रायपुर
कलम बंद हड़ताल को माओवादियों का समर्थन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 24 जुलाई । भाकपा (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी छत्तीसगढ़ अधिकारी कर्मचारी फेडरेशन के 25 से 29 जुलाई तक के पांच दिनी कलम बंद काम बंद हड़ताल का पुरजोर समर्थन किया है। साथ ही फेडरेशन के 75 सदस्य संगठनों के सभी 5 लाख कर्मचारियों एवं अधिकारियों का आह्वान करती है कि वे अपने महंगाई भत्ता-भाड़ा भत्ता हासिल करने उक्त हड़ताल में बढ़-चढक़र हिस्सा लें। यह ज्ञात है कि शिक्षक, कर्मचारी संगठनों के आंदोलन साल भर से जारी हैं और यह भी विदित है कि शिक्षक एवं कर्मचारियों ने अब तक कई तरह के चरणबद्ध आंदोलन किए हैं, परंतु सरकार का रवैया भैंस के सामने बीन बजाने के बराबर है।
हमारी पार्टी छत्तीसगढ़ के सभी शिक्षक संगठनों से अपील करती है कि वे अपने सदस्यों को हड़ताल में शामिल करें। हालांकि छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोशिएशन ने हड़ताल का समर्थन करने और स्कूल न जाने की घोषणा कर चुकी है, जो कि सराहनीय है। हमारी एसजडसी कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन एवं टीचर्स एसोसिएशन का आह्वान करती है कि दोनों संयुक्त मंच गठित कर पांच दिनी हड़ताल को अनिश्चितकालीन हड़ताल में तब्दील कर अपनी मूलभूत समस्याओं के हल के लिए आगे बढ़ें। यही एकमात्र रास्ता होगा। यहीं पर यह गौर करने वाली बात है कि राजनेताओं-मुख्यमंत्रियों मंत्रियों व विधायकों के वेतन भत्तों में तो लगातार वृद्धि की जाती है। जबकि महंगाई भत्ता, भाड़ा भत्ता देने से अधिकारी कर्मचारी फेडरेशन बनाकर अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उसी तर्ज पर इस फेडरेशन को छत्तीसगढ़ के सभी शिक्षक, किसान, मजदूर संगठनों के साथ मिलकर एक महासंघ बनाकर केंद्र, राज्य सरकारों की किसान मजदूर शिक्षक कर्मचारी विरोधी एवं दलित-आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ व्यापक, संगठित व जुझारू आंदोलन का निर्माण करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
यह विदित हो कि विश्व बैंक, अंतरर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्मनाक शर्तों के तहत ही केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से शिक्षा, स्वास्थ्य सहित सभी सरकारी विभागों में लंबे समय से स्थायी नियुक्तियां बंद कर दी गयी हैं। संविदा नियुक्ति, दैनिक वेतनभोगी नियुक्तियां आउट सोर्सिंग आम बात हो गयी हैं। इतना ही नहीं, महंगाई भत्ते में बढ़ोत्तरी न करना, वेतन-भतों में विभिन्न कटौतियां करना जारी हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो व्यवस्थापन खर्च कम करने के नाम पर कर्मचारियों व छोटे अधिकारियों के वेतन-भत्तों पर डाका डाला जा रहा है। जन कल्याणकारी योजनाओं, गरीब जनता को दी जाने वाली सब्सिडियों में कटौती की जा रही है। यह कमोबेश देश भर में जारी है।
केंद्र, राज्य सरकारों के बजटों में पूंजीपतियों को छूट ही छूट देते हुए उन्हें मालामाल किया जा रहा है जबकि मजदूरों, किसानों, कर्मचारियों की लूट ही लूट के जरिए उन्हें बेहाल किया जा रहा है। देश, विदेश के कॉरपोरेट घरानों को अत्यधिक मुनाफा पहुंचाने के तहत ही केंद्र, राज्य सरकारों खासकर केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा धड़ल्ले से एवं बेशर्मी से नित -नयी जन विरोधी नीतियां बनायी व अमल में लायी जा रही हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को कौडिय़ों के भाव देश-विदेश के पूंजीपतियों के हाथों सौंपा जा रहा है।
हाल ही की अग्निपथ योजना, वन एवं पर्यावरण संरक्षण कानूनों में पूंजीपतिपरस्त एवं जन विरोधी संशोधित नियम -2022 बनाना आदि आजपा सरकार के युवा विरोधी, आदिवासी विरोधी चरित्र के ताजा उदाहरण हैं। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों अधिकारियों को चाहिए कि वे अपनी मांगों तक सीमित न होकर मजदूरों, किसानों, आदिवासियों की मांगों को लेकर भी साझा आंदोलन करने की ओर कदम बढ़ाएं।