-प्रदर्शन
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पिछले साल शिवसागर में सीएए के ख़िलाफ़ एक बड़ी जन सभा को संबोधित करने के बाद किसान नेता और आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था और वे तब से जेल में बंद है.

अपने नेता की रिहाई की मांग उठाते हुए 27 साल के मानस कहते है,"सरकार ने हमारे जन आंदोलन को कमजोर करने के लिए अखिल गोगोई समेत कई नेताओं को जेल में बंद कर रखा है लेकिन हम डरने वाले नहीं है. हम खुद मिट जाएंगे लेकिन अपनी जाति को मिटने नहीं देंगे."

असम प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष विजय कुमार गुप्ता फिर से शुरू हुए एंटी सीएए आंदोलन पर कहते है, "इस आंदोलन के नाम पर कुछ संगठन असमिया लोगों को भ्रमित करने का प्रयास कर रहें है. लेकिन प्रदेश की जनता पर इस आंदोलन का कोई प्रभाव नहीं है. सीएए लागू होने से यहां के लोगों को कोई नुकसान नहीं होगा. यह बात यहां के अधिकतर लोग समझ रहे हैं और यही कारण है कि वे बीजेपी को हर चुनाव में अपना समर्थन देकर आगे बढ़ा रहे हैं."

हाल ही में बोडोलैंड स्वायत्तशासी परिषद् और तिवा स्वायत्तशासी परिषद् के चुनाव में बीजेपी ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है.

सैम स्टेफर्ड की मौत को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए बीजेपी नेता कहते है,"हमारी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं और सरकार अपने नियम-नीतियों के तहत जो भी संभव हो सकेगा वो करेगी."

असम में अगले चार महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. पिछले साल व्यापक स्तर पर हुए एंटी सीएए आंदोलन के बाद राज्य में दो नए क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का गठन हुआ है. इन क्षेत्रीय दलों के नेता अगले चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी को चुनौती देने के लिए ग्रामीण इलाकों में लगातार जनसभाएं कर रहे हैं.

बीजेपी की राजनीति को चुनौती

DILIP SHARMA

बीजेपी नेता हिमंत बिस्वा सरमा

ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के समर्थन से बने असम जातीय परिषद (एजेपी) नामक नए क्षेत्रीय राजनीतिक दल के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने ऐलान किया है कि अगर 2021 में उनकी पार्टी की सरकार बनी तो उन सभी लोगों को प्रति माह 5,000 रुपये का स्टाइपेंड दिया जाएगा जिनके पास औपचारिक शिक्षा होने के बावजूद नौकरी नहीं हैं. इसके अलावा उन्होंने विशेष रूप से विकलांग और आर्थिक रूप से पिछड़ी श्रेणियों के कुशल श्रमिक और शिक्षित बेरोज़गार लोगों को दस हज़ार रुपये प्रतिमाह देने की भी घोषणा की है.

राज्य की मौजूदा राजनीति को समझने वाले लोगों का मानना है कि बीजेपी ओरुणोदय योजना के तहत ज़रूरतमंद परिवारों को जो प्रतिमाह 830 रुपये दे रही है उसको चुनौती देने के लिए ही एजेपी ने चुनाव से पहले ऐसा ऐलान किया है. बीजेपी की ओरुणोदय योजना एंटी सीएए विरोध में शामिल खासकर ग्रामीण लोगों को अपने पाले में लाने काफी प्रभावी साबित हो रही है.

ऐसे में सवाल उठता है कि ये नए क्षेत्रीय दल और राज्य में शुरू हुए एंटी सीएए आंदोलन से क्या बीजेपी पर कोई असर पड़ेगा?

शिवसागर जिले में पेशे से शिक्षक मुनीनद्र लाहोन कहते है,"बीजेपी अपने एजेंडे को यहां लागू कर रही है. उससे असमिया लोगों को कोई फायदा नहीं होगा. बात जहां तक फिर से शुरू हुए आंदोलन की है तो असमिया लोगों को अपने भविष्य के बारे में गंभीरता से सोचना होगा. बीजेपी एंटी सीएए आंदोलन को बेअसर करने के लिए हर तरह से प्रयास कर रही है लेकिन आंदोलन को बड़ा बनाने के लिए अच्छे लोगों के नेतृत्व की जरूरत है तभी सरकार पर दवाब बनाया जा सकता है."

बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा

असम में बांग्लादेश से होने वाली कथित घुसपैठ लंबे समय से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है. 15 अगस्त 1985 को भारत सरकार और असम मूवमेंट के नेताओं के बीच हुए असम समझौता के आधार पर राष्ट्रीय नागरिक पंजी अर्थात एनआरसी अपडेट की गई थी.

आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि सीएए क़ानून के लागू होने से सैकड़ों के तादाद में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को यहां की नागरिकता मिल जाएगी और इससे उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक और भाषाई पहचान खतरे में पड़ जाएगी.

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सैम के पिता बीजू स्टेफर्ड

ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पेट भर रहे सैम के पिता बीजू स्टेफर्ड भी कुछ ऐसा ही सोचते है और प्रदेश में फिर से शुरू हुए एंटी सीएए आंदोलन का समर्थन करते है.

वो कहते है,"मेरे इकलौते बेटे को पुलिस फ़ायरिंग में मार दिया गया. उसका क्या कसूर था? सैम की मौत को एक साल हो गया है लेकिन सरकार का कोई भी नेता-मंत्री हमारी ख़बर लेने आज तक नहीं आया. हमें कोई मुआवजा नहीं मिला है. उस समय पुलिस ने मामले की जांच करने का भरोसा दिया था लेकिन अब तक कुछ भी सामने नहीं आया. मुझे अपने बेटे की मौत का न्याय चाहिए."

फ़ायरिंग की उस घटना की जांच कर रहें डीएसपी सीके बोडो ने बीबीसी से कहा,"फिलहाल इस मामले में हम जांच कर रहें है. इतनी जल्दी पुलिस रिपोर्ट नहीं बनती. सैम स्टेफर्ड के परिवार ने जो केस दर्ज करवाया था उसकी जांच सीआईडी कर रही है. उस घटना को लेकर पुलिस की तरफ से जो मामला दर्ज किया गया था उसकी जांच मैं कर रहा हूं."

सैम की बहन मौसमी कहती है जब मेरा भाई ज़िंदा था उस समय हमारे घर पर क्रिसमस के इस महीने में उसके दोस्तों की भीड़ लगी रहती थी लेकिन इस बार कोई ख़बर लेने नहीं आया. (bbc.com)

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