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कोरोना वैक्सीन: कोवैक्सीन को मंज़ूरी मिलने पर हंगामा क्यों हो रहा है?
05-Jan-2021 9:02 AM
कोरोना वैक्सीन: कोवैक्सीन को मंज़ूरी मिलने पर हंगामा क्यों हो रहा है?

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने बीते रविवार कोरोना वायरस से बचाव के लिए तैयार की गई कोवैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है.

सरकार ने इसके साथ ही कोविशील्ड नाम की एक और वैक्सीन को भी मंज़ूरी दी है. लेकिन दोनों वैक्सीन में एक अंतर है जिसे लेकर स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञ अपनी चिंता जता रहे हैं. भारत बायोटेक की बनाई कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल अभी जारी है और इफिकेसी डेटा अब तक उपलब्ध नहीं है.

प्रसिद्ध संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जयप्रकाश मुलयिल ने सरकार के इस क़दम को काफ़ी जल्दबाज़ी भरा क़रार दिया है. इसके साथ ही विपक्षी दलों ने भी सरकार पर हमला बोल दिया है. सपा नेता अखिलेश यादव से लेकर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को आड़े हाथों लिया है.

वहीं, हर्षवर्धन ने पलटवार करते हुए ट्वीट किया है, "इस तरह के गंभीर मुद्दे का राजनीतिकरण करना किसी के लिए भी शर्मनाक है. शशि थरूर, अखिलेश यादव और जयराम रमेश कोविड-19 वैक्सीन को अनुमति देने के लिए विज्ञान समर्थित प्रोटोकॉल का पालन किया गया है जिसको बदनाम न करें. जागिए और महसूस करिए कि आप सिर्फ़ अपने आप को बदनाम कर रहे हैं."

डॉक्टर हर्ष वर्धन ने भी अपने ट्विटर पर लिखा है कि कोवैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल मोड पर ही इस्तेमाल किया जाएगा.

बैकअप वैक्सीन

एम्स दिल्ली के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी कोवैक्सीन को एक बैकअप वैक्सीन के रूप में देखते हैं.

इसके साथ ही दावा ये किया जा रहा है कि कोवैक्सीन कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन पर भी प्रभावकारी सिद्ध होगी.

लेकिन सवाल ये है कि वैक्सीन की इफिकेसी को लेकर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?

वैक्सीन जारी होने पर हंगामा क्यों?

भारत में दवाओं के इस्तेमाल पर नज़र रखने वाली कई ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के संगठन 'ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क' ने सरकार के इस क़दम को काफ़ी चौंकाने वाला बताया है.

इस संगठन की सह-संयोजक मालिनी आइसोला बताती हैं, "तीसरे चरण के ट्रायल से जुड़े आँकड़ों आने से पहले कोवैक्सीन को मंज़ूरी दिया जाना काफ़ी चौंकाने वाला क़दम है. ये केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की ड्राफ़्ट गाइड लाइंस का भी उल्लंघन है जो कि कोविड–19 वैक्सीन बनाने के लिए 21 सितंबर, 2020 को प्रकाशित की गई थी."

"इस ड्राफ़्ट गाइडलाइंस में तय किया गया था कि किसी भी कोविड 19 वैक्सीन की प्रभावकारिता (इफिकेसी) कम से कम पचास फ़ीसद तक होनी चाहिए. लेकिन इस मामले में इफिकेसी यानी प्रभावकारिता से जुड़े कोई आँकड़े ही उपलब्ध नहीं हैं."

"इसके साथ ही ये मंज़ूरी एक ग़लत मिसाल खड़ी करती है. क्योंकि अभी कई दूसरी कंपनियां भी कोविड 19 वैक्सीन बना रही हैं. और कोवैक्सीन को मिली मंज़ूरी के आधार पर वे भी तीसरे चरण के इफिकेसी डेटा साझा किए बिना आपातकालीन स्तर पर मंज़ूरी की माँग करेंगी."

