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राज्यसभा में कांग्रेस सांसद ग़ुलाम नबी आज़ाद का कार्यकाल पूरा हो रहा है. इस मौक़े पर मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई सांसदों ने राज्यसभा में विदाई भाषण दिया. ग़ुलाम नबी आज़ाद के साथ अपने रिश्तों का ज़िक्र करते हुए मोदी सदन में भावुक भी हो गए.
इसके बाद जब ग़ुलाम नबी आज़ाद की बारी आई, तो वे भी भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि वे ख़ुशकिस्मत हैं कि वे पाकिस्तान नहीं गए. उन्होंने कहा कि उन्हें हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर फ़ख़्र है.
गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, "मैं उन ख़ुशकिस्मत लोगों में से हूँ, जो पाकिस्तान कभी नहीं गया, लेकिन जब मैं पढ़ता हूँ कि पाकिस्तान के अंदर कैसे हालात हैं, तो मुझे हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व है. इस देश के मुसलमान सबसे ज़्यादा ख़ुशनसीब हैं."
ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा, "हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारे देश के मुसलमानों में बुराइयाँ नहीं हैं. लेकिन यहाँ बहुसंख्यक समुदाय को भी दो क़दम आगे आने की ज़रूरत है."
उन्होंने उनके जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहते आतंकवादी हमले का ज़िक्र किया, जिसका उल्लेख पीएम मोदी ने भी किया था. ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा- "मैं अल्लाह से, भगवान से दुआ करता हूँ कि इस देश से आतंकवाद का ख़ात्मा हो."
इस मौक़े पर ग़ुलाम नबी आज़ाद ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया. उन्होंने कहा, "मुझे अवसर मिला मंत्री के रूप में इंदिरा जी और राजीव जी के साथ काम करने का. सोनिया जी और राहुल जी के समय पार्टी को रिप्रेजेंट करने का भी मौक़ा मिला. हमारी माइनॉरिटी की सरकार थी और अटल जी विपक्ष के नेता थे, उनके कार्यकाल में हाउस चलना सबसे आसान रहा. कई मसलों का समाधान करना कैसे आसान होता है, ये अटल जी से सीखा था."
पीएम मोदी को आई रुलाई
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग़ुलाम नबी आज़ाद की सराहना की और बहुत सारी यादें साझा कीं और भावुक भी हुए.
जम्मू-कश्मीर में गुजरात के पर्यटकों पर हुए हमले का ज़िक्र करते हुए मोदी ने कहा, "जब आप मुख्यमंत्री थे, मैं भी एक राज्य का मुख्यमंत्री था. हमारी बहुत गहरी निकटता रही है. शायद ही ऐसी कोई घटना हो, जब हम दोनों के बीच में कोई संपर्क सेतु न रहा हो."
"एक बार जम्मू-कश्मीर गए टूरिस्टों में गुजरात के भी यात्री थे. वहाँ जाने वाले गुजराती यात्रियों की काफ़ी संख्या रहती है. आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया. शायद 8 लोग मारे गए. सबसे पहले मेरे पास ग़ुलाम नबी जी का फ़ोन आया और वो फ़ोन सिर्फ सूचना देने के लिए नहीं था. फ़ोन पर उनके आँसू रुक नहीं रहे थे."
इस घटना का ज़िक्र करते हुए बार-बार पीएम मोदी भावुक हुए और ग़ुलाम नबी आज़ाद को सैल्यूट भी किया.
उन्होंने कहा, "एक मित्र के रूप में मैं ग़ुलाम नबी जी का घटनाओं और अनुभवों के आधार पर आदर करता हूँ. मुझे पूरा विश्वास है कि उनकी सौम्यता, उनकी नम्रता, इस देश के लिए कुछ कर गुज़रने की कामना, वो कभी उन्हें चैन से बैठने नहीं देगी. मुझे विश्वास है जो भी दायित्व वो संभालेंगे, वो जरूर वैल्यू एडिशन करेंगे, कंट्रिब्यूशन करेंगे और देश उनसे लाभान्वित होगा, ऐसा मेरा पक्का विश्वास है."
राज्यसभा में ग़ुलाम नबी आज़ाद का कार्यकाल 15 फरवरी को ख़त्म हो रहा है. पीएम मोदी ने कहा, "मैं आपको रिटायर नहीं होने दूँगा. मैं आपसे सलाह मशविरा करता रहूँगा. मेरे दरवाज़े आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे."
आज़ाद का राजनीतिक करियर
7 मार्च 1949 को जन्मे ग़ुलाम नबी आज़ाद राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उस समय आए, जब 1980 में उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. 1980 में ही वे महाराष्ट्र के वाशिम लोकसभा क्षेत्र से चुनकर पहली बार संसद पहुँचे और 1982 में उन्हें इंदिरा गांधी की सरकार में विधि, न्याय और कंपनी मामलों का उप मंत्री बनाया गया.
1984 में भी वे संसद के लिए चुने गए. 1990-96 तक वे राज्य सभा में रहे. नरसिम्हा राव की सरकार में वे संसदीय कार्य और नागरिक उड्डयन मंत्री रहे.
2 नवंबर 2005 को वे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. 2008 में सरकार में सहयोगी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उसी साल जुलाई में ग़ुलाम नबी आज़ाद ने इस्तीफ़ा दे दिया.
बाद में वो मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने. 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में एनडीए को जीत मिली, तो उन्हें राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया. 2015 में ग़ुलाम नबी आज़ाद एक बार फिर कश्मीर से राज्यसभा के लिए चुने गए और अब उनका कार्यकाल ख़त्म हो रहा है.
एक समय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के क़रीबी रहे ग़ुलाम नबी आज़ाद पिछले साल उस समय चर्चा में आए, जब कुछ पार्टी नेताओं की चिट्ठी लीक हुई, जिसमें कांग्रेस में नेतृत्व के लिए चुनाव करने की मांग थी. चिट्ठी लिखने वालों में ग़ुलाम नबी आज़ाद का भी नाम था.
बाद में ग़ुलाम नबी आज़ाद खुलकर सामने आए और एक इंटरव्यू में कहा कि अगर कांग्रेस में अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं हुआ तो पार्टी अगले 50 सालों तक विपक्ष में ही रहेगी.
उस समय चिट्ठी लीक होने पर उन्होंने कहा था- हमारी मंशा कांग्रेस को मज़बूत करने की थी. अगर चिट्ठी लीक हो गई, तो इतना विवाद खड़ा करने की आवश्यकता क्या. पार्टी को मज़बूत बनाने के लिए कहना और चुनाव की मांग करना कोई राज़ तो नहीं है.
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इन नेताओं की आलोचना की गई और बाद में ग़ुलाम नबी आज़ाद से कांग्रेस का महासचिव पद भी छीन लिया गया. (bbc.com)