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मुरादनगर: लोग गए थे जयराम की अंत्येष्टि में पर 25 और लोगों की अंत्येष्टि करनी पड़ी
05-Jan-2021 2:08 PM
मुरादनगर: लोग गए थे जयराम की अंत्येष्टि में पर 25 और लोगों की अंत्येष्टि करनी पड़ी

SAMIRATMAJ MISHRA

--समीरात्मज मिश्र

उत्तर प्रदेश के मुरादनगर की संगम विहार कॉलोनी उस श्मशान घाट से महज़ पांच सौ मीटर दूर है जहां हुए हादसे ने इस पूरी कॉलोनी को ही श्मशान घाट सा शोकाकुल बना दिया है.

इस कॉलोनी की जिस गली के आख़िर में 65 वर्षीय जयराम का घर है, उस गली में उनके अलावा चार अन्य घरों के भी चिराग उजड़ गए हैं और मातम पूरी गली में ही नहीं बल्कि पूरे इलाक़े में छाया हुआ है.

हादसे के शिकार लोग जयराम के ही अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए श्मशान घाट गए हुए थे, जिनका रविवार दिन में निधन हो गया था. मोहल्ले के लोगों और रिश्तेदारों समेत क़रीब सौ लोग अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे.

जयराम की पत्नी मुन्नी देवी अपनी एक बहू और दो बेटियों के साथ घर में गुमसुम बैठी थीं. वो कहने लगीं, "हम अपना दुख भूल गए लेकिन हम सब पर जो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है, वो तो कभी नहीं भूला जाएगा. हमारे परिवार में ही चार लोगों की मौत हो गई. मोहल्ले के चार लोग चले गए. दामाद अस्पताल में है. घर के और कई लोग अस्पताल में हैं. किसी का सिर फट गया है, किसी का हाथ टूट गया है. कई लोगों का तो अभी भी पता नहीं चल रहा है."

जयराम का 15 वर्षीय पोता आयुष उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी था, जिसने 25 लोगों की जान ले ली और कई घायल अब भी ज़िंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे हैं.

आयुष ने घटना के बारे में कुछ इस तरह बताया, "पंडित जी ने परिवार वालों को मंत्र पढ़ने के लिए अपने पास बुलाया. मेरे पापा, चाचा और हम लोग थोड़ी दूरी पर उनके पास चले गए. हल्की-हल्की बारिश होने लगी तो ज़्यादातर लोग छत के नीचे आ गए. तभी एकाएक धड़ाम से वो छत गिर गई. हम लोगों को भी चोट लगी लेकिन बच गए. मेरे चचेरे भाई के पास फ़ोन था.''

''घर पर फ़ोन किया. 112 नंबर पर फ़ोन किया. क़रीब पंद्रह बीस मिनट के बाद पुलिस आई. लेकिन उससे पहले ही मोहल्ले के लोग यहां आ गए और वहां फँसे लोगों को निकालने की कोशिश करने लगे."

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दो महीने पहले शुरू हुआ था निर्माण कार्य
श्मशान घाट में जिस गलियारे की छत ढही है, उसका निर्माण कार्य दो महीने पहले शुरू हुआ था. इस गलियारे को बनाने में क़रीब 55 लाख रुपए की लागत आई थी और अभी दो हफ़्ते पहले ही इसे आम लोगों के लिए खोला गया था.

परिसर के प्रवेश द्वार से लेकर पीछे कुछ दूर तक इस गलियारे का निर्माण इसीलिए किया गया था ताकि लोगों को छाया मिल सके. लेकिन यह छत ख़ुद कुछ घंटों की लगातार बारिश भी बर्दाश्त नहीं कर सकी और ढह गई.

मलबे से लोगों को निकालने के बाद मलबे में फँसी चप्पलें, जूते, छाते, शॉल और कपड़े घटना की भयावहता को बयां कर रहे हैं. दूसरी ओर, मलबे में दिख रही ईंटें, सीमेंट और बालू निर्माण कार्य में बरती गई लापरवाही और भ्रष्टाचार की कहानी सुना रहे हैं.

सोमवार को कुछ घंटों की धूप के बाद मलबे का कुछ हिस्सा सूख गया था. वहां मौजूद लोग हाथों में सीमेंट और बालू के उस मिश्रण को लेकर छत की गुणवत्ता परख रहे थे जिसका इस्तेमाल ईंटों की चिनाई और छत की ढलाई में किया गया था.

श्मशान घाट के बाहर यामीन मिले जो घटना के समय उधर से गुज़र रहे थे.