एक सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि जब ये वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल में है तो इसे मंज़ूरी क्यों दी गई. और मंज़ूरी दिए जाने के बाद जिस तरह इसे क्लिनिकल मोड में दिया जाना है, वो सब कुछ कैसे होगा? क्योंकि सरकारी अधिकारियों की ओर से किसी भी आधिकारिक दस्तावेज़ में क्लिनिकल ट्रायल को ठीक ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है.

मंज़ूरी मिली है तो क्लिनिकल ट्रायल की बात क्यों?

केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने ट्वीट करके बताया है कि कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी (ईयूए) शर्तिया आधार पर दी गई है. उन्होंने ट्वीट में लिखा, "जो अफ़वाहें फैला रहे हैं वे जान लें कि क्लिनिकल ट्रायल मोड में कोवैक्सीन के लिए ईयूए सशर्त दिया गया है. कोवैक्सीन को मिली ईयूए कोविशील्ड से बिलकुल अलग है क्योंकि यह क्लिनिकल ट्रायल मोड में इस्तेमाल होगी. कोवैक्सीन लेने वाले सभी लोगों को ट्रैक किया जाएगा उनकी मॉनिटरिंग होगी अगर वे ट्रायल में हैं."

क्लिनिकल ट्रायल मोड के मुद्दे पर मालिनी मानती हैं कि अभी कई सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब मिलना बाक़ी है.

वे कहती हैं, "रेगुलेटर ने इस मामले में ये कहते हुए मंज़ूरी दी है कि ये वैक्सीन क्लिनिकल मोड में इस्तेमाल की जाएगी. मंज़ूरी देते हुए कहा गया है- 'क्लिनिकल ट्रायल मोड में जनहित को ध्यान में रखते हुए आपात स्थिति में प्रतिबंधित इस्तेमाल की मंज़ूरी दी गई है', लेकिन दुर्भाग्य से कोई स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं है कि क्लिनिकल ट्रायल मोड क्या है. और हमारे पास कई सवाल भी हैं. उदाहरण के लिए – क्या क्लिनिकल ट्रायल मोड में शामिल होने वाले वॉलिंटियर्स पर जो क़ानून लागू होता है, वो इस मामले में भी लागू होगा, और क्या क़ानूनी रूप से वैक्सीन की वजह से उन्हें कोई नुक़सान होता है तो वे उसकी भरपाई के लिए मुआवज़े की माँग कर सकते हैं."

इसके साथ ही लोगों से उनकी सहमति लेने के लिए क्या प्रक्रिया होगी. वैक्सीन लेने वाले लोगों को किस तरह की सूचनाएं दी जाएंगी. क्योंकि हमें लगता है कि इस मामले में लोगों को ये स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि इस वैक्सीन का इफिकेसी डेटा उपलब्ध नहीं है, और ये अभी भी तीसरे चरण के ट्रायल में है."

"कल अधिकारियों ने क्लिनिकल ट्रायल मोड को समझाने के लिए बताया था कि वैक्सीन लेने वाले लोगों को ख़ास ढंग से ट्रैक किया जाएगा. उन पर नज़र रखी जाएगी. इसके साथ ही वैक्सीन सिर्फ़ उन लोगों को ही दी जाएगी जो कि 'इनक्लूज़न और एक्सक्लूज़न क्राइटेरिया' में फ़िट होंगे. लेकिन हमें अब तक किसी भी आधिकारिक दस्तावेज़ में ये नहीं बताया गया है कि क्लिनिकल ट्रायल मोड का मतलब क्या है."

"क्योंकि अगर आप भारत बायोटेक को जारी किए गए अनुमति पत्र को देखें तो उसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि ये वैक्सीन 12 साल या उससे ज़्यादा उम्र के लोगों को दी जा सकती है. इस तरह की व्यापक अनुमति सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को भी नहीं दी गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कोवैक्सिन को ये मंज़ूरी क्यों दी गई है."

इसके साथ ही सवाल ये उठता है कि सरकार वैक्सीन को लेकर सूचनाओं को सरल और स्पष्ट ढंग से क्यों नहीं दे रही है?

सरकार की ओर से सूचना देने में कमी क्यों?

