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महामारी की मार झेलती कपड़ा फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाएं
27-May-2021 7:55 PM
महामारी की मार झेलती कपड़ा फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाएं

कंबोडिया में कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाली गरीब महिलाएं कर्ज के अजीब भंवर में फंसी हुईं हैं. वे कोरोना की मार के बाद अपना कर्ज चुकाने के लिए एक नया कर्ज ले रही हैं. साहूकार कर्ज नहीं चुकाने पर धमकाता है.

(dw.com)

कई हफ्ते बिना वेतन के रहने के बाद जब कपड़ा फैक्ट्री खुली तो कर्ज में डूबी इयांग मलिया वहां पहुंचीं. उन्हें फैक्ट्री में रहते हुए कोरोना से संक्रमित होने का डर सताता है. कंबोडिया का कपड़ा उद्योग सात अरब डॉलर का है, जिसमें करीब साढ़े आठ लाख लोग काम करते हैं. कपड़ा उद्योग में काम करने वाले लोगों के लिए वैक्सीन की प्राथमिकता दी गई है, लेकिन मलिया को यह अब तक नहीं मिली है और ना ही उन्हें कर्ज से छुटकारा ही मिल पाया है. 26 साल की मलिया कहती हैं, "मुझे किराया, जरूरी चीजों और कर्ज चुकाने के लिए पैसे की जरूरत है." वह कहती हैं, "मुझे चिंता इस बात की है कि अगर मैं बिना टीका लगवाए काम पर जाती हूं तो संक्रमित हो सकती हूं."

कंबोडिया ने अप्रैल के महीने में कपड़ा फैक्ट्रियां बंद कीं और ऐसी बस्तियों पर सख्त पाबंदियां लगाईं, जहां काम करने वाले कर्मचारी रहते भी हैं. इन बस्तियों में हर रोज 100 से अधिक संक्रमण के मामले सामने आए. 100 के करीब फैक्ट्रियों में संक्रमण के मामले सामने आ चुके हैं. एक करोड़ साठ लाख की आबादी वाले कंबोडिया में महामारी के पहले साल में सिर्फ 500 मामले सामने आए थे. इस साल फरवरी में महामारी की चपेट में 22 हजार लोग आए और 156 लोग मारे गए. अधिकारियों ने 19 अप्रैल को उन इलाकों को "रेड जोन" घोषित किया जहां संक्रमण की दर अधिक थी. जनता को मेडिकल जरूरतों के अलावा घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी.

जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा हुई कम आय वाले हजारों श्रमिक बिना वेतन के हो गए. अधिकार समूहों ने ऐसे कर्मचारियों के लिए अभियान चलाया जिसके बाद कंबोडियन माइक्रोफाइनेंस असोसिएशन ने 7 अप्रैल को अपने सदस्यों को संघर्ष कर रहे कर्मचारियों की आर्थिक मदद करने को कहा. लेकिन कई कर्जदारों ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि उन्हें ऋण अधिस्थगन की पेशकश नहीं की गई थी और उन्होंने आशंका जताई कि कर्ज के बदले जो जमीन गिरवी रखी है वह उनके हाथ से चली जाएगी.

जिंदा रहने के लिए संघर्ष

कंबोडिया के छोट कर्ज देने वाले हाल के साल में जांच के दायरे में आए हैं. शोधकर्ताओं और अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस तरह से कर्ज देने को प्रवासन, बाल श्रम और जबरन जमीन पर कब्जा करने से जोड़ा है. कंबोडिया में औसत कर्ज 3,800 डॉलर प्रति कर्जदार है जो कि दुनिया में सबसे अधिक है. माइक्रोफाइनेंस ने हजारों कंबोडियाई लोगों को कर्ज के चक्र में डाला है, जहां ऋण चुकाने के लिए और कर्ज लिए जाते हैं और यह सिलसिला ऐसा ही चलता रहता है.

ट्रेड यूनियनों और अधिकार समूहों द्वारा 2020 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग एक तिहाई श्रमिकों ने मौजूदा कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज लिया. इस सर्वे में पाया गया कि कर्जदार अपने परिवारों का पेट भरने के लिए और अपनी जमीन को वापस पाने के लिए संघर्ष करते रहते हैं और कर्ज देने वालों का उन पर बहुत अधिक दबाव रहता है. मानवाधिकार संगठन लिकाडो की निदेशक नेली पिलोरगे कहती हैं, "कंबोडिया के कई माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं ने 2020 में रिकॉर्ड मुनाफा कमाया. अब ऐसी संस्थाओं को आगे आकर गरीब कंबोडियाई लोगों की मदद करनी चाहिए और उन्हें कर्ज से राहत देने चाहिए."

कर्ज चुकाने के लिए कर्ज

कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाली 41 साल की थान चंथी पर छह हजार डॉलर से अधिक का कर्ज है. उन्होंने पुराना कर्ज चुकाने के लिए एक नया कर्ज लिया था. मध्य अप्रैल में चंथी अपने लगभग 100 सहकर्मियों के साथ कोरोना पॉजिटिव हो गईं थीं. इलाज के बाद जब वह वापस घर पहुंचीं तो माइक्रोफाइनेंस के वसूली एजेंट उनके घर पर आ धमके. चंथी के पास सिर्फ तीन डॉलर थे. उन्होंने राहत की गुजारिश की लेकिन एजेंट ने उन्हें कम से कम 60 डॉलर देने को कहा. चंथी कहती हैं, "मेरी कोई कमाई नहीं हो रही है और मेरे पास कोई बचत भी नहीं है. मैं तभी कर्ज चुका पाऊंगी जब मैं नया कर्ज लूं. वास्तव में मुझे पता नहीं कि मैं क्या करूं."

एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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