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एक-एक कर अफगान लड़कियों को बचा रहीं डेनमार्क में बैठीं खालिदा
27-Aug-2021 3:28 PM
एक-एक कर अफगान लड़कियों को बचा रहीं डेनमार्क में बैठीं खालिदा

डेनमार्क में रहने वाली अफगानिस्तान की पूर्व फुटबॉलर अपनी टीम की लड़कियों को देश से निकालने की कोशिशों में जुटी हैं. वह किसी भी तरह ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को बचा लेना चाहती हैं.

  (dw.com)

खालिदा पोपल कई रातों से सोई नहीं हैं. डेनमार्क में रहने वालीं अफगानिस्तान की महिला फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान पोपल दिन रात बस एक ही काम कर रही हैं. अपनी टीम की खिलाड़ियों को अफगानिस्तान से निकालने की कोशिश.

34 साल की पोपल 10 साल पहले एक शरणार्थी के तौर पर डेनमार्क आई थीं. वह बताती हैं, "हमने 75 लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया है, जिसमें खिलाड़ियों के साथ-साथ उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं.” ये 75 लोग ऑस्ट्रेलिया गए हैं.

नाउम्मीद हैं खिलाड़ी
डेनमार्क की फर्स्ट डिविजन टीम एफसी नोर्डशाएलांड में कोऑर्डिनेटर की नौकरी कर रहीं पोपल कहती हैं कि कि अभी उनकी मुहिम खत्म नहीं हुई है और वह और खिलाड़ियों को देश से सुरक्षित निकालना चाहती हैं.

जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया है, पोपल का फोन लगातार घनघना रहा है. पेशेवर खिलाड़ियों की यूनियन एफआईएफपीआरओ व अन्य संगठनो के साथ मिलकर वह मदद पहुंचा भी रही हैं. उनके फोन पर दर्जनों वॉइसमेल हैं, जिनमें मदद की गुहार सुनी जा सकती है.

अफगानिस्तान की बिखर चुकी फुटबॉल टीम की मैनेजर के तौर पर वही हैं, जो सदमे और डर में जी रहीं खिलाड़ियों की पुकार सुन और समझ सकती हैं. कुछ को धमकियां मिली हैं तो कइयों को पीटा भी जा चुका है. पोपल कहती हैं, "अपनी टीम के साथ मिलकर मुझे इस काम के लिए आगे आना ही पड़ा. वे खिलाड़ी रो रही थीं. नाउम्मीदी में वे मदद मांग रही थीं.”

सुरक्षा कारणों से पोपल यह नहीं बतातीं कि कितनी खिलाड़ी अफगानिस्तान में कहां कहां हैं जिन्हें मदद की जरूरत है. फुटबॉल उनके लिए दीवानगी का सबब है लेकिन इसे वह अफगान महिलाओं को मजबूत करने का एक जरिया भी मानती हैं. बतौर फुटबॉल खिलाड़ी उन्होंने जो कुछ भी सीखा है, टीम भावना, जज्बा, हिम्मत ना हारना और आखरी पल तक कोशिश करना, ये सारे गुण पिछले कुछ दिन में उनके काम आए हैं.

देश गया, टीम गई
अफगानिस्तान में अपना बचपन याद करते हुए वह कहती हैं कि उन्हें एक बार तालिबान चुराकर ले गए थे. वह बताती हैं, "मैं स्कूल नहीं जा सकती थी. मैं किसी गतिविधि में हिस्सी नहीं ले सकती है. फुटबॉल के जरिए हम बदला लेना चाहते थे. हम कहते थे कि तालिबान हमारा दुश्मन है और फुटबॉल के जरिए हम बदला लेंगी.”

करीब 15 साल पहले अफगानिस्तान में पहली बार महिला फुटबॉल टीम बनाई गई थी. तब से टीम ने जोरदार तरक्की की है. लेकिन काबुल के तालिबान के कब्जे में चले जाने के बाद यह सब रातोरात गायब हो गया है.

पोपल कहती हैं, "हमारे पास तीन से चार हजार लड़िकया थीं जिन्होंने अलग-अलग स्तरों पर फुटबॉल फेडरेशन में रजिस्ट्रेशन कराया था. हमारे पास रेफरी, कोच और महिला कोच सब थे.”

पोपल बताती हैं कि काबुल के साथ सब चला गया है. भर्रायी हुई आवाज में वह कहती हैं कि खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार में है. वह कहती हैं, "हो सकता है वे फुटबॉल खेलें, लेकिन वे अब अफगानिस्तान के लिए फुटबॉल नहीं खेल पाएंगी. क्योंकि उनके पास कोई देश नहीं होगा, और राष्ट्रीय टीम भी नहीं होगी.”

पोपल को डर है कि अमेरिकी फौजों के देश से चले जाने के साथ ही अफगानिस्तान को भुला दिया जाएगा. वह कहती हैं कि तालिबान ने देश का वो झंडा बदल दिया है, जिसके तले टीम खेलती थी. वह कहती हैं, "हमसे हमारा गर्व छीन लिया गया है.”

वीके/सीके (एएफपी)

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