क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पीआईबी की ओर से जारी अपनी प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट नहीं किया है कि कोवैक्सीन किन लोगों को और किस तरह दी जाएगी.

पीआईबी की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ कहती है, "समीक्षा के बाद, विशेषज्ञ समिति की सिफ़ारिशों को स्वीकार करने का केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा निर्णय लिया गया है और उसके अनुसार, हम आपात स्थिति में सीमित इस्तेमाल के लिए मेसर्स सीरम और मेसर्स भारत बायोटेक के टीकों को मंज़ूरी देने जा रहे है."

सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में ये नहीं बताया गया है कि इन दोनों वैक्सीन को दिए जाने में क्या अंतर रखा जाएगा.

बताया गया है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल 25,800 और अब तक 22,500 को देश भर में टीका लगाया गया है. और कहा गया है कि अब तक उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक़, टीका सुरक्षित पाया गया है.

स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि अगर वैक्सीन के नतीजे बेहतर रहे हैं तो सरकार डेटा ज़ाहिर करने में झिझक क्यों रही है. और जब एक वैक्सीन मंज़ूर किए जाने की स्थिति में आ चुकी है तो उसी समय दूसरी वैक्सीन को मंज़ूरी दिए जाने की जल्दबाज़ी क्यों है?

क्यों कोवैक्सीन के तीसरे चरण के आँकड़ों का इंतज़ार नहीं किया जा सकता?

आख़िर किस बात की जल्दबाज़ी है?

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से वैक्सीन जारी करने की वजह बताते हुए बार – बार आपातकालीन, बैकअप और इमरजेंसी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन सरकार का ये तर्क वेल्लोर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे प्रसिद्ध संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जयप्रकाश मुलयिल के गले नहीं उतर रहा है.

वे कहते हैं, "मुझे लगता है कि इस वैक्सीन को मंज़ूरी दिया जाना जल्दबाज़ी है. क्योंकि मुझे इस समय किसी भी तरह की आपातकालीन स्थिति नज़र नहीं आ रही है. कोरोना वायरस के नए मामलों की संख्या घट रही है. और मौतों की संख्या में भी कमी आ रही है. भारत में वैसी स्थिति नहीं है, जैसी यूरोप और अमेरिका में है. ऐसे में चाहें ये वैक्सीन भारत में ही क्यों न बनी हो, इसे इस समय से पहले जारी करना एक जल्दबाज़ी भरा क़दम है."

"भारत के लोगों ने काफ़ी हिम्मत से इस महामारी का सामना किया है. उन्होंने बहुत कष्ट सहे हैं. लेकिन उन्होंने इसे झेल लिया है. और अब ज़्यादातर जगहों पर, जहां तक मैं जानता हूं, कोविड 19 को लेकर सहज हो गए हैं. इससे मरने वाले ज़्यादातर लोगों की उम्र 60 के ऊपर थी. अब वेल्लोर ज़िले की आबादी 17 लाख है और कल सिर्फ़ 14 नए मामले सामने आए हैं. और किसी की मौत नहीं हुई है. लोगों के मन में अब ये नज़रिया है कि स्थिति में सुधार हो रहा है. और अब पहले जैसी स्थिति नहीं है. जैसी मई और जून के महीने में थी."

"आपके पास पहले से दिशा निर्देश हैं. लेकिन अब आप उनकी अवहेलना करते हुए इमरजेंसी रिलीज़ की तरफ़ बढ़ रहे हैं. ऐसा करते हुए आपको सावधान होने की ज़रूरत है. क्योंकि जब आप ये सब कुछ ठीक ढंग से करते हैं तो नियामक संस्था में लोगों का विश्वास काफ़ी ऊंचा रहता है. जब आप दिशा – निर्देशों का उल्लंघन करते हैं तो लोगों का नियामक संस्थाओं में भरोसा कम हो जाता है."

नए कोरोना स्ट्रेन पर कितनी असरदार?

कोवैक्सीन के कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के प्रति भी प्रभावकारी होने का दावा किया जा रहा है.

