रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 जुलाई । विज्ञान में कोई अंतिम सत्य नहीं होता, विज्ञानं में सवालों का जवाब जानकारी और रिसर्च के बाद बदलते रहते हैं, ज्ञान के विकास के साथ। यह बात आज यहाँ जाने माने वैज्ञानिक गौहर रजा ने कहा।
राष्ट्रीय विज्ञान, प्रोदौगिकी एवं विकास अध्ययन संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक गौहर रजा यहां अजीम प्रेमजी फाउंडेशन और शिक्षक शिक्षा विभाग, रविशंकर विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित विज्ञान, वैज्ञानिक सोच और विज्ञान शिक्षण विषय पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए।
गौहर रजा ने शुरुआत में कहा। हमारा इस धरती में होने का औचित्य क्या है। सृष्टि की शुरुआत कैसे हुई कैसे विस्फोट के बाद गर्मी कम हुई और वनस्पतियों,जीवों की शुरुआत कैसे हुई।
अफ्रीका के इलाके के मानव जाति के शुरुआती अवशेषों से हमें ये पता चला कि किस तरह उनके दैवीय शक्तियों के बारे में समझ बनी थी। सभी धार्मिक ग्रंथों में इसी तरह मिलती जुलती कहानियां हैं कि इस ब्रम्हांड को किसने , कैसे रचा ?
इस सवाल का जवाब अब तक मुझे नहीं मिला कि इंसानों ने सवाल पूछना कब से शुरू किया जो हमको जानवरों से अलग करती है।
जिंदगी गुजारने के सवाल अलग, बच्चों के बड़े होने के दौर में सवाल जो हर पीढ़ी के बच्चे पूछते हैं। सवाल कई तरह के हो सकते हैं जिनसे विज्ञान की ओर, मानवता की ओर से पूछे जाते हैं।
भगवान ने सारी वस्तुओं को बनाया है तो फिर भगवान को किसने बनाया।
बस यही फर्क है कि विज्ञान में सवालों के जवाब जानकारी और रिसर्च के बाद बदलते रहते हैं ज्ञान के विकास के साथ साथ।
डॉ। गौहर रज़ा ने आगे कहा की, सबसे लेटेस्ट रिसर्च और किताबें विज्ञान में महत्वपूर्ण मानी जाती है जबकि धर्म में प्राचीन से प्राचीन ग्रंथ को अधिक महत्वपूर्ण और अधिकृत माना जाता है।
कोई भी वैज्ञानिक अपने पूर्वज वैज्ञानिकों से आगे बढ़ कर खोज करके विकास करता है जबकि धर्म में इसका विपरीत होता है।
इस परिचर्चा में दुसरे वक्ता, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हृदयकान्त दीवान ने कहा होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण में काम के दौरान आने वाले सवालों से शुरुआत हुई जहाँ सवाल आते थे ?
घर में चाय बनाने के लिये स्त्री या लडक़ी ही क्यों जाए पुरुषों को क्यों नहीं कहा जाता ?
सवालों के जवाब सभी को पता हो ये जरूरी नहीं , इसलिये ये मानना भी वयस्कों के लिये मुश्किल होता है कि उन्हें उस सवाल का जवाब नही आता।
देश में जो संविधान बनाया गया था तो हमने उसे हमें यानि जनता को समर्पित किया
जब देश के भले के लिए हमने जिम्मेदारी ली तो एक लोकतांत्रिक देश में हम स्वतंत्रता से सवाल पूछ सकें। शिक्षक के रूप में , छात्रों के रूप में, नागरिक के रूप में सवाल स्वतंत्रता से कर सकें।
हर सुनी सुनाई बात पर संशय करना और उसे प्रमाणित करने के बाद ही मानना।
पहले ये माना जाता था कि सफेद चमड़ी वाले ज्यादा बुद्धिमान होते हैं किंतु त्वचा का रंग का बौद्धिक क्षमता से कोई संबंध नहीं होता वो एक अलग तत्व के कारण होता है स्किन के रंग के आधार पर आज तक पूरी दुनिया मे ये भेद किसी न किसी रूप से जारी है जबकि ये पूरी तरह से अवैज्ञानिक है।
हमारे आदर्शो को , विद्वानों को बदनाम करने की साजिश भी बहुत ज्यादा इन दिनों चल पड़ी है।
इसी क्रम में आगे कहते हुए हृदयकान्त दीवान ने कहा कि युवाओं को यह जिम्मेदारी उठानी है कि विनम्र बनना , साहसी बनना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बातों को आगे बढ़ाना।
इस परिचर्चा में सबसे पहले अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ भारतीय वन सेवा अधिकारी,छत्तीसगढ़ ने भी सवाल करने पर जोर देते हुए कहा की, सवाल करना वैज्ञानिक सोच की शुरुआत है। इस कार्यक्रम में शिक्षकों के आलावा, छात्र-छात्राएं और बुद्धिजीवी भी शामिल हुए।