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उत्तराखंड से आप-बीती: बढ़ता पानी, घुप्प अंधेरा- टनल में वो ख़ौफ़नाक सात घंटे
09-Feb-2021 4:04 PM
उत्तराखंड से आप-बीती: बढ़ता पानी, घुप्प अंधेरा- टनल में वो ख़ौफ़नाक सात घंटे

बसंत बहादुर

-ध्रुव मिश्रा

उत्तराखंड में हुए हादसे में बारह लोगों की टीम तपोवन की अपर स्ट्रीम सुरंग में फंसी थी. उन सभी को आईटीबीपी ने सुरक्षित बाहर निकाल लिया था. इनमें तीन लोगों ने बीबीसी से अपने अनुभव साझा किए.

बसंत बहादुर तपोवन जल विद्युत परियोजना में मजदूर हैं ये यहाँ आउट फॉल में काम करते थे. ये नेपाल के रहने वाले हैं. जब सैलाब आया था तो ये भी यहां टनल में फस गए थे. घटना के समय ये 300 मीटर अंदर टनल में फस गए थे करीब 7 घँटे तक ये फंसे रहे इन्होंने बीबीसी से बात की है अंदर कितना डरावना मंज़र था उसके बारे में बताया है.

बसंत बहादुर हम भी टनल में काम कर रहे थे वही फंस गए. हम टनल की डाउन साइड में थे. हम वहाँ से निर्माण कार्य के लिए लगाए गए सरिये के सहारे धीरे-धीरे बाहर निकले.

बसंत ने बीबीसी को बताया कि वो और उनके साथी सुरंग के करीब 300 मीटर अंदर थे. उन्होंने बाहर से लोगों को आवाज़ें सुनी जो उन्हें बाहर आने के लिए प्रेरित कर रहे थे.

बसंत ने कहा कि लोग ज़ोर ज़ोर से पुकारकर उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए, बाहर आने को कह रहे थे.

लेकिन मज़दूरों को डर था कि कहीं अगर वो बाहर की ओर गए तो कहीं और मुसीबत में न पड़ जाएं. उन्हें अब तक भी ये पता नहीं था कि दरअसल हुआ क्या है.

उन्हें लगा कि सिलेंडर वग़ैरह फटने की वजह से कोई ब्लास्ट हुआ है और अगर उन्होंने बाहर निकलने की कोशिश की तो सकता है कि उन्हें करंट न लग जाए.

हादसे के तुरंत बाद बसंत बहादुर और उसके साथियों ने क्या महसूस किया है, ये बताते हुए बसंत कहते हैं, "हमने अपने काम करने की जगह से पीछे की तरफ देखा तो भयंकर धुंआ नजर आया और हमारे कान एक दम सुन्न हो गये. हमें अहसास हो गया था कि कुछ तो गड़बड़ है. इसके बाद अचानक पानी का रेला हमारी तरफ आया. हम बुरी तरह डर गए. इसके बाद हम सभी ने पास खड़ी जेसीबी पर छलांग लगाई और उसके ऊपर बैठ गए."

बसंत ने बताया कि सुरंग पर काम सुबह 8 बजे से शुरू होता है और वो लोग 12.30 बजे ही लंच के लिए टनल से निकलते थे.

लेकिन उस दिन मज़दूर नौ घंटे बाद बाहर आए. करीब 10.30 बजे बाढ़ आने से लेकर शाम 5.30 बजे तक बसंत और उसके साथी वहीं फंसे रहे.

बसंत का कहना है कि उसके बाद जो भी कैश या बाकी सामान था सब बेकार गया है.

बीबीसी से बातचीत में बसंत ने कहा, "सुरंग में 7 घंटे गुजारना बेहद मुश्किल था. लेकिन हम लोगों ने हार नहीं मानी और एक दूसरे का हौसला बढ़ाते रहे."

बसंत और उनके साथियों को आईटीबीपी के जवानों ने रेस्क्यू किया.

आईटीबीपी के जवान इन मज़दूरों तक कैसे पहुंचे?

बसंत ने बताया, "इस मुश्किल घड़ी में मेरा साथ मोबाइल फोन ने दिया. मैं लगातार एनटीपीसी के अधिकारियों को फोन करता रहा. इन्हीं अधिकारियों ने इसकी सूचना आइटीबीपी को दी. इसके बाद हम सभी के सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. "

श्रीनिवास रेड्डी एक जियोलॉजिस्ट हैं जो एनटीपीसी के साथ काम करते हैं.

