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बांदीपुर टाइगर रिजर्व के बंदरों ने सीख लिया है हाथ फैलाकर भीख मांगना
28-Jan-2021 9:59 AM
बांदीपुर टाइगर रिजर्व के बंदरों ने सीख लिया है हाथ फैलाकर भीख मांगना

तस्वीर- श्रीजाता गुप्ता

-Sandhya Sekar 

बंदर की एक प्रजाति बोनट मकाक ने भीख मांगने के तरीके सीख लिए हैं। इन्हें बांदीपुर टाइगर रिजर्व में आए पर्यटकों के सामने हाथ फैलाकर खाने की चीजें मांगते देखा जा सकता है।
छोटे बंदर खाने-पीने की चीजें मांगते हैं, जबकि बड़े बंदर पर्यटकों को डराकर चीजें झपट लेते हैं। मांगने के लिए ये बंदर बड़ी मासूमियत से लोगों की नजरों में देखते हैं और हाथ फैलाते हैं।
बोनट मकाक पर्यटकों पर दूर से निगरानी रखते हैं और जैसे ही खाने के साथ कोई पर्यटक दिखता है, ये अपने काम पर लग जाते हैं।
विज्ञान की भाषा में जानवरों के इस व्यव्हार को इंटेशनल कम्यूनिकेशन कहा जाता है। एक शोध में पहली बार इस व्यवहार के बारे में जानकारी इकट्ठी की गई है। जंगली जानवरों और इंसानों के बीच इस संवाद को काफी दुर्लभ श्रेणी का माना जा रहा है।
कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व में पर्यटकों और यहां पाए जाने वाले बोनट मकाक यानी बंदर की एक विशेष प्रजाति के बीच नोंकझोंक रोज की बात हो गई है।

हालांकि, पर्यटन स्थल पर बंदर और इंसानों के बीच खाने को लेकर खींचतान कोई नई बात नहीं है, लेकिन बांदीपुर टाइगर रिजर्व में इन दिनों कुछ अनोखा घट रहा है। बड़े बंदर मौका पाते ही सामान छीन लेते हैं, लेकिन यहां मौजूद कुछ बंदरों ने हाथ फैलाकर खाने की चीजें मांगना सीख लिया है। वे अपने हाव-भाव से खुद को मासूम दिखाकर उन पर्यटकों के सामने हाथ फैलाते हैं जिनके हाथ में खाने-पीने की कोई चीज हो।

बोनट मकाक बंदरों की एक प्रजाति है जो कि दक्षिण भारत के जंगलों में बहुतायत में पाई जाती है। इसे बंदरों के, विश्व-स्तर पर, सबसे पुरानी प्रजातियों में से एक माना जाता है।

पर्यटकों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए बंदर उनकी आंखों में देखते हैं और नजर मिलते ही हाथ फैला देते हैं। अगर कोई वहां से निकलना चाहे तो बंदर अपने हाव-भाव से सुनिश्चित करते हैं कि वे पर्यटकों की नजर के सामने बार-बार आएं।

“जंगल में रहने वाले बंदरों के लिए हाथ फैलाकर मांगना बिल्कुल एक नई बात लगती है। लोगों ने पालतू बंदर को अपने मालिको के साथ ऐसा व्यवहार करते तो देखा है, लेकिन वे बंदर बंधे होते हैँ। खुले जंगल में विचरने वाले बंदरों में यह एक नई बात है,” अनिन्द्या सिन्हा कहती हैं जो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं। जानवरों के इस स्वभाव को लेकर उन्होंने दूसरे विशेषज्ञों के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है। 

चार महीने चले इस अध्ययन में सिन्हा के साथ अद्वेत देशपांडे और श्रीजाता गुप्ता ने बोनट मकाक बंदरों के दो समूहों को काफी नजदीक से देखा। यह बंदर टाइगर रिजर्व के रिसेप्शन के आसपास रहते हैं। रिजर्व में यहां रहने वाले बंदर अपेक्षाकृत इंसानों को अधिक करीब से देखते हैं। देशपांडे ने अपने अध्ययन के दौरान कम से कम 86 ऐसे मौके देखे जब कोई बंदर किसी पर्यटक से संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रहा था।

बोनट मकाक बंदर के अलग-अलग रूप
बंदरों का स्वभाव देखने के लिए सिन्हा ने अपनी टीम से साथ बंदरों के 30 टोलियों पर नजर रखी। उन्होंने तकरीबन 1800 लोगों के साथ बंदरों का संवाद गौर से देखा। इस अध्ययन को मैसूर ऊंटी हाइवे पर पिछले 18 वर्षों से किया जा रहा है।

अध्ययनकर्ताओं ने बंदरों के अलग-अलग रूपों को देखा जिसमें खाना मांगने के स्वभाव में चार संकेत शामिल हैं। सबसे पहले ये खाने के लिए हाथ फैलाते हैं। इस तरह की प्रवृत्ति बंदरों में पहली बार देखी जा रही है।

दूसरे व्यवहार में देखा गया कि ये बंदर इंसान को देखकर कू-कू की आवाज निकालते हैं। इस संकेत का साफ अर्थ नहीं निकाला जा सका है, लेकिन संभवतः ये आवाज इंसानों का ध्यान खींचने के लिए लगाया जाता होगा। अध्ययनकर्ता यह भी अनुमान लगाते हैं कि बंदर अपना उत्साह बनाए रखने के लिए भी ऐसी आवाजें निकालते होंगे।

