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गिलहरियों की उछल कूद में संतुलन कहां से आता है
06-Aug-2021 8:55 PM
गिलहरियों की उछल कूद में संतुलन कहां से आता है

गिलहरियां को उछलते कूदते देखना बड़ा प्यारा लगता है. क्या आप जानते हैं कि उनकी हर छलांग तुरत फुरत में की गई एक बेहद सटीक गणना के आधार पर होती है. विज्ञान तो यही कहता है औ रिसर्चरों ने इसकी खोज भी कर ली है.

(dw.com)  

गिलहरियां बड़ी फुर्ती से लंबी लंबी छलांग भरती हैं और फिर बड़े आराम से बिना गिरे अपनी मंजिल पर पहुंच भी जाती हैं. यूसी बर्केले के वैज्ञानिकों ने गिलहरियों की उछल कूद के तकनीकी ब्यौरे का पता लगाया है. इसके लिए उन्होंने खासतौर से कुछ बाधाएं तैयार की ताकि वो समझ सकें कि घनी पूंछों वाली गिलहरी उछल कूद के बीच अपना संतुलन कैसे बनाती है. शिकारियों की पकड़ में आने से खुद को बचाना और सारी तेजी के बीच अपना संतुलन बनाए रखना उनकी बड़ी खासियत है.

गिलहरियों पर की गई इस रिसर्च का मकसद आने वाले वर्षों में ज्यादा फुर्तीले रोबोट बनाने के साथ ही उनमें फैसले करने की क्षमता को बेहतर बनाना भी है. रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक नाथन हंट ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "गिलहरियों में एक साथ कई खूबियां होती हैं जो उन्हें बेहद दिलचस्प बनाती हैं. इनमें एक है कलाबाजी का गुण, अपने बायोमेकैनिक्स और मजबूत मांसपेशियों का इस्तेमाल वो बार बार अपने शरीर को उछालने में कर सकती हैं." हंट के मुताबिक इसके अलावा उनकी संज्ञान से जुड़ी क्षमता भी बेजोड़ है, उनकी याददाश्त बहुत मजबूत है, वो बहुत रचनात्मक होने के साथ ही समस्याओं के समाधान में भी बहुत अच्छी हैं.

रिसर्चरों ने प्रयोग में मूंगफली के दानों से गिलहरियों को लुभाया. पेड़ की शाखाओं की जगह मचान बनाए गए और इस तरह से गिलहरियों को अलग अलग दूरी की छलांग लगाने के मजबूर किया ताकि वो अपने खाने तक पहुंच सकें. वैज्ञानिक यह जानने के लिए उत्सुक थे कि यह जीव आखिर एक साथ अलग चीजों के बारे में कैसे फैसला करते हैं. मसलन छलांग की दूरी घटा कर मचान के आखिरी हिस्से तक पहुंचने की कोशिश, मगर इसमें स्थिरता और कूदने की ताकत घट जाती है क्योंकि जिस जगह से वो उछाल भरते हैं वह ज्यादा हिलता है.

प्रयोग में देखा गया कि ऐसी स्थिति में गिलहरी ने मचान के आधार की ऐसी जगह से उछाल भरी जहां उसमें मोड़ था. वास्तव में उनके फैसले के लिहाज से शाखाओं का मोड़, खाली जगह की दूरी की तुलना में छह गुना ज्यादा जटिल था.

पूरे प्रयोग के दौरान कोई गिलहरी गिरी नहीं. इसकी वजह यह थी कि उन्होंने कई रणनीतियों का इस्तेमाल किया. जब उनकी लैंडिंग अच्छी नहीं थी तब उन्होंने अपने मजबूत पंजों का इस्तेमाल कर खुद को गिरने से बचा लिया. अगर वो जरूरत से ज्यादा लंबी छलांग लगा बैठे तो उन्होंने गुलाटी मार कर खुद को संभाला और अगर छलांग छोटी थी तो अगे बढ़ने से पहले उन्होंने मचान के नीचे लटक कर संतुलन बनाया. हालांकि सबसे चौंकाऊ बात ये सामने आई कि गिलहरियां अपने लक्षित शाखाओं पर सीधे निशाना नहीं लगातीं बल्कि इसकी बजाय उसके पास मौजूद दीवार की ओर छलांग मारती हैं. जब बाज उनका पीछा करते हैं तो वो एक एक सेंटीमीटर के अंतर से अपना बचाव करती हैं.  शायद यही वजह है कि उनका विकास इतने फुर्तीले जीव के रूप में हुआ है.

ये रिसर्च आने वाले दिनों में रोबोटिक्स को बेहतर बना ही सकती है. इसके साथ ही ऐसी जानकारी भी मिली है जो लोगों को अपने पास पड़ोस के पार्कों में गिलहरियों को देखने का नजरिया भी बदल देगी. हंट को इन पर रिसर्च करने का आयडिया अपने घर के पीछे बाग में एक गिलहरी की गतिविधियों को देख कर ही आया था. (dw.com)

एनआर/ओएसजे(एएफपी)

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