राष्ट्रीय

उत्तराखंड: धर्म परिवर्तन रोकथाम के नए क़ानून के तहत मियाँ, बीवी और क़ाज़ी समेत चार पर मुक़दमा दर्ज
01-Jan-2021 9:55 AM
उत्तराखंड: धर्म परिवर्तन रोकथाम के नए क़ानून के तहत मियाँ, बीवी और क़ाज़ी समेत चार पर मुक़दमा दर्ज

धर्म परिवर्तन कर एक मुसलमान युवक से शादी करने वाली देहरादून की एक 20 वर्षीय महिला, शादी के तक़रीबन तीन महीने बाद उनके ख़िलाफ़ हुए मुक़दमे से सुर्ख़ियों में आने से क़ाफ़ी परेशान हैं.

वे कहती हैं कि उनकी निजता पूरी तरह छिन गई है. नाम का ज़िक्र ना करने का अनुरोध करते हुए वे कहती हैं, "शादी दो लोगों का एकदम निजी फ़ैसला है, ना सिर्फ़ उत्तराखंड में बल्कि पूरे देश में इसकी चर्चा हुई. हम दो वयस्क लोगों ने पूरी तरह अपनी इच्छा से शादी की है. बेवजह हमारी बदनामी हुई है. मैं एक स्टूडेंट हूँ. मेरी पढ़ाई पर भी असर पड़ा है और हर चीज़ पर असर पड़ रहा है. हम सब परेशान हैं.''

नए क़ानून के बाद पहला मुक़दमा

उत्तराखंड पुलिस ने धर्म परिवर्तन कर विवाह करने पर, 22 साल के एक मुसलमान युवक, उनकी पत्नी, उनके चाचा और उस क़ाज़ी के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया है, जिन्होंने उनकी शादी कराई थी. तक़रीबन दो साल पहले लाए गए, उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 के तहत पहली बार कोई मुक़दमा दायर किया गया है. हाईकोर्ट के आदेश पर ज़िलाधिकारी देहरादून ने पुलिस को यह जाँच सौंपी थी. पुलिस ने देहरादून के पटेल नगर थाने में मुक़दमा दायर किया है.

इस विवादास्पद क़ानून के मुताबिक़, किसी भी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करने से एक महीना पहले, संबंधित व्यक्ति और धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति को स्थानीय ज़िलाधिकारी को इसकी पूर्व सूचना देना अनिवार्य है.

'नहीं थी क़ानून की जानकारी'

महिला बताती हैं, ''हमें इस क़ानून के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. अधिकतर लोगों को यह जानकारी नहीं होगी क्योंकि ये पहला मामला है, जब इस पर कोई केस दर्ज हुआ है. हमें डर था कि हमारी इस अंतरधार्मिक शादी पर समाज की कैसी प्रतिक्रिया होगी. इसलिए शादी के तुरंत बाद जब हम हाईकोर्ट जा रहे थे तब हमारे वकील ने हमें इसके बारे में बताया. कोर्ट ने हमें पुलिस प्रोटेक्शन दिया भी.''

महिला यह भी कहती हैं कि उन पर धर्म परिवर्तन के लिए कोई दबाव नहीं डाला गया था. उन्होंने अपनी मर्ज़ी से धर्म बदला है और शादी की है.

ज़िलाधिकारी को जाँच के आदेश

अंतरधार्मिक विवाह के इस मामले के संज्ञान में आने पर नैनीताल हाईकोर्ट ने ज़िलाधिकारी देहरादून को इस विवाह में 'उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018', क़ानून के अनुपालन की स्थिति की जाँच करने के आदेश दिए थे.

देहरादून पुलिस के सर्कल ऑफ़िसर अनुज कुमार ने बताया, ''ज़िलाधिकारी कार्यालय से हमारे पास इस मामले की जाँच के आदेश थे. प्रारंभिक जाँच से पता चला है कि 'उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018' के कुछ प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है. एक्ज़ीक्यूटिव मजिस्ट्रेट या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को धर्म परिवर्तन से एक महीने पहले जो नोटिस दिया जाना था वह नहीं दिया गया है. इस मामले में केस रजिस्टर हो गया है और विस्तृत जाँच जारी है."

'नए क़ानून की संवैधानिकता को चुनौती'

इधर अभियुक्त पक्ष के वकील मो. मतलूब ने इस मामले के आधार पर उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का दावा किया है.

मतलूब ने कहा कि हालांकि उन्हें अभी एफ़आईआर की कॉपी नहीं मिली है लेकिन वे इस एफ़आईआर के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील करेंगे.

उन्होंने कहा, ''ना सिर्फ़ इस एफ़आईआर बल्कि इस क़ानून के ख़िलाफ़ भी हम नैनीताल हाईकोर्ट में अपील करेंगे और इसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती देंगे. यह का़नून संविधान की ओर से दिए गए कई अधिकारों की अवहेलना करता है, जिसमें अनुच्छेद 25, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार, अपनी मर्ज़ी से शादी करने के अधिकार शामिल हैं.''

इस मामले के सामने आने के बाद से इस क़ानून पर फिर से बहस तेज़ हो गई है. उत्तराखंड में यह क़ानून और मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहन देने के लिए उत्तराखंड सरकार, 50 हज़ार रूपये की प्रोत्साहन राशि देती है.

'उत्तर प्रदेश अंतरधार्मिक/अंतरजातीय विवाह प्रोत्साहन नियमावली, 1976', में 2014 में संशोधन कर, उत्तराखंड ने 10,000 रूपये की प्रोत्साहन राशि को 50 हज़ार रूपये कर दिया था. (bbc)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news