छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क
मुसीबत के इस दौर में खुले आसमान तले चार बच्चों के साथ शायद हज़ार किलोमीटर पैदल सफर पर निकले पति-पत्नी की यह कहानी है. इसे दिल्ली की एक युवती ने लिखा है जो कि अपनी एक साथी के साथ मिलकर लौटते मजदूरों को बिस्किट और पानी की बोतलें बाँट रही थी. इस कहानी को पढ़कर 'छत्तीसगढ़' संपादक ने उससे संपर्क किया और जानना चाहा कि इस परिवार के बारे में उन्हें कुछ और याद है क्या? नाम? नंबर? लेकिन वे उस दिन करीब 3000 लोगों को बिस्किट-पानी बाँट चुकी थीं इसलिए उन्हें और कोई जानकारी याद नहीं थी. सिवाय इसके जो उन्होंने फोटो सहित फेसबुक पर पोस्ट किया था. आगे उन्हीं की ज़ुबानी.
देश की राजधानी दिल्ली में एक एक अस्पताल में काम करने वाली शिबल भारतीय एक दूसरी युवती ग्रष्मी के साथ घूम-घूमकर लौटते मजदूरों के बीच बिस्किट बाँट रही थीं. इस बीच उन्हें एक परिवार मिला जिसके बारे में उन्होंने फोटो सहित फेसबुक पर लिखा- हम थके हुए लौट रहे थे कि यह परिवार दिखा। इसके पास कार रोकी और पूछा कि बिस्किट के पैकेट और पानी की बोतलें चाहिए?
जवाब मां ने दिया और कहा कि नहीं, उनके पास पर्याप्त है. पिता ने भी वही बात दोहराई - है दीदी, काफी है, किसी और को दे देना...
सफ़ेद फ्रॉक पहनी छोटी बची सपना ने पूछा- बिस्किट है क्या?
हम कार से निकले, उन्हें बिस्किट दिए, उसका भाई राज भी एक बिस्किट चाहता था, बाकी ने मना कर दिया.
अगर मुझे कभी गरिमा और शान याद करने की जरूरत पड़ेगी, दुनिया की सबसे खूबसूरत बात याद करनी होगी, तो मैं इस मां का चेहरा याद करूंगी. अपना सब कुछ सर पर लादे हुए, और उम्मीद और प्रार्थना कि वे हिफाजत से घर पहुँच जाएँ. और उसके यह सोच कि चार छोटे बच्चों के साथ मध्य प्रदेश (शायद छत्तीसगढ़) के रायपुर के पास के अपने गांव तक पहुँचने के लिए उनके पास काफी है !
और यह कि उन्हें जितने की जरूरत है, उससे अधिक नहीं लेना है. और यह कि ऐसे सफर के बीच भी उसे मुस्कुराते रहना है. और यह कि अपने बच्चों को भी सिखाना है कि हमेशा सही काम ही करो.
तभी मुझे दिखा कि उसके सर पर जो झोला है, उस पर 'संतुष्टि' नाम छपा हुआ है !