बीबीसी हिंदी से बातचीत में रेड्डी ने घटना के बारे में बताया, " जिस वक्त आपदा आई थी तब में टनल के अंदर ही था. हम कोई 350 मीटर काम कर रहे थे. तभी बाहर से एक आदमी आया वह चिल्लाते हुए बोला कि सभी बाहर चलो क्योंकि नदी में तेजी से पानी बढ़ रहा था."

जिससे पहले की रेड्डी और उनके साथी संभल पाते, हालात तेज़ी से बिगड़ने लगे.

रेड्डी ने कहा, "अचानक से पानी टनल के अंदर आ गया. जैसे ही पानी अंदर आया हम लोग ऊपर लगी लोहे की रॉड पकड़कर, थोड़ा ऊपर की तरफ चले गए. रॉड के सहारे हम लोग ऊपर की तरफ सरकते रहे. हम ऐसे ही इंतजार करते रहे. फिर थोड़ी देर के बाद पानी रुक गया."

लेकिन टनल के अंदर घुप अंधेरा होने की वजह से उनकी कोशिश काफ़ी धीमी थी क्योंकि अचानक आई बाढ़ ने बिजली की सप्लाई काट दी थी.

कुछ लोगों को अंदर सांस लेने में भी मुश्किल आ रही थी. लेकिन फिर अचानक, टनल के ऊपर से थोड़ी मिट्टी गिरी और बाहर की रोशनी अंदर आने लगी. इसके बाद लोगों को आस-पास दिखने लगा और सांस लेने की दिक्कत का भी समाधान हो गया.

रेड्डी बताते हैं कि मुसीबतें और भी थी, "हम ठंडे पानी में थे. हमारे पैर जम रहे थे. लोगों के जूतों में पानी और मलबा घुस गया था जिसकी वजह से पैरों का वजन काफी बढ़ गया था. पैर धीरे-धीरे सूजना शुरु हो रहे थे."

तमाम मुसीबतों के बीच लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए रेड्डी ने खूब गाने गाए.

वो बताते हैं, "मैं गाने गा रहा था शायरी सुना रहा था. बीच-बीच में कसरत भी करवा रहा था. मैं चाहता था कि सबका मन बहलता रहे और वो थोड़ा चुस्त भी रहें ताकि निकलने की कोशिश की जा सके."

इसी बीच फोन से लगातार बाहर संपर्क करने की कोशिश की जा रही थी लेकिन सुरंग में नेटवर्क ठीक से नहीं मिल रहा था.

और आखिर में नेटवर्क मिला और आईटीबीपी के दल ने उन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया.

वीरेंद्र कुमार गौतम
DHRUV MISHRA

जो बाहर लोग टनल में एक साथ फंसे थे, उनमें से सबसे आखिर में बाहर निकलने वाले विरेंद्र कुमार गौतम ही थे.

उन्होंने बाहर निकलकर अपनी खुशी का जो इज़हार किया था, उसका वीडियो भी वायरल हुआ था.

विरेंद्र गौतम बताते हैं, "जैसे ही पानी अंदर घुसा, बिजली कट गई और सब जगह अंधेरा छा गया था. बाहर दूर से काफी तेज आवाजें आ रही थीं. घुप अंधेरे में सुरंग काफ़ी भयानक लग रही थी.

गौतम ने सोचा कि कहीं कोई बादल फटा है और उसी का पानी टनल में घुस रहा है. करीब पंद्रह मिनट तक पानी का लेवल लगातार बढ़ता रहा. फिर रुक गया.

गौतम बताते हैं, "जैसे-जैसे पानी का बहाव धीमा पड़ता गया, हमें अहसास होने लगा कि मुसीबत टल रही है. मैंने अपने सभी साथियों को धैर्य दिया कहा कि अब हम लोग बच कर निकल सकते हैं."

उसके बाद गौतम और उनके साथी टनल के किनारों पर लगे सरिया की मदद से बाहर की तरफ जाने लगे.

काफी देर तक प्रयास करने के बाद इनके एक साथी को बीएसएनएल का नेटवर्क मिला.

गौतम ने बीबीसी को बताया, "मैंने अपने साथी को अपने प्रोजेक्ट डायरेक्टर का नंबर दिया फिर उसने उन्हें फोन किया और उसके बाद हम मेरे प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने आइटीबीपी को फोन किया फिर उसके बाद आईटीबीपी की मदद से हम लोग यहां से निकल पाए." (bbc.com)

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