उन्होंने बताया, "ऐसा लगा कि आस-पास कहीं बम फट गया है. लेकिन उसके बाद चीख-पुकार सुनाई पड़ी तो देखा यह हादसा हो गया है. हम लोग अंदर पहुंचे तो देखा कि छत ढह गई है और लोग उसके नीचे दबे हैं. अफ़रा-तफ़री मची थी. हम लोगों ने वहां फँसे लोगों को निकालना शुरू किया. कई लोगों को निकाला भी लेकिन जब पुलिस आ गई तो उन्होंने हम लोगों को वहां से भगा दिया."

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अस्पताल में भर्ती होने में हुई देरी

रविवार को हादसे की ख़बर पाकर पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी तत्काल मौक़े पर पहुंचे और राहत कार्य शुरू कराया गया. बारिश होने के कारण बचाव अभियान में कुछ रुकावटें भी आईं. देर रात तक बचाव कार्य चलता रहा. घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया.

हालांकि, हादसे में पीड़ित परिवारों का यह भी कहना था कि कुछ घायलों को अस्पताल वालों ने भर्ती नहीं किया और इधर-उधर कई अस्पतालों के चक्कर लगाने में देर होने के चलते कुछ लोगों की जान चली गई.

लेकिन, ग़ाज़ियाबाद के पुलिस अधीक्षक नगर अभिषेक वर्मा ने बताया कि घायलों को तुरंत चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई गई और जो लोग गंभीर रूप से घायल थे और जिन्हें तत्काल ऑपरेशन की ज़रूरत थी, उन्हें वे सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं. उनके मुताबिक, "अभी भी घायलों का बेहतर उपचार सुनिश्चित कराया जा रहा है और इसके लिए ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी निर्देश दिए हैं."

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मुआवजे की घोषणा

 

 

घटना के तत्काल बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ग़ाज़ियाबाद के ज़िलाधिकारी और एसएसपी को तुरंत पहुंचने के निर्देश दिए और मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की.

लेकिन, इस आर्थिक मदद की घोषणा ने दुखी पीड़ित परिजनों को क्रोधित कर दिया. एक मृतक की रिश्तेदार ज्योति बड़े ग़ुस्से में बोलीं, "दो लाख रुपये की भीख देने की बात कहकर सरकार ने हमारे जले पर नमक छिड़क दिया है."

सोमवार को मृतकों के परिजन दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई और मुआवज़ा बढ़ाने की मांग को लेकर शव के साथ दिन भर सड़क पर बैठे रहे. देर शाम डीएम अजय शंकर पांडेय और अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में मृतकों के परिजनों को दस लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की गई.

ग़ाज़ियाबाद के एडीएम सिटी शैलेंद्र सिंह ने बताया, "सभी घायलों का नि:शुल्क इलाज होगा, वो चाहे जिस अस्पताल में भर्ती हैं. मृतकों के परिजनों को दस लाख रुपये का मुआवजा और परिवार के सदस्यों को योग्यता के आधार पर नौकरी दी जाएगी. जो बच्चे बेसहारा हो गए हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई का पूरा ख़र्च ज़िला प्रशासन उठाएगा, जब तक वो बालिग नहीं हो जाते हैं."

लेकिन, रोते-बिलखते लौटते परिजनों का कहना था कि बारिश के कारण प्रशासन ने शवों को ज़बरन हटवा दिया और एंबुलेंस में लादकर अंतिम संस्कार कराने पर मजबूर किया गया. हादसे में अपने पति नितिन को खोने वाली नीलम को दो महिलाएं पकड़े हुए थीं. नीलम रोते हुए बोलीं, "कुछ नहीं हुआ. हमारा तो सब कुछ लुट गया. ज़बर्दस्ती बॉडी उठा ले गए. क्या करते. हमें इन पर कोई भरोसा नहीं है."

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सरकारी लापरवाही को लेकर गुस्सा
बारिश से कुछ देर पहले भी प्रशासन ने अचानक एंबुलेंस बुलवाकर शवों को वहां से हटाने की कोशिश की लेकिन परिजनों के प्रबल विरोध के चलते ऐसा न कर सके. सोमवार को मृतकों के परिजनों ने दिल्ली-मेरठ राजमार्ग पर शवों को रखकर दिन भर प्रदर्शन किया और देर शाम प्रशासन की देख-रेख में शवों का अंतिम संस्कार कराया गया.

लोगों में इस बात को लेकर भी बेहद ग़ुस्सा है कि सरकारी लापरवाही ने इतने लोगों की जान ले ली.

लापरवाही के आरोप में पुलिस ने मुरादनगर नगरपालिका की अधिशाषी अधिकारी निहारिका सिंह, जूनियर इंजीनियर सीपी सिंह और सुपरवाइजर आशीष के ख़िलाफ़ केस दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार कर लिया जबकि ठेकेदार अजय त्यागी अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं.

(bbc.com)

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