लेकिन इस वैक्सीन को बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक के सीइओ ने सोमवार शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि वह एक हफ़्ते के अंदर इस दावों को सिद्ध करने के लिए डेटा प्रस्तुत करेंगे.

वैक्सीन लॉन्च में जल्दबाज़ी ख़तरनाक क्यों?

मुलियल बताते हैं, "जब लोग देखते हैं कि आप अपनी कार्य योजना को बदल रहे हैं. और वैक्सीन को समय से पहले लॉन्च कर रहे हैं. और वैक्सीन से पैदा होने वाले रक्षात्मक प्रभाव से जुड़े मज़बूत आँकड़े नहीं देते हैं तो लोग चिंतित होते हैं. ऐसे में लोगों में वैक्सीन को लेकर ज़्यादा चिंता पैदा होती है कि सरकार समय से पहले वैक्सीन लॉन्च क्यों करना चाहती है?"

दुनिया भर में वैक्सीन को लेकर अफ़वाहों का दौर गरम है. और वैक्सीन के इतिहास पर नज़र डालें तो जल्दबाज़ी और अफ़वाहें टीका करण अभियानों की सबसे बड़ी चुनौती रही हैं. टीका करण अभियान चलाते हुए टीके को जारी करने और दिए जाने की प्रक्रिया में एक विशेष तरह की सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है.

पाकिस्तान से लेकर अफ़ग़ानिस्तान में पोलियो के टीका करण को एक लंबे समय तक अंधविश्वास का सामना करना पड़ा है. क्योंकि अगर लोगों में एक बार वैक्सीन को लेकर एक शक पैदा हो जाता है तो उसे दूर करना अपने आप में एक चुनौती है.

और सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से लोगों का वैक्सीन को लेकर सशंकित होना बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है.

वो भी तब जब वैक्सीन कोरोना जैसी किसी महामारी या संक्रामक रोग की रोकथाम के लिए दी जा रही हो. लेकिन अगर वैक्सीन अपने उद्देश्य को पूरा करने में असमर्थ रहती है तो ये ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है.

भारत बायोटेक का तर्क कितना सही?

भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक कृष्णा एल्ला ने सोमवार शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी कंपनी के ऊपर उठ रहे सवालों के जवाब देने की कोशिश की है.

उन्होंने कहा है, "कई लोग कहते हैं कि मैं अपने डेटा को लेकर पारदर्शी नहीं हूं. मुझे लगता है कि लोगों में थोड़ा धैर्य होना चाहिए ताकि वे इंटरनेट पर पढ़ सकें कि हमने कितने लेख प्रकाशित किए हैं. अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में हमारे 70 से ज़्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं."

"कई लोग गपशप कर रहे हैं. ये सिर्फ़ भारतीय कंपनियों के लिए एक झटका है. ये हमारे लिए ठीक नहीं है. हमारे साथ ये सलूक नहीं होना चाहिए. मर्क कंपनी की इबोला वैक्सीन ने कभी इंसानों पर क्लिनिकल ट्रायल पूरा नहीं किया लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फिर भी लाइबेरिया और गुआना के लिए आपातकालीन मंज़ूरी दे दी."

"जब अमरीकी सरकार कहती है कि अगर कंपनी का अच्छा इम्यूनाइज़ेशन डेटा है तो उसे इमरजेंसी मंज़ूरी दी जा सकती है. मर्क कंपनी की इबोला वैक्सीन को मंज़ूरी फेज़ 3 ट्रायल पूरा होने से पहले दी गई. जॉन्सन एंड जॉन्सन ने सिर्फ़ 87 लोगों पर टेस्ट किया, और उसे मंज़ूरी मिल गई."

कृष्णा एल्ला ने अपनी कंपनी और अपने क्षेत्र के पक्ष में तर्क दिए हैं. लेकिन सवाल ये है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर फ़ैसले जल्दबाज़ी के फ़ैसलों के इतिहास को देखकर लिए जाएंगे या वैज्ञानिक कसौटी पर परखने के बाद लिए जाएंगे. (bbc)

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