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रॉश कॉकटेल: भारत में कोविड के खिलाफ नई उम्मीद
27-May-2021 4:16 PM
रॉश कॉकटेल: भारत में कोविड के खिलाफ नई उम्मीद

रॉश और सिप्ला कंपनियों की एंटीबॉडी कॉकटेल से भारत में पहले कोरोना संक्रमित व्यक्ति का उपचार किया गया है. यह एक महंगी और प्रयोगात्मक दवा है जिसका इस्तेमाल पिछले साल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर किया गया था.

    डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट 

गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल ने जानकारी दी है कि इस 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कॉकटेल' का इस्तेमाल एक 82 साल के कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति पर सफलतापूर्वक किया गया है. मरीज का पिछले पांच दिनों से अस्पताल में इलाज चल रहा था. उन्हें इंट्रावेनस तरीके से यानी नसों के अंदर इंजेक्शन दे कर यह कॉकटेल चढ़ाने की प्रक्रिया करीब आधे घंटे चली, और उसके बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई. अस्पताल ने कहा है कि वो उनसे संपर्क में रहेगा और उनके स्वास्थ्य की निगरानी करता रहेगा.

यह एक प्रयोगात्मक दवा है जिसे हाल ही में भारत सरकार ने आपात इस्तेमाल की अनुमति दी थी. इसे अमेरिकी कंपनी रेजेनेरॉन और स्विट्जरलैंड की कंपनी रॉश ने मिलकर बनाया था. इसे पिछले साल अक्टूबर में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को भी दिया गया था जब वो कोरोना से संक्रमित हो गए थे. उस समय अमेरिकी नियामकों द्वारा इसे सिर्फ प्रयोगात्मक तौर पर दिए जाने की अनुमति दी गई थी.

इसमें दो एंटीबॉडी, कसिरिवीमैब और इमदेवीमैब, का मिश्रण होता है. इन्हें 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडी' कहा जाता है, क्योंकि इन्हें एक विशेष व्हाइट ब्लड सेल को क्लोन करके बनाया जाता है. भारत में इसे रॉश और सिप्ला मिल कर लाए हैं. हालांकि इसके इस्तेमाल की सीमाएं हैं. इसे सिर्फ हलके लक्षणों वाले मरीजों पर इस्तेमाल किया जा सकता है. मेदांता के प्रबंधक निदेशक डॉक्टर नरेश त्रेहान ने मीडिया को बताया कि जब शरीर में कोविड-19 वायरस से संक्रमण शुरुआती चरण में हो, उस समय इसे दिया जा सकता है.

इस चरण में वायरस अपने आप को बढ़ाने के लिए मरीज की कोशिकाओं में घुसने की कोशिश कर रहा होता है, ताकि वहां से उसे पोषण मिल सके. डॉ. त्रेहान ने बताया कि ये एंटीबाडी उसी समय वायरस को कोशिकाओं में घुसने से रोक देते हैं. ध्यान रखने की बात यह है कि यह उपचार कोविड-19 से गंभीर रूप से संक्रमित लोगों पर नहीं किया जाना चाहिए. डॉक्टर त्रेहान ने बताया कि अमेरिका और यूरोप में इसकी काफी जांच हो चुकी है और इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है.

यह एक महंगी दवा है. भारत में सिप्ला इसे बाजार में 59,000 रुपए प्रति खुराक के दाम पर उपलब्ध करा रही है. एक मरीज को एक ही खुराक की जरूरत पड़ती है. (dw.com)

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