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दीपिका कुमारी: जिसने ग़रीबी से लड़ने के लिए उठाया धनुष और बनी दुनिया की नंबर 1 तीरंदाज़
29-Jun-2021 8:37 AM
दीपिका कुमारी: जिसने ग़रीबी से लड़ने के लिए उठाया धनुष और बनी दुनिया की नंबर 1 तीरंदाज़

भारतीय तीरंदाज़ दीपिका कुमारी रविवार को पेरिस में आयोजित तीरंदाजी विश्वकप (स्टेज़ 3) में तीन गोल्ड मेडल जीतकर वर्ल्ड रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंच गई हैं.

दीपिका ने महिलाओं की व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा के फाइनल राउंड में रूसी खिलाड़ी एलेना ओसिपोवा को 6-0 से हराकर तीसरा गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इससे पहले उन्होंने मिक्स्ड राउंड और महिला टीम रिकर्व स्पर्धा में भी गोल्ड मेडल हासिल किया. दीपिका ने मात्र पाँच घंटे में ये तीनों गोल्ड मेडल हासिल किए हैं.

दीपिका इससे पहले मात्र 18 साल की उम्र में वर्ल्ड नंबर वन खिलाड़ी बन चुकी हैं. अब तक विश्व कप प्रतियोगिताओं में 9 गोल्ड मेडल, 12 सिल्वर मेडल और सात ब्रॉन्ज मेडल जीतने वालीं दीपिका की नज़र अब ओलंपिक मेडल पर है.

दीपिका अगले महीने टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने के लिए जापान जा रही हैं. ख़ास बात ये है कि भारत की ओर से जा रही तीरंदाजी टीम में वह अकेली महिला हैं.

झारखंड के बेहद ग़रीब परिवार में जन्म लेने वाली 27 वर्षीय दीपिका ने पिछले 14 सालों में एक लंबा सफर तय किया है.

तीरंदाजी सीखने के लिए अपने घर से निकलते हुए दीपिका के मन में एक संतोष इस बात का था कि उनके जाने से परिवार पर एक बोझ कम हो जाएगा. लेकिन आज दीपिका ने अपने दम पर परिवार का आर्थिक और सामाजिक दर्जा ऊंचा किया है.

दीपिका के पिता शिव नारायण महतो एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर के रूप में काम किया करते थे. वहीं, उनकी माँ गीता महतो एक मेडिकल कॉलेज में ग्रुप डी कर्मचारी के रूप में काम करती हैं.

ओलंपिक महासंघ ने एक शॉर्ट फिल्म बनाई है जिसमें दीपिका और उनके परिवार ने दीपिका के सफर से जुड़ी चुनौतियों का ज़िक्र किया है.

दीपिका के पिता शिव नारायण बताते हैं, “जब दीपिका का जन्म हुआ तब हमारी आर्थिक हालत बहुत ख़राब थी. हम बहुत ग़रीब थे. हमारी पत्नी 500 रुपये महीना तनख़्वाह पर काम करती थी. और मैं एक छोटी सी दुकान चलाता था.”

इस फिल्म में ही दीपिका बताती हैं कि उनका जन्म एक चलते हुए ऑटो में हुआ था क्योंकि उनकी माँ अस्पताल नहीं पहुंच पायी थीं.

14 बरस की उमर में उठाया तीर-धनुष

कहते हैं कि ज़िंदगी में बहुत कुछ संयोगवश होता है. 14 साल की उम्र में पहली बार धनुष-बाण उठाने वाली दीपिका का तीरंदाजी की दुनिया में प्रवेश भी संयोगवश हुआ. और उन्होंने अपनी शुरुआत बांस के बने धनुष बाण से की.

दीपिका कहती हैं कि “वह तीरंदाज़ी के प्रति इतनी दीवानी हैं क्योंकि उन्होंने इस खेल को नहीं बल्कि इस खेल ने उन्हें चुना है.”