तीसरा प्रमुख व्यवहार बंदरों का इंसानों की नजर के सामने बने रहना है। हाथ फैलाकर मांगते समय बंदरों की कोशिश रहती है कि इंसान जिधर देखे वह उसी तरफ खड़े हो जाते हैं।

इसके अलावा, वे ऐसा इंसानों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए करते हैं। जबतक खाना न मिल जाए वे इंसानों के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं।

मांगने की प्रवृत्ति सिर्फ छोटे बंदरों में पाई गई। इसके पीछे की वजहों के बारे में अध्ययनकर्ता मानते हैं कि इंसानों से छोटे बंदरों को बड़ों की अपेक्षा अधिक डर लगता है। खाने के लालच में वे छीनने के बजाए मांगने वाला रास्ता अपनाने लगे हैं।

हालांकि, अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि कम उम्र के हर बंदर में मांगने की प्रवृत्ति नहीं है।

बंदरों के व्यवहार को अधिक गहराई से समझने के लिए अध्ययनकर्ताओं ने वॉलेंटियर की मदद से कई प्रयोग किए। कई बार वॉलेंटियर खाने के साथ बंदरों के पास से गुजरे और उनके व्यवहार का अध्ययन किया। हालांकि, बंदरों को उन्होंने खाना नहीं दिया। वन्य जीवों को इंसानों का खाना देने से उनमें कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिससे उनका जीवनकाल भी छोटा हो सकता है। 

इस प्रयोग में देखा गया कि बंदर से नजर मिलाने के बाद वे हाथ आगे बढ़ाकर खाना मांगने लगते हैं।

“कू-कू की आवाज बंदर हर उस इंसान को देखकर लगाते हैं जिसके हाथ में खाने का कोई सामान हो,” सिन्हा ने बताया।

फ्रांस की लॉज़ेन विश्वविद्यालय के शेर्लोट कैंनेलौप बताते हैं कि इस तरह संवाद करने की क्षमता हासिल करने की वजह से जानवर इंसान तक संकेत के जरिए अपनी बात पहुंचा पाते हैं जिसकी वजह से उन्हें खाने के लिए काफी कुछ मिल जाता है। “सीखने की प्रक्रिया में जानवरों का इंसानों के साथ पुराना अनुभव काम आता है। जैसे कभी किसी इंसान ने किसी भाव को देखकर उन्हें खाने को दे दिया होगा, तब से वे इसे दोहराने लगे और इस क्रम में सीखते गए,” वह कहते हैं।

आखिर बंदरो ने कैसे सीखे ये सब इशारे

अफ्रिका के लंगूर कू-कू की आवाज निकालते हुए सुने गए हैं लेकिन बोनट मकाक इंसानों से सामने यह आवाज निकालता है। ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।

“जब लंगूर अपनी टोली से दूर हो जाता है तो ऐसी आवाज निकालकर सहायता मांगता है। बोनट मकाक पहली बार खाना मांगने के लिए इस आवाज का प्रयोग कर रहे हैं,” सिन्हा कहती हैं।

हाथ फैलाने की प्रवृत्ति को लेकर सिन्हा का मानना है कि ऐसा बंदरों ने आपस में कभी नहीं किया। खाना बांटने के लिए भी नहीं। हालांकि, शोधकर्ताओं को लगता है कि यह तरीका उन्होंने इंसानों को देखकर सीखा

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज (एनआईएएस) की जीवविज्ञानी सिन्धु राधाकृष्णा मानती हैं कि बंदर आमतौर पर इंसानों को डराते हैं ताकि वे खाना फेंक दें। इसी तरह नन्हे बंदरों ने खाना पाने का यह तरीका खोज निकाला होगा।

बांदीपुर में ही क्यों ऐसा करते हैं बोनट मकाक
सिन्हा का मानना है कि सिर्फ बांदीपुर ही नहीं बल्कि दूसरे स्थानों पर भी बोनट मकाक में ऐसी प्रवृत्तियां पाई जाती होंगी।

अध्ययन के प्रकाशित होने के बाद अध्ययनकर्ताओं को दूसरे स्थानों पर भी बंदरों के ऐसे व्यवहार की सूचनाएं मिलीं।

गुवाहाटी स्थित कॉटन कॉलेज के प्रोफेसर राधाकृष्णा और वारायण शर्मा बताते हैं, “हमें अनुमान है कि बंदरों में यह प्रवृत्ति किसी न किसी रूप में देश के कई और इलाकों में होंगी।”

सिन्हा ने बोनट मकाक के इस व्यवहार को इंटेशनल कम्यूनिकेशन की संज्ञा दी है। इस शोध में पहली बार इस व्यवहार के बारे में जानकारी इकट्ठी की गई है। जंगली जानवरों और इंसानों के बीच इस संवाद को काफी दुर्लभ श्रेणी का मान सकते हैं।

नोट- कृपया जंगली जीवों को भोजन न दें। कई शोध में सामने आया है कि इंसानों का ऐसा भोजन देना जंगली जीवों के जीवन काल कम कर सकता है। इस खाने से उनके भीतर आक्रात्मकता बढ़ती है। जंगली जीवों के लिए जंगल में प्राकृतिक रूप से मौजूद खाना ही सबसे अच्छा होता है। इस अध्ययन के दौरान भी किसी जंगली जीव को अध्ययनकर्ताओं ने खाने की चीजें नहीं  दीं ।   (hindi.mongabay.com)

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