तीरंदाजी की दुनिया में अपनी एंट्री की कहानी बताते हुए दीपिका कहती हैं, “साल 2007 में जब हम नानी के घर गए तो वहां पर मेरी ममेरी बहन ने बताया कि उनके वहां पर अर्जुन आर्चरी एकेडमी है.

जब उसने ये बोला कि वहां पर सब कुछ फ्री है. किट भी मिलती है, खाना भी मिलता है. तो मैंने कहा कि चलो अच्छी बात है, घर का एक बोझ कम हो जाएगा. क्योंकि उस समय आर्थिक संकट बहुत गहरा था.”

लेकिन जब दीपिका ने अपनी ख़्वाहिश पिता के सामने रखी तो वह निराश हो गयीं.

दीपिका बताती हैं, “राँची एक बहुत ही छोटी और रूढ़िवादी जगह है. मैंने जब पिता को बताया कि मुझे आर्चरी सीखने जाना है तो उन्होंने मना कर दिया.”

दीपिका के पिता बताते हैं कि उनका समाज लड़कियों को घर से इतना दूर भेजना ठीक नहीं मानता है.

वे कहते हैं, “छोटी सी बेटी को कोई भी अगर 200 किलोमीटर दूर भेज दे तो लोग क्या कहते हैं, कहते हैं कि ‘अरे बच्ची को खिला नहीं पा रहे थे, इसीलिए भेज दिया...”

लेकिन दीपिका आखिरकार राँची से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित खरसावाँ आर्चरी एकेडमी तक पहुंच गयीं.

लेकिन ये चुनौतियों की शुरुआत भर थी. एकेडमी ने उन्हें पहली नज़र में ख़ारिज कर दिया क्योंकि दीपिका बेहद पतली-दुबली थीं. दीपिका ने एकेडमी से तीन महीने का समय माँगा और खुद को साबित करके दिखाया.

एकेडमी में दीपिका की ज़िंदगी का जो दौर शुरू हुआ वह काफ़ी चुनौती पूर्ण था.

दीपिका बताती हैं, “मैं शुरुआत में काफ़ी रोमांचित थी. क्योंकि ये सब कुछ नया - नया सा हो रहा था. लेकिन कुछ समय बाद मेरे सामने कई तरह की समस्याएं आईं जिससे मैं निराश हो गयी.

एकेडमी में बाथरूम नहीं थे. नहाने के लिए नदी पर जाना पड़ता था. और रात में जंगली हाथी आ जाते थे. इसलिए रात में वॉशरूम के लिए बाहर निकलना मना था. मगर धीरे-धीरे जब तीरंदाज़ी में मजा आने लगा तो वो सब चीज़ें गौण होने लगीं. मुझे धनुष जल्दी मिल गया था और मैं जल्दी शूट भी करने लगी थी. ऐसे में धीरे-धीरे रुचि बढ़ने लगी और फिर तीरंदाज़ी से प्यार हो गया.”

जब दीपिका को मिले ‘द्रोणाचार्य’

दीपिका ने शुरुआत में ज़िला स्तरीय प्रतियोगिताओं से लेकर कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया. कुछ प्रतियोगिताओं में इनाम राशि 100, 250 और 500 रुपये तक होती थी. लेकिन ये भी दीपिका के लिए काफ़ी महत्व रखती थीं.

इसी दौरान 2008 में जूनियर वर्ल्ड चेंपियनशिप के ट्रायल के दौरान दीपिका की मुलाक़ात धर्मेंद्र तिवारी से हुई जो कि टाटा आर्चरी एकेडमी में कोच थे.

दीपिका बताती हैं, “धर्मेंद्र सर ने मुझे सलेक्ट किया और मुझे खरसावां से टाटा आर्चरी एकेडमी लेकर आए. मुझे वो जगह इतनी पसंद आई कि मैंने वहां घुसते ही एक दुआ माँगी कि भगवान में ज़िंदगी भर यहीं रहूं. और मेरी दुआ पूरी भी हुई.”

धर्मेंद्र तिवारी वर्तमान में भी दीपिका के कोच हैं. दुनिया की नंबर वन तीरंदाज बनने से जुड़ा दीपिका का अनुभव बेहद मज़ेदार है.

दीपिका ने अपने एक इंटरव्यू में बताया है कि जब साल 2012 में वह दुनिया की नबंर वन तीरंदाज बन गईं तब उन्हें ये पता ही नहीं था कि वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन होने का मतलब क्या होता है.

इसके बाद उन्होंने अपने कोच से इसके बारे में पूछा तब पता चला कि नंबर वन बनने के मायने क्या होते हैं.

जब हाथ से निकला ओलंपिक मेडल

लेकिन इसके बाद दीपिका के जीवन में एक झटका आया जब ओलंपिक में वो ब्रितानी खिलाड़ी एमी ओलिवर से 6-2 से हार गयीं.

दीपिका बताती हैं कि ये उनकी ज़िंदगी का बेहद तनाव भरा समय था. मैच के बाद दीपिका ने बीबीसी संवाददाता पंकज प्रियदर्शी के साथ बातचीत में अपना अनुभव साझा किया था.

दीपिका ने बताया था कि “इस मैच में हवा काफ़ी ज़्यादा तेज थी. और मैंने पहली बार ऐसी हवा का अनुभव किया था. हवा ने मुझे ज़्यादा कनफ़्यूज़ कर दिया और जब तक मैं हवा का रुख समझ पाती तब तक मैच ख़त्म हो गया.”

बीबीसी संवाददाता ने सवाल पूछा कि क्या वर्ल्ड नंबर वन होने का कोई दबाव था.

इस पर दीपिका ने कहा था, “नहीं, वो दोनों चीज़ें अलग हैं. मैं इतने सारे गेम खेलकर वर्ल्ड नंबर वन खिलाड़ी बनी हूं. लेकिन ओलंपिक सिर्फ एक गेम है. इसमें मारना बहुत अलग बात है. आप अंदर जाकर देखिए कि कैसे मारते हैं खिलाड़ी. मैं भी पहली बार इसका सामना कर रही हूं. और ये मेरा पहला ओलंपिक है. मेरे ऊपर कोई दबाव नहीं था. मुझे बस अपना अच्छा प्रदर्शन करना था.”

हालांकि बाद में एक इंटरव्यू में दीपिका ने ये स्वीकार किया था कि ओलंपिक के दौरान वह काफ़ी दबाव से गुज़र रही थीं. और उनकी तबीयत भी ख़राब हो गयी थी.

इसके बाद रियो ओलंपिक में भी दीपिका के हाथों निराशा लगी. अब दीपिका एक बार फिर टोक्यो ओलंपिक में शामिल होने की तैयारी कर रही हैं. साल 2012 की तरह इस बार भी वह ओलंपिक से ठीक पहले वर्ल्ड नंबर वन खिलाड़ी बन चुकी हैं.

बीते 13 सालों में दीपिका ने कई गोल्ड मेडल जीते हैं, अपने परिवार की आर्थिक हालत को सुधारा है और पिछले साल ही तीरंदाज अतानु दास से शादी की है.

खरसावां से लेकर टाटा आर्चरी एकेडमी समेत पूरे भारत में बच्चे दीपिका कुमारी को एक रोल मॉडल के रूप में देखते हैं.

तीन ओलंपिक खेलों के बीच दीपिका ने एक महिला के रूप में भी काफ़ी लंबा सफर तय किया है. ऐसे में देखना ये होगा कि दीपिका किस तरह तमाम दबावों और चुनौतियों पर पार पाकर ओलंपिक में मेडल जीतने का सपना सच करती हैं. (bbc